Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Nov 2023 · 2 min read

#आलेख-

#आलेख-
■ हमारी पहचान
★ ऋषि संस्कृति और हमारे गोत्र
【प्रणय प्रभात】
सनातन धर्म चिरंतन है और इसकी संस्कृति शाश्वत। जो “वसुधैव कुटुम्बकम” का पुनीत संदेश अनादिकाल से देती आई है। सत्य सनातन संस्कृति “विश्व-बंधुता” की बात अकारण नहीं कहती। वह सिद्ध करती है कि सम्पूर्ण मानव-जाति एक वृक्ष है और प्रत्येक मनुष्य उसकी मत, पंथ रूपी शाखाओं के पत्ते। अभिप्राय यह कि हम जीवन शैली, उपासना पद्धति व विचारधारा के आधार पर अनेकता के बाद भी एक हैं। कारण हैं हमारे आद्य-पूर्वज, जिन्होंने हमें दीर्घकालिक पहचान दी। यह और बात है कि हम कथित विकास और सभ्यता के शीर्ष की ओर बढ़ते हुए इस सच को पीछे छोड़ आए।
आगत की शांति व सद्भावना के लिए हमे एक बार फिर अपने समृद्ध व सशक्त अतीत के गौरव को जानने की आवश्यकता है। जिसमे सर्वोपरि है चिरकाल से चली आ रही “गौत्र परम्परा।” जो प्रमाणित करती है कि हम सब ऋषि परम्परा के वंशज हैं और हम सबके पूर्वज मूलतः महान ऋषि ही हैं। आज आपको बताते है उन 115 ऋषियों के नाम, जो कि हमे हमारा गोत्र प्रदान करते हैं और समरसता का समयोचित संदेश भी देते हैं। जिसकी सामयिक परिवेश में महती आवश्यकता है। विशेष रूप से उन जलते सुलगते परिदृश्यों के बीच, जो संपूर्ण सृष्टि व जीवधारियों के लिए संकट व अकाल मौत का कारण बन रहे हैं।

■ ऋषि परम्परानुसार हमारे पूर्वज ऋषि व गौत्र…..
अत्रि, भृगु, आंगिरस, मुद्गल, पातंजलि, कौशिक, मरीच, च्यवन, पुलह, आष्टिषेण, उत्पत्ति शाखा, गौतम, वशिष्ठ और संतान (क)पर वशिष्ठ (अपर वशिष्ठ, उत्तर वशिष्ठ, पूर्व वशिष्ठ व दिवा वशिष्ठ), वात्स्यायन, बुधायन, माध्यन्दिनी, अज, वामदेव, शांकृत्य, आप्लवान, सौकालीन, सोपायन, गर्ग, सोपर्णि, शाखा, मैत्रेय, पराशर, अंगिरा, क्रतु, अधमर्षण, बुधायन, आष्टायन कौशिक, अग्निवेष भारद्वाज, कौण्डिन्य, मित्रवरुण, कपिल, शक्ति, पौलस्त्य, दक्ष, सांख्यायन कौशिक, जमदग्नि, कृष्णात्रेय, भार्गव,
हारीत, धनञ्जय, पाराशर, आत्रेय, पुलस्त्य, भारद्वाज, कुत्स, शांडिल्य, भरद्वाज, कौत्स, कर्दम, पाणिनि, वत्स, विश्वामित्र, अगस्त्य, कुश, जमदग्नि कौशिक, कुशिक गोत्र, देवराज, धृत कौशिक, किंडव, कर्ण, जातुकर्ण, काश्यप, गोभिल, कश्यप, सुनक, शाखाएं, कल्पिष, मनु, माण्डब्य, अम्बरीष, उपलभ्य, व्याघ्रपाद, जावाल, धौम्य, यागवल्क्य, और्व, दृढ़, उद्वाह, रोहित गोत्र, सुपर्ण, गालव, वशिष्ठ, मार्कण्डेय, अनावृक, आपस्तम्ब, उत्पत्ति शाख, यास्क, वीतहब्य, वासुकि, दालभ्य, आयास्य, लौंगाक्ष, चित्र, विष्णु, शौनक, पंचशाखा, सावर्णि, कात्यायन, कंचन, अलम्पायन, अव्यय, विल्च, शांकल्य, उद्दालक, जैमिनी, उपमन्यु, उतथ्य, आसुरि, अनूप, आश्वलायन!!
बताना आवश्यक है कि ऋषि आधारित गौत्र की मूल संख्या 108 ही है। जिनमे छोटी-छोटी 7 शाखाऐं और जुड़ जाने के कारण कुल संख्या 115 मान्य की गई है।
इतना कुछ बताने का मन्तव्य आपको उन भ्रांतियों से मुक्त कराते हुए अपने विराट से परिचित कराना है, जिसे छिन्न-भिन्न करने के लिए दुष्प्रचार व षड्यंत्र सतत जारी हैं। विश्वास कीजिए कि आप जिस दिन अपनी उत्पत्ति व अस्तित्व सहित वंश परम्परा का मूल समझ जाएंगे, अपनी हर भूल से उबर और निखर जाएंगे। इति शिवम, इति शुभम।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

2 Likes · 340 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

दोहा पंचक. . . इच्छा
दोहा पंचक. . . इच्छा
Sushil Sarna
हिंदी दिवस पर ग़ज़ल
हिंदी दिवस पर ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
बाल कविता: मेलों का मौसम है आया
बाल कविता: मेलों का मौसम है आया
Ravi Prakash
जा रहे हो तुम अपने धाम गणपति
जा रहे हो तुम अपने धाम गणपति
विशाल शुक्ल
दिल मेरा तोड़कर रुलाते हो ।
दिल मेरा तोड़कर रुलाते हो ।
Phool gufran
सूर्य देव के दर्शन हेतु भगवान को प्रार्थना पत्र ...
सूर्य देव के दर्शन हेतु भगवान को प्रार्थना पत्र ...
ओनिका सेतिया 'अनु '
बहुत धूप है
बहुत धूप है
sushil sarna
मेरे  गीतों  के  तुम्हीं अल्फाज़ हो
मेरे गीतों के तुम्हीं अल्फाज़ हो
Dr Archana Gupta
वसंत - फाग का राग है
वसंत - फाग का राग है
Atul "Krishn"
दशकंधर
दशकंधर
*प्रणय*
"सँवरने के लिए"
Dr. Kishan tandon kranti
हर किसी से प्यार नहीं होता
हर किसी से प्यार नहीं होता
Jyoti Roshni
सजग  निगाहें रखा करो  तुम बवाल होंगे।
सजग निगाहें रखा करो तुम बवाल होंगे।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
सहगामिनी
सहगामिनी
Deepesh Dwivedi
ज़िंदगी के रंग थे हम, हँसते खेलते थे हम
ज़िंदगी के रंग थे हम, हँसते खेलते थे हम
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"बस तेरे खातिर"
ओसमणी साहू 'ओश'
नहीं समझता पुत्र पिता माता की अपने पीर जमाना बदल गया है।
नहीं समझता पुत्र पिता माता की अपने पीर जमाना बदल गया है।
सत्य कुमार प्रेमी
उनकी नाराज़गी से हमें बहुत दुःख हुआ
उनकी नाराज़गी से हमें बहुत दुःख हुआ
Govind Kumar Pandey
*स्वार्थी दुनिया *
*स्वार्थी दुनिया *
Priyank Upadhyay
जिंदगी और जीवन में अपना बनाएं.....
जिंदगी और जीवन में अपना बनाएं.....
Neeraj Kumar Agarwal
2507.पूर्णिका
2507.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
"यादों की कैद से आज़ाद"
Lohit Tamta
संवेदनहीन नग्नता
संवेदनहीन नग्नता"
पूर्वार्थ
जूनी बातां
जूनी बातां
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
सवाल सिर्फ आँखों में बचे थे, जुबान तो खामोश हो चली थी, साँसों में बेबसी का संगीत था, धड़कने बर्फ़ सी जमीं थी.......
सवाल सिर्फ आँखों में बचे थे, जुबान तो खामोश हो चली थी, साँसों में बेबसी का संगीत था, धड़कने बर्फ़ सी जमीं थी.......
Manisha Manjari
गंगा मैया
गंगा मैया
Kumud Srivastava
ईसामसीह
ईसामसीह
Mamta Rani
*निंदिया कुछ ऐसी तू घुट्टी पिला जा*-लोरी
*निंदिया कुछ ऐसी तू घुट्टी पिला जा*-लोरी
Poonam Matia
संघर्षों के राहों में हम
संघर्षों के राहों में हम
डॉ. दीपक बवेजा
मेरा समय
मेरा समय
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
Loading...