Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Jun 2023 · 2 min read

यादों के झरोखों से…

यादों के झरोखों से…
°~°~°~°~°
यादों के झरोखों से , कुछ सुनहरी यादें है,
बीते हुए लम्हों की अनकही ज़ज्बातें है।

फूस की झोपड़ियों में,गुजरा था बचपन का कोना,
गांवों की गलियों में, गुमनाम तराने थे।
भींगता तन-मन जो,रिमझिम सी बारिश में,
कागज के नौका संग, हम सब दीवाने थे ।
मेढक की टर्र-टर्र संग खुद भी टर्रटराना,
कोयलिया के कुहू-कुहू संग कोकिल का स्वाँग रचाना।
मन के मकरंदो पर वो, भ्रमर का ही गुंजन है..

यादों के झरोखों से , कुछ सुनहरी यादें है,
बीते हुए लम्हों की अनकही ज़ज्बातें है।

आंगन की क्यारी में लहराता हमेशा ही,
माता का आंचल तो बड़ा मनभावन था।
बरगद के पेड़ों सा पिता की परछाई थी,
खेतों में झूमें मन,फसलों की बाली थी।
दोस्तों संग खेला जो,वो पिट्टो और कबड्डी था।
गुजरा वो बचपन अब, भूला हुआ आंगन है…

यादों के झरोखों से , कुछ सुनहरी यादें है,
बीते हुए लम्हों की अनकही ज़ज्बातें है।

जीवन की तरुणाई में, ढूंढती वो निगाहें जो,
दिल की बातें कुछ, निगाहों से बयां होती थी ।
आंखों की गुस्ताखियों को,खामोशियां पढ़ लेती थी,
भीड़ में कहाँ गुमसुम मोहब्बत के फंसाने थे।
बुनते नये ख्वाबों का,आशियाँ रोज दिन हम तो,
यादों को यादों से अब तो हंसी आती ।
लम्हें जो बीते वो बड़ा ही प्रभावन था।
बीता हुआ यौवन भी एक मंगल उद्बोधन है…

यादों के झरोखों से , कुछ सुनहरी यादें है,
बीते हुए लम्हों की अनकही ज़ज्बातें है।

गृहस्थी का प्रांगण भी यादों में सिमटी है,
हकीकत में वो ख्वाबें तो, कष्टें भी भुगती है।
परिश्रम के पसीने से आंगन को सजाया हूँ ,
संतति के सपनें हेतु ,सपने कुछ छिपाया हूँ।
चुन-चुन कर खुशियों को हथेली पर लाया हूँ ।
पल-पल परिवर्तन पर जीवन एक उपवन है।
भविष्य की चुनौती को, करती कुछ फरियादें हैं…

यादों के झरोखों से , कुछ सुनहरी यादें है,
बीते हुए लम्हों की अनकही ज़ज्बातें है।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )

2 Likes · 244 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from मनोज कर्ण
View all

You may also like these posts

आंखों का कोई राज बता दे
आंखों का कोई राज बता दे
दीपक बवेजा सरल
बेवफ़ा इश्क़
बेवफ़ा इश्क़
Madhuyanka Raj
विषय
विषय
Rituraj shivem verma
कविता (हमारी बेडि़यां)
कविता (हमारी बेडि़यां)
Mangu singh
झाग की चादर में लिपटी दम तोड़ती यमुना
झाग की चादर में लिपटी दम तोड़ती यमुना
Rakshita Bora
युवा आज़ाद
युवा आज़ाद
Sanjay ' शून्य'
*आत्मविश्वास*
*आत्मविश्वास*
Ritu Asooja
जिस दिन हम ज़मी पर आये ये आसमाँ भी खूब रोया था,
जिस दिन हम ज़मी पर आये ये आसमाँ भी खूब रोया था,
Ranjeet kumar patre
रिश्तों में  बुझता नहीं,
रिश्तों में बुझता नहीं,
sushil sarna
उल्फ़त
उल्फ़त
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
..
..
*प्रणय प्रभात*
*भ्रष्टाचार की पाठशाला (हास्य-व्यंग्य)*
*भ्रष्टाचार की पाठशाला (हास्य-व्यंग्य)*
Ravi Prakash
राह कोई नयी-सी बनाते चलो।
राह कोई नयी-सी बनाते चलो।
लक्ष्मी सिंह
नफ़रत भर गई है, रोम रोम नकारता।
नफ़रत भर गई है, रोम रोम नकारता।
श्याम सांवरा
सब तुम्हारा है
सब तुम्हारा है
sheema anmol
कोई  फरिश्ता ही आयेगा ज़मीन पर ,
कोई फरिश्ता ही आयेगा ज़मीन पर ,
Neelofar Khan
"करारी हार के ‌शिकार लोग ही,
पूर्वार्थ
" जीत "
Dr. Kishan tandon kranti
उसकी आंखों में मैंने मोहब्बत देखी है,
उसकी आंखों में मैंने मोहब्बत देखी है,
Jyoti Roshni
आम के छांव
आम के छांव
Santosh kumar Miri
म़गरुर है हवा ।
म़गरुर है हवा ।
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
सत्य सनातन धर्म
सत्य सनातन धर्म
Raj kumar
सच कहा था किसी ने की आँखें बहुत बड़ी छलिया होती हैं,
सच कहा था किसी ने की आँखें बहुत बड़ी छलिया होती हैं,
Chaahat
4072.💐 *पूर्णिका* 💐
4072.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
प्यार
प्यार
Mansi Kadam
If We Are Out Of Any Connecting Language.
If We Are Out Of Any Connecting Language.
Manisha Manjari
छंदमुक्त काव्य?
छंदमुक्त काव्य?
Rambali Mishra
Love Letter
Love Letter
Vedha Singh
घटनाएं की नहीं जाती है
घटनाएं की नहीं जाती है
Ajit Kumar "Karn"
मंजुल प्रभात
मंजुल प्रभात
Dr Nisha Agrawal
Loading...