बोट डालणा फरज निभाणा -अरविंद भारद्वाज
दर्द ऐसा था जो लिखा न जा सका
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
हुस्न की नुमाईश मत कर मेरे सामने,
भला कैसे सुनाऊं परेशानी मेरी
*रामपुर के धार्मिक स्थान और मेले*
शीर्षक:इक नज़र का सवाल है।
सब कूछ ही अपना दाँव पर लगा के रख दिया
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
।। आशा और आकांक्षा ।।
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी