Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Jan 2023 · 8 min read

*महान आध्यात्मिक विभूति मौलाना यूसुफ इस्लाही से दो मुलाकातें*

महान आध्यात्मिक विभूति मौलाना यूसुफ इस्लाही से दो मुलाकातें
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
लेखक :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उ. प्र.)मोबाइल 9997615451
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
पहली मुलाकात : 7 अगस्त 1987
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बात सात अगस्त सन सत्तासी की एक शाम की है। करीब छह बजे होंगे । रामपुर में मौहल्ला मुल्लाएरम में रूहेला शैक्षणिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन, रामपुर की ओर से मौलाना मोहम्मद यूसुफ इस्लाही का अभिनन्दन होने वाला था। मैं कुर्सी पर श्रोताओं की अग्रिम पंक्ति में बैठा था। इस पंक्ति के आगे एक कुर्सी यूं ही न जाने कैसे, किसलिए, किसने उपेक्षित-सी डाल रखी थी। इतने में एक सज्जन आकर उस कुर्सी पर बैठ गये। मगर बैठने से पहले उन्होंने कुर्सी को इस तरह से आड़ा कर लिया कि मंच को सीधा देखने में किसी पीछे बैठे व्यक्ति को परेशानी न आये। उक्त प्रागन्तुक के इस व्यवहार पर मेरे नजदीक बैठे एक मुसलमान सज्जन ने उनसे टिप्पणी करते हुए कहा कि “साहब ! आप पीठ करके नहीं बैठे, यह अच्छा किया ।” आगन्तुक ने तपाक से दृढतापूर्वक उत्तर दिया कि “यह पीठ न करके बैठने की परम्परा अरब की नहीं है, वरन हिन्दुस्तान की है।” इस एक अकेले अर्थपूर्ण वाक्य ने मुझे उन नवागन्तुक सज्जन की ओर खींच लिया। मैंने नजर डाली। वह पचपन साल के दुबले-पतले, औसत कद के, लम्बे चेहरे वाले, गोरे चिट्ट थे। काली दाढी जो अधिक नहीं तो कम लंबी भी नहीं थी, उनके सिर पर पहनी हुई काली घुंघराली उठी टोपी से मिलकर व्यक्तित्व को और आकर्षक बना रही थी । सुनहरे फ्रेम का चश्मा उन पर फब रहा था। उजला सफेद पाजामा, मटमैली रंग की शेरवानी -सब कुछ वेशभूषा और रहन सहन के प्रति उनकी सुरूचि का परिचय दे रहा था। मुझे लगा कि यह व्यक्ति निश्चय ही शायर, विचारक या ऊंचे दर्जे की आध्यात्मिक मानसिकता को धारण करने वाला होना चाहिए। एक ऐसा व्यक्ति जो धर्म में भारत का समर्थक तो निश्चित ही है और सभ्यता के क्षेत्र में भारतीय मौलिकता का कायल भी है।

मैं विचारों की उधेड़बुन में डूबा ही था कि समारोह के संयोजक श्री मोहम्मद अली मौज ने माइक संभाला और संचालन के लिए सैयद शकील गौस को आमंत्रित किया। संचालक ने श्री मौलाना यूसुफ इस्लाही को मंच पर आमंत्रित किया और जब मैंने यह देखा कि यूसुफ इस्लाही वही हैं जो चंद मिनट पहले मेरे करीब बैठने – कहने वाले आगंतुक ही थे, तो हर्ष और उल्लास से भर उठा । कारण, अभिनन्दन उनका हो रहा था जो सम्मान के पात्र थे और यह भी कि यूसुफ इस्लाही मुझे किसी क्षुद्रता से परे प्रगतिशील इस्लामिक विचार के निकट जान पड़ते थे।
रेस्को (रूहेला एजुकेशनल सोशल एन्ड कल्चरल ऑगनाइजेशन का संक्षिप्त अग्रेजी नाम) के समारोह में जाने का यह मेरा दूसरा मौका था। इससे पहले जब रेस्को, रामपुर वेलफेयर लीग के नाम से काम करती थी, शायद दो साल पहले इसी जगह पर ईद-मिलन कार्यक्रम में भाग लेने का सुअवसर मुझे मिला था। पर, यह समारोह इस मायने में अलग रहा, कि इसने मुझे एक ऐसी आध्यात्मिक ज्ञान-ज्योति से परिचित कराया जिसको मैं पहले कभी नहीं पहचानता था । यद्यपि वह रामपुर से लम्बे समय से ‘जिहा’ नामक उर्दू धार्मिक मासिक निकालते हैं।

नौ जुलाई सन बत्तीस को जन्मे मौलाना यूसुफ इस्लाही ने इस्लाम के प्रचार-प्रसार को अपने जीवन का एकमात्र मिशन माना है । इसी लक्ष्य की सिद्धि के लिए उन्होंने पचास के करीब धार्मिक, सामाजिक महत्व की पुस्तकों का सृजन किया है । इनमें से कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी अनुवाद भी हो चुका है। श्री यूसुफ इस्लाही रामपुर में दो मुस्लिम धार्मिक शिक्षण संस्थानों जामिया तुस्सालिहात और मरकजी दर्सगाह इस्लामी के संचालन में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। उनकी कई किताबें विदेशों में इस्लामी स्कूलों में पढ़ाई भी जाती हैं । इस्लाम की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार हेतु उन्होंने अमेरिका, कनाडा, कुवैत, सऊदी अरब और पाकिस्तान आदि देशों के व्यापक दौर किए हैं।
समारोह में सरदार जावेद खाँ एडवोकेट ने मौलाना यूसुफ इस्लाही के सम्मान को एक अन्तर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक विभूति के सम्मान की संज्ञा दी।
वयोवृद्ध सैयद बहावुलहक एडवोकेट ने प्रसन्नता व्यक्त की कि नेताओं के स्थान पर विद्वानों को सम्मान देने की अच्छी सराहनीय कोशिश आज इस जगह से हो रही है। उनका मत था कि मौलाना यूसुफ इस्लाही ने आध्यात्मिकता की उस ज्योति को जलाया है जिसकी रोशनी को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने की आज अतीव आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि श्री यूसुफ इस्लाही धर्म की नई बातें नए तरीके से समयानुकूल हमारे सामने रखते हैं । दरअसल आज की जरूरत धर्म का लिबास बदलने की है, धर्म के सार को सर्वप्रिय रूप में प्रस्तुत करने की है। जो इन्सानियत को स्वर दे ,ऐसी शक्ल देने की जरूरत है। मौलाना, उन्होंने कहा कि, इसी जरूरत को पूरा कर रहे हैं।
वयोवृद्ध शब्बीर अली खाँ एडवोकेट ने श्री यूसुफ इस्लाही को हाल ही में दिवंगत मौलाना वजीरउद्दीन साहब की धार्मिक परंपरा की एक कड़ी की संज्ञा दी और कहा कि लिखना, पढना, समझना और समझाना तथा धर्म की शिक्षाओं का प्रचार करना श्री यूसुफ की जिन्दगी का एक जूनन बन गया है। एक ऐसा जुनून जो समाज के लिए निश्चय ही बहुत लाभकारी सिद्ध हो रहा है, क्योंकि समाज में बुनियादी, नैतिक, धार्मिक मूल्यों के प्रसार का काम ऐसी जुनूनी निष्ठा से ओत-प्रोत व्यक्ति ही ले सकता है।
अवकाश प्राप्त शिक्षक मास्टर कैसर शाह खाँ ने, जो समारोह के मंच पर आसीन थे, खुशी जाहिर की कि योग्य तथा महान व्यक्तियों को उनके जीवन काल में ही सम्मानित करने की प्रवृत्ति आज इस नगर के लिए गर्व का विषय है। मरणोपरांत सम्मान निरर्थक हो जाता है, अगर जीते जी किसी को हम सम्मान न दे सकें ,उन्होंने कहा।
श्री महेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने जो समारोह के अध्यक्ष थे, आश्चर्य व्यक्त किया श्री यूसुफ इस्लाही की विनम्रता पर कि उन्होंने मिलते रहने के बावजूद कभी उनको अपनी उपलब्धियों का परिचय नहीं दिया। उन्होंने यूसुफ इस्लाही के ज्ञान की रोशनी को संकुचित रखने को बजाय हर तरफ फैलाने पर जोर दिया और कहा कि धर्म की बुनियादी नैतिकता एक है। इस्लाम का संदेश और इंसानियत का संदेश, खुदा के सदेश से जुड़ कर एकात्म होकर जब बहता है तभी अपनी पूर्णता प्राप्त करता है। कोई धर्म गलत नहीं हो सकता । मगर धर्म के मानने वाले दरअसल भटक गये हैं ,उन्होंने कहा ।

मौलाना यूसुफ इस्लाही ने अपने भाषण में कहा कि उनके पास सिर्फ किताबें हैं और कुछ नहीं । जब इस दुनिया के पास किताब होती है तो वह ऊपर उठती है और जब उसके हाथ से किताब गिर जाती है तो इसके साथ ही समाज भी गिर जाता है । लोक-संदेश का सर्वाधिक सशक्त माध्यम विचारों को प्रतिपादित करते हुए उन्होंने कहा कि यह कलम ही है, शब्द हैं, ज्ञान की बातें हैं जो समूचे व्यक्ति और समाज के दिल को बदल देते हैं। जब हम अपनी अन्तरात्मा की गहराइयों को छूते हुए कोई आत्मज्ञान की बात जमाने के सामने रखते हैं तो वह ही सुनने वाले या पढ़ने वाले को कहीं गहरे अन्दर तक झंकृत कर पाती है ।
मेरी हाल को अमेरिका यात्रा में एयरपोर्ट पर जो भीड़ मुझे लेने आई थी, उसने मुझे मेरी किताबें पढ़कर ही जाना था- मोलाना यूसुफ इस्लाही ने कहा। यूसुफ इस्लाही ने कहा कि धर्म और ज्ञान को किसी क्षुद्र सीमा में नहीं बांधा जा सकता। इस्लाम की शिक्षाएँ सारी मानवता के लिए हैं। इस्लाम की शिक्षाएँ मुसलमानों की जागीर नहीं हैं, वह तो सबकी हैं। पैगम्बर हजरत मौहम्मद को हम “रहमतुल इस्लमीन” नहीं अपितु “रहमतुल आलमीन” अर्थात मुसलमानों का नहीं ,सारी इंसानियत का अपना मानते हैं। (यहां विशिष्ट शब्द सुनने और लिखने में संभावित अशुद्धि को पाठक क्षमा करें) मतलब यह कि मौलाना यूसुफ इस्लाही इस्लाम की आध्यात्मिक ज्योति की किरणें विराट धरातल पर फैलाने के पक्षधर हैं। अपने भावुक भाषण में वह कहते हैं कि जैसे गंगा का पानी बिना धर्म-जाति का भेद-भाव बरते हुए सबकी प्यास बुझाता है, पूरी इंसानियत को ताजगी देता है, जैसे सूरज की किरणें और हवा किसी से भेदभाव नहीं करतीं, वैसे ही ज्ञान की ज्योति सारी इंसानियत के लिए होती है । कोई ज्ञान, कोई सन्देश आज तक किसी महापुरुष ने किसी खास जाति या समुदाय तक सीमित रखने के लिए नहीं दिया है। धर्म का ज्ञान सम्पूर्ण मानवता को दिया गया है।
मौलाना मौहम्मद यूसुफ इस्लाही ने विचारों के खुलेपन और भारत के प्रति प्रेम और निष्ठा की आवश्यकता पर जोर दिया। अपने संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने बताया कि वे अमेरिका में घूमे और अनेक उच्च पदों तथा आकर्षक कामों में लगे योग्य भारतीयों को उन्होंने वहाँ पाया। इससे उन्हें खुशी हुई पर, दुख भी हुआ । काश ! यह प्रतिभा जो अमेरिका के काम आ रही है, अपने देश भारत के काम आती ।
मौलाना मौहम्मद यूसुफ इस्लाही का अभिनन्दन रामपुर की धरती पर रामपुर के एक योग्य सपूत का अभिनन्दन था। रामपुर के बाहर भी जिनके कारण रामपुर को गरिमा मिलती है-जब ऐसे किसी कलमकार और धर्म-प्रचारक को सम्मानित किया जाता है तो लगता है कि हम सचमुच सही रास्ते पर बढ़ रहे हैं और अंशतः उऋण हो रहे हैं । उस ऋण से, जो किसी ने अपनी सतत साधना से हम पर आरोपित किया है। यह कहना गलत नहीं लगता कि मौलाना यूसुफ इस्लाही की कम से कम प्रतिनिधि पुस्तकों का तो हिन्दी अनुवाद कराए जाने की तीव्र आवश्यकता है क्योंकि हिन्दी-जगत उस ज्ञान-राशि से वंचित हैं जिसे विद्वान साधक ने अपनी साधना से अर्जित किया है ।
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
29 दिसंबर 2004 : दूसरी मुलाकात
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रामपुर । बुधवार, 29 दिसम्बर 2004 । आज शाम साढ़े छह बजे स्थानीय जामा मस्जिद में एक निकाह सम्पन्न हुआ, जिसमें मौलाना यूसुफ इस्लाही साहब को सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यूसुफ इस्लाही साहब का भाषण विवाह के अवसर पर दिया जाने वाला एक अविस्मरणीय अध्यात्मिक भाषण था। दुबली-पतली कद-काठी, गोरा रंग, सफेद दाढ़ी ,नवयुवकों को मात करती उनकी तेजस्विता और ओजस्वी आवाज- इन्हीं सब विशेषताओं के सम्मिश्रण से मौलाना यूसुफ इस्लाही साहब की सही तस्वीर बनती है ।
पवित्र कुरान की चार आयतें इस्लाही साहब मूल अरबी भाषा में उपस्थित जन समूह को सुनाते है। आवाज इतनी सुन्दर और मधुर कि मन आनन्द में डूब जाता है। लगता है, मानो आसमान से प्रकृति ने जीवन का सत्य धरती पर बिखेर दिया हो। अल्लाह से डरो-यूसुफ इस्लाही साहब अपने कथन की व्याख्या करते हैं ।
फिर पूछते हैं कि शादी जैसे मौके पर मौत का जिक्र किया जा सकता है ? उत्तर स्वयं देते हैं कि हाँ, मौत को हमेशा याद रखना चाहिए क्योंकि यही याद हमें अल्लाह के करीब ले जाती है।
फिर कहते हैं कि सब इन्सान बराबर हैं, कोई छोटा-बड़ा नहीं है। विवाह के अवसर पर यह याद दिलाने वाली बहुत बड़ी बात यूमुफ इस्लाही साहब मानते हैं। वह कहते हैं कि शादी – ब्याह के मौके पर यह सब मनुष्यों में समानता की बात याद करना बहुत जरूरी है ।
आखिरी बात वह कहते हैं कि मनुष्य को अपने वचन का पक्का होना चाहिए ,अर्थात विवाह का सम्बन्ध सारा जीवन निभाने पर अमल करना चाहिए।
विवाह के अवसर पर जामा मस्जिद के पवित्र और पुरातन उपासनागृह में खचाखच भरे जनसमूह में आध्यात्मिक मूल्यों को फिर से जगाने का मौलाना यूसुफ इस्लाही साहब का प्रयास अत्यन्त प्रशंसनीय है। मौलाना साहब की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने समयानुकूल आध्यात्मिक सन्देश दिया और साथ ही धर्म के मूलभूत तत्वों से भी जनसमूह को परिचित करा दिया । ईश्वर की सत्ता में आस्था, मनुष्य के जीवन की क्षणभंगुरता, मानव-मात्र में समानता का दर्शन तथा आचार-विचार में एकरूपता ऐसे सद्गुण हैं ,जिन्हें विवाह के अवसर पर भी स्मरण किया जाना चाहिए |
जामा मस्जिद परिसर में मुख्य उपासना गृह के सुन्दर हॉल में यह निकाह सम्पन्न हुआ। स्वाभाविक है कि वातावरण स्वयमेव आध्यात्मिकता की सृष्टि कर रहा था। किन्तु यह यूसुफ इस्लाही साहब का भाषण ही था, जो आत्मा की गहराइयों से किसी कीमती मोती-माला की तरह निकल कर बाहर आया और सब के हृदयों में उतनी ही गहराई से बैठ गया। निश्चय ही श्री मुकर्रम हुसेन सिद्दीकी की पुत्री तथा श्री मुशर्रफ हुसैन सिद्दीकी के पुत्र के विवाह के अवसर पर श्री इस्लाही साहब का यह एक अनमोल आध्यात्मिक उपहार था।
【 यह दोनों लेख सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक रामपुर के अंक दिनांक 22 अगस्त 1987 तथा दिनांक 3 जनवरी 2005 में प्रकाशित हो चुके हैं। मृत्यु 21 दिसंबर 2021】

271 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

उसे तो आता है
उसे तो आता है
Manju sagar
गुज़रे वक़्त ने छीन लिया था सब कुछ,
गुज़रे वक़्त ने छीन लिया था सब कुछ,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"कामयाबी"
Dr. Kishan tandon kranti
कौन करें
कौन करें
Kunal Kanth
हम बस भावना और विचार तक ही सीमित न रह जाए इस बात पर ध्यान दे
हम बस भावना और विचार तक ही सीमित न रह जाए इस बात पर ध्यान दे
Ravikesh Jha
जीवन के अंतिम दिनों में गौतम बुद्ध
जीवन के अंतिम दिनों में गौतम बुद्ध
कवि रमेशराज
तुम..
तुम..
हिमांशु Kulshrestha
यथार्थ
यथार्थ
Dr. Rajeev Jain
तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं
तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं
Harinarayan Tanha
"तर्पण"
Shashi kala vyas
रूहें और इबादतगाहें!
रूहें और इबादतगाहें!
Pradeep Shoree
ଅତିଥି ର ବାସ୍ତବତା
ଅତିଥି ର ବାସ୍ତବତା
Bidyadhar Mantry
मंजिल पहुंचाना जिन पथों का काम था
मंजिल पहुंचाना जिन पथों का काम था
Acharya Shilak Ram
*पौष शुक्ल तिथि द्वादशी, ऊॅंचा सबसे नाम (कुंडलिया)*
*पौष शुक्ल तिथि द्वादशी, ऊॅंचा सबसे नाम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
खुद को खुद से मिलाना है,
खुद को खुद से मिलाना है,
Bindesh kumar jha
"रफ़्तार पकड़ती ज़िंदगी"
ओसमणी साहू 'ओश'
इश्क
इश्क
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
जब हमे मिली आजादी
जब हमे मिली आजादी
C S Santoshi
भटकती रही संतान सामाजिक मूल्यों से,
भटकती रही संतान सामाजिक मूल्यों से,
ओनिका सेतिया 'अनु '
मुझे प्यार हुआ था
मुझे प्यार हुआ था
Nishant Kumar Mishra
गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही ......
गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही ......
sushil sarna
मोल
मोल
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
जाने कब बच्चे बने,
जाने कब बच्चे बने,
Rashmi Sanjay
సూర్య మాస రూపాలు
సూర్య మాస రూపాలు
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
मुक्तक
मुक्तक
surenderpal vaidya
संघर्ष....... जीवन
संघर्ष....... जीवन
Neeraj Kumar Agarwal
अभिलाषा
अभिलाषा
indu parashar
हमारी आखिरी उम्मीद हम खुद है,
हमारी आखिरी उम्मीद हम खुद है,
शेखर सिंह
आंखन तिमिर बढ़ा,
आंखन तिमिर बढ़ा,
Mahender Singh
नाम
नाम
vk.veena1576
Loading...