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18 Mar 2021 · 1 min read

सौदा

आज फिर हुआ हादसा कहीं ,
पल में बदल गया मंज़र वहीं ।

कई घर-आँगन वीरान हो गए,
कई ज़िंदगियाँ तबाह हुई वहीं ।

सहारे बुज़ुर्गों से कहीं छुट गए ,
हुए कई बच्चे/शिशु यतीम कहीं ।

आंसूयों से भीग गयी सभी आँखें ,
धुंधली नज़र से कुछ दिखता नहीं ।

इंतज़ार किसी अपने का कर रही है ,
जिसके हाथों की मेहँदी भी छूटी नहीं।

टूटे खिलोनों से खेल रही है एक माँ ,
कौन बताए उसे,लाल आनेवाला नहीं ।

दुनिया से जाकर कोई लौटके न आया ,
मगर फिर भी इंतेजार तो है न यहीं ।

इंतेजार तो अब सारी जिंदगी रहेगा ,
अश्क ही खत्म होंगे न ,दर्द तो नहीं।

देखो ! दाखिल हुए घर पर कुछ साये ,
चंद लफ्ज हमदर्दी,पैसे फेंकने यहीं ।

यह उनके अपने की लाशों की कीमत!!
क्या ये बर्बाद ज़िंदगियों का सौदा नहीं।

‘अनु ‘ पुछती है सफेदपोश सौदागरों से ,
इंसानियत तुम भूले,शर्म भी तुममें नहीं!!

3 Likes · 5 Comments · 734 Views
Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
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