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14 Jun 2020 · 2 min read

एक हेट स्टोरी

एक ‘नियोजित संवाददाता’ (एक ‘नियोजित शिक्षिका’ से):-

अंग्रेजी दिनों के नाम ‘ब्लैक बोर्ड’ पर लिखिए ?

नि. शिक्षिका:-

क्यों ? एक शिक्षक से इस ढंग से बात की जाती है!

नि. संवाददाता:-

आप तो नियोजित हैं, वो वाली नहीं हैं!

नि. शिक्षिका:-

ऐसी बात है, तो सुन लीजिए… सन्डे, मंडे, अंडे, डंडे, रंडे, झंडे, लौंडे….

नि. संवाददाता:-

अरे, यह क्या बदतमीजी है? दो तक सही है, उसके बाद यह क्या बोल गई?

नि. शिक्षिका:-

जब मैट्रिक पास की थी न, तबै अंग्रेजी अनिवार्य नहीं थी, जो अब भी अनिवार्य नहीं है, जो कुछ सीखी– बच्चों से सीखी, आप जैसों से सीखी….

नि. संवाददाता:-

हमसे कैसे?

नि. शिक्षिका:-

आप भी तो अंग्रेजी नहीं जानते हैं, जानते तो अंग्रेजी में ही पूछते न सवाल! दूजे अंग्रेजी अनिवार्य नहीं है । तब, अब का पढ़त, बथुआ!

नि. संवाददाता:-

गणित ज्ञान कैसी है?

नि. शिक्षिका:-

बिल्कुल आपके जैसी, जैसे आप सब सिर्फ प्रधानाध्यापक से एमडीएम कितना बचाये– का ही हिसाब पूछते हैं!

नि. संवाददाता:-

बिहार के मुख्यमंत्री का क्या नाम है?

नि. शिक्षिका:-

बता के क्या फायदा ? हम शिक्षकों के फ़ेवर में वो तो हैयये नहीं है, हाई कोर्ट ने कितना अच्छा फैसला दिया था, हमसबों के हित में ! किन्तु उसके विरुद्ध वे सुप्रीम कोर्ट चले गए । वैसे व्यक्ति का नाम याद रखके का फायदा? इहाँ डिग्री और दक्षता परीक्षा पास करके ही टीके हैं हमनी के ! बताइये जरा, किस पेपर में छपेगी यह इंटरव्यू?

नि. संवाददाता:-

दैनिक देशरत्न!

नि. शिक्षिका:-

नया पेपर है का? जाइये छापिए! …. और हाँ, का हो संवाददाता जी, अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में तो पढ़ाते ही होंगे…

नि. संवाददाता:-

नहीं, यहाँ पढ़ाई नहीं होती है न, इसलिए कॉन्वेंट में पढ़ाता हूँ!

नि. शिक्षिका:-

तब तो यह आपको पहले से पता है और आप जैसे बुद्धिजीवी ऐसा नहीं करते हैं, तो कौन किनको छल रहा है… सबको पता है ! हम्माम में सब नंगे हैं । वैसे आज एमडीएम में अंडा नहीं बना है ! …. समझे न ! …. और सेब के बदले ‘गरीब का सेब’ (आम) चला दी हूँ !

— ‘नियोजित संवाददाता’ इतना सुनकर सिर्फ मुँह बिचकाते हैं और मोबाइल का कैमरा छनकाते हैं, फिर उनका प्रस्थान होता है, किसी और विद्यालय के लिए ! इसप्रकार इस एकांकी का पर्दा गिरता है ।

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