दिया है जो ज़ख्म कुछ अपनों ने
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/b1446a766aacebc833b33b6eeb51ece2_5e248e32f1ef976191e813795ae8bc76_600.jpg)
दिया है जो ज़ख्म कुछ अपनों ने, अब वो मिटता नहीं है।
नकाब नहीं चेहरे पे सब कहते हैं, पर वास्तविकता नहीं है।
कुछ अनकहे राज खोलनें हैं, इन मतलबी रिश्तों के
कलम मेरा सब जानता है, पर कभी लिखता नहीं है।
खरीदने आये हो तुम मुझे, ये चंद मुनाफे गिनाकर,
ये ईमान मेरा पुरखों का है, बाज़ार में बिकता नहीं है।
यूँ तो कहने के लिये, हर कोई साथ खड़ा हैं मेरे,
जब दर्द आता है हिस्से में, तो कोई दिखता नहीं है।
क्यों करने लगे हो बुराइयाँ, उस शख्स की अब भरी महफ़िल में,
जलन हो जिसे गैरों की तरक्की से, वो इंसान अब टिकता नहीं है।
शुभम आनंद मनमीत