दोहे
चूल्हे पर रोटी चढ़ा ,मम्मी जातीं भूल ।
दीदी चल चिमटा उठा, भूख बन गई शूल।
चूल्हे की रोटी बनी ,औ सरसों की साग,
छक कर सब भोजन करो, बिना बुझे ही आग।
चूल्हा ईंधन सँग धुआं, रोगों की जड़ आम।
शीघ्र मोतियाबिंद से, आँखों का हो काम।।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम”