दुनिया बदल गयी ये नज़ारा बदल गया ।
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
"राज़-ए-इश्क़" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
पूर्ण सफलता वर्तमान में मौजूद है हमें स्वयं के रूपांतरण पर ध
पतोहन के साथे करें ली खेल
अगर कुछ हो गिला तब तो बताऊं मैं,
कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं है मुझे अब, कोई हमनवा हमनिवाला नहीं है।
रमेशराज की कविता विषयक मुक्तछंद कविताएँ
महबूब से कहीं ज़्यादा शराब ने साथ दिया,
रोटी का कद्र वहां है जहां भूख बहुत ज्यादा है ll
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सोना बोलो है कहाँ, बोला मुझसे चोर।
आज़ यूं जो तुम इतने इतरा रहे हो...
- मेरे अल्फाजो की दुनिया में -