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19 Mar 2020 · 27 min read

साहब और मास्टर

सुबह के लगभग दस बजे होंगे…रामरतन मास्टर जी दैनिक प्रार्थना आदि करा के बच्चों की हाजिरी ले चुके थे। बच्चों को दो क्लास में बैठाकर उन्होंने क्लास वर्क दे दिया तभी उनके मोबाइल का रिंगटोन बजा
“ट्रिन ट्रिन..ट्रिन ट्रिन….ट्रिन ट्रिन”
मास्टर जी ने कॉल रिसीव किया
” प्रणाम सर..जी…जी…जी ठीक है सर …अभी तुरंत भेजता हूँ”
और वो एक सादा कागज लेकर उस पर कुछ लिखने लगे
तभी बड़ी स्पीड में एक बोलेरो… जिस पर नीली बत्ती लगी थी,विद्यालय के प्रांगण में आकर रुकी…
मास्टर जी कुर्सी से उछल गए
बच्चे भी खड़े होकर खिड़की से बाहर झाँकने लगे। रसोइयाँ तुरंत किचन का फर्श साफ़ करने लगी।
गाँव के भी लफ़न्टर टाइप के लोग जमा हो गए।
तभी वाहन के आगे का गेट खुला…श्वेतपोश एक सींकिया सा व्यक्ति जो कि कंधे से कमर तक लाल पट्टा पहने हुए था…बड़ी तेजी से नीचे उतरा और पीछे का गेट खोला…एकबारगी तो मास्टर साहब डर गये कि कहीं वो गिर न पड़े। खैर गाड़ी के पिछले दरवाजे से लगभग पचास वर्ष का एक नाटे कद का व्यक्ति सूट-बूट पहनकर नीचे उतरा और विद्यालय का मुआयना करके मास्टर जी की ओर बढ़ा….
नीली बत्ती का तो मास्टर जी ने ध्यान नहीं दिया किन्तु उस व्यक्ति के निकले तोंद को देखकर उन्होंने अंदाजा लगा लिया कि जरूर कोई बड़ा अधिकारी है।
पचपन वर्ष की उम्र तक मास्टर जी का जाने कितने अधिकारियों से पाला पड़ चुका था…अधिकारियों को डील करना वो अपने बांये हाथ का खेल समझते थे।

जैसे ही वो व्यक्ति निकट आया मास्टर जी हाथ जोड़कर बोले,” नमस्ते साहब”
वो क्लास के अन्दर झांकते हुए बोला,” हेड मास्टर को बुलाओ।”
मास्टर जी ने बड़ी ही शालीनता से जवाब दिया,” जी, मैं ही हूँ हेडमास्टर…बैठिये।” उन्होंने सामने की कुर्सी को इशारा करते हुए कहा। तभी वो सींकिया आगे आया और बोला,” ये इस क्षेत्र के एस डी एम साहब हैं” मास्टर जी ने फिर से नमस्ते किया और बोले “बैठिये साहब।” मगर साहब ने जैसे कुछ सुना ही न हो…वो क्लास के अन्दर घुस गए।
तब उस सींकिया ने मास्टर जी के कान में कहा,” अजीब आदमी हो मास्टर जी आप भी…साहब आये हैं और आप अपनी कुर्सी से चिपक के खड़े हो…आप इधर खड़े हो जाइये…कुर्सी छोडकर….
उसी पर साहब बैठेंगे ।”
मास्टर जी तुरंत उस कुर्सी से हट गये….सींकिए का इशारा पाकर साहब बाहर आये और मास्टर जी की कुर्सी में धम्म से धंस गये। मास्टर जी दोनों कुर्सियों का फर्क समझने की कोशिश करते रहे ।तभी एस डी एम साहब बोले,” ये स्कूल तुम चलाते हो?
“जी साहब” मास्टर जी हकलाते हुए बोले
“अध्यापक उपस्थिति रजिस्टर लाओ” साहब ने आदेश दिया।
मास्टर जी ने तुरंत उन्हें रजिस्टर खोल कर थमा दिया। साहब ने रजिस्टर देखा और बोले,” कितने का स्टाफ है?”
मास्टर जी का मन तो आया कि बोल दें कि जब मुझी से पूछना था तो रजिस्टर में क्या देख रहे थे? किन्तु प्रत्यक्ष में बोले”जी साहब तीन”
“शेष दो कहाँ हैं?” उन्होंने साहबी अंदाज़ में पूछा।
मास्टर जी ने बताया ,”जी बात ये है कि एक ने छुट्टी ले रखी है।”
“दूसरा?”
“जी वो भी छुट्टी पर हैं”
एस डी एम साहब ने मन में सोचा कि चाहता तो दोनों की छुट्टी एक साथ बता देता किन्तु प्रत्यक्ष में बोले,”ह्म्म्म”
“जब अध्यापक कम हैं तो छुट्टी क्यों दिया?” उन्होंने मास्टर जी को घूरकर देखा।
“जी,एक की माँ बीमार है और दूसरे के बहन की कल शादी है”
मास्टर जी ने तत्काल उत्तर दिया।
“और ये दीवार को कोयले से क्यों काला कर रखा है…और ये देखो कितनी गन्दी बातें लिखी हैं…यही पढ़ाते हो बच्चों को?” उन्होंने क्रोधित होने का अभिनय किया।
मास्टर जी ने पुनः तत्काल उत्तर दिया,” जी गाँव के अराजक तत्त्व लिख जाते हैं…उन पर हमारा बस नहीं है।”
एस डी एम साहब क्लास के अन्दर घुस गये। एक बच्चे को खड़ा किया और पूछा,” किस कक्षा में हो”
बच्चे ने जवाब दिया,” पाँच में हई”
उन्होंने पूछा,”उन्नीस का पहाडा सुनाओ।”
बच्चे ने फर्राटे से सुना दिया।
इसके बाद दूसरे बच्चे को खड़ा किया उसने भी सब सुना दिया।
चलते-चलते उन्होंने पूछा,” तुम्हारे क्षेत्र का एस डी एम कौन है?” किन्तु इसका जवाब कोई न दे सका…मास्टर जी भी बगले झाँकने लगे।
एस डी एम साहब ने मास्टर जी के कंधे पर हाथ रखा और कहा,”अच्छा है मास्टर जी,इसी तरह मेहनत करते रहिये।हमारा नाम श्याम किशोर अग्रवाल है…आपके क्षेत्र के एस डी एम हैं हम…बच्चों को हम लोगों का नाम भी बता दिया कीजिये”
“जी साहब,जरुर बताएँगे”
फिर वो अपने वाहन की ओर बढ़े…उन्हें वाहन की ओर बढ़ता देख वो लाल पट्टे वाला सींकिया जो कि उनका अर्दली था तेजी से वाहन की ओर दौड़ा। मास्टर जी को लगा की कहीं गश खाकर गिर न पड़े।
अर्दली ने गेट खोला…साहब के बैठने के बाद खुद आगे की सीट पर बैठ गया। तभी साहब ने इशारे से मास्टर जी को बुलाया। मास्टर जी दौड़ते हुए गए।
“मास्टर जी,अपने स्कूल का नाम तो बताइए”
“जी प्राथमिक विद्यालय बसन्तपुर”
“ठीक है मास्टर जी” साहब ने कहा और गाड़ी हवा हो गयी।

मास्टर जी बड़े प्रसन्न थे। उन्होंने तुरंत बगल के स्कूल को फ़ोन लगाया
“हेलो , हाँ मास्टर जी…एस डी एम साहब घूम रहे हैं…सब दुरुस्त कर लीजिये। हम तो पुराने खिलाडी हैं सम्भाल लिए….अरे प्रसन्न हो के गये हैं…आप नये हो पर घबराना नहीं…और सुनिए और लोगों को भी बता दीजियेगा।और हाँ बच्चों को एस डी एम साहब का नाम रटा दीजिये…श्याम किशोर अग्रवाल..
ठीक है रखते हैं।”
मास्टर जी अभी उसी खुमारी में थे कि मोबाइल की घंटी बजी । उन्होंने कॉल रिसीव किया,”हेलो जी सर…भेज ही रहे थे कि एस डी एम साहब आ गये…सॉरी सर बस दस मिनट में सेंड कर रहे हैं।”
खुमारी उतरते ही मास्टर जी फिर काम में लग गये।

मास्टर जी ने इस घटना का खूब प्रचार-प्रसार किया और सबकी खूब वाहवाही लूटी। अभी एक हफ्ते ही बीते थे कि उनको विभाग की तरफ से नोटिस मिल गयी। एस डी एम की निरीक्षण आख्या के आधार पर उन्हें निलम्बित कर दिया गया था। कारण पढ़कर मास्टर जी का सिर घूमने लगा। किन्तु फिर मन ही मन में खुद को मजबूत किया और फ़ोन मिलाया,” हाँ वकील साहब …मिलना है आपसे..ओके”
फिर फ़ोन काटकर भुनभुनाने लगे ” अब पता चलेगा कि किससे पाला पड़ा है?”

कोर्ट रूम खचाखच भरा हुआ था। तभी जज साहब प्रवेश करते हैं…सभी लोग खड़े होकर अभिवादन करते हैं। जज साहब अपनी कुर्सी पर बैठ जाते हैं…भीड़ को देखकर आश्चर्यचकित होते हैं और शर्मा वकील की तरफ देखकर कहते हैं,”क्यों भाई क्या बात हो गयी….आज तो काफी भीड़ है।”
शर्मा जी ने भीड़ की तरफ देखा और बोले “जी हुजूर ,ये सब अध्यापक लोग हैं ।”
जज साहब की समझ में कुछ नहीं आता…उन्होंने घडी की ओर देखा और बोले,” कार्यवाही प्रारम्भ की जाये।”
अर्दली उनके सामने फाइल रखता है और चीखता है,” रामरतन बनाम श्याम किशोर अग्रवाल ”
मास्टर रामरतन खड़े हो जाते हैं,”जी हुजूर”
जज साहब ने मास्टर जी को देखते हुए कहा,”अपने वकील को बुलाइए।”
तभी वकील तिवारी जी पसीना पोछते हुए अन्दर दाखिल होते हैं,”जी हुजूर आ गए हम”
जज साहब अर्दली से बोले,” अमां पंखा चलाओ यार…वकील साहब पसीना-पसीना हो गए हैं । कैसे बहस करेंगे।” फिर वकील साहब की ओर देखकर बोले,”हाँ तिवारी जी क्या समस्या हो गयी?”
तिवारी जी ने खखारकर गला साफ़ करते हुए कहा,” हुजूर,मेरा मुवक्किल रामरतन एक सरकारी मास्टर है…अभी कुछ दिनों पहले एस डी एम साहब ने मेरे मुवक्किल के विद्यालय का निरीक्षण किया और सब ठीक होते हुए भी उन गलतियों के लिए मेरे मुवक्किल को ससपेंड कर दिया,जो उसने की भी नहीं थी…इस प्रकार उन्होंने एक सम्मानित अध्यापक का मानसिक उत्पीडन किया है जो कि किसी भी प्रकार न्यायसंगत नहीं है…”
जज साहब ने फ़ाइल खोली और फिर बंद करके बोले,” क्या चाहते हैं आप?”
तिवारी जी बोले,”हम चाहते हैं कि एस डी एम साहब को बुलाकर उनसे उनको पद का दुरूपयोग करने के लिए सजा दी जाये और मेरे मुवक्किल के मानहानि के एवज में उसे एक करोड़ रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया जाये।”
जज साहब मुस्कुराये,” आप तो हमें आज्ञा दे रहे हैं।”
“माफ़ करें हुजूर हम तो आपसे विनती कर रहे हैं”
तिवारी जी हाथ जोडकर बोले।
जज साहब ने कहा,”हम अगली डेट पर एस डी एम साहब को तलब कर रहे हैं…इस मामले में तभी बात होगी।”
“जी हुजूर” तिवारी जी बोले।
जज साहब ने पंद्रह दिन बाद की डेट दे दी और फिर अगली फाइल देखने लगे।

एस डी एम साहब ऑफिस में बैठे ही थे की बाबू ने एक लिफाफा थमा दिया। उन्होंने खोला तो आश्चर्य में पड़ गये “कोर्ट का सम्मन !” आखिर रामरतन मास्टर कौन है? बहुत ध्यान करने के बाद उन्होंने अर्दली को बुलाया। अर्दली हाजिर हुआ,”जी साहब ”
“किशन ये बताओ.. ये मास्टर रामरतन कौन है?” उन्होंने पत्र को पढ़ते हुए पूछा।
अर्दली ने काफी दिमाग लगाया किन्तु उसे भी कुछ याद नहीं आया।
एस डी एम साहब पत्र को पढ़ते हुए बुदबुदाये…प्राथमिक विद्यालय बसन्तपुर..
अर्दली चौंका,”क्या बोला साहब आपने?”
साहब ने जोर से पढ़ा,”प्राथमिक विद्यालय बसन्तपुर”
“अरे साहब ये तो वही नहर किनारे वाला स्कूल है जहाँ आप निरीक्षण के लिए गये थे…अरे वही जहाँ का मास्टर अपनी कुर्सी से चिपका खड़ा था।”
वो चहक कर बोला
साहब ने उसे शक की निगाह से देखते हुए कहा,”इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो?”
किशन शर्माते हुए बोला,”जी उसी गाँव में मेरी ससुराल है…जरुर उसी मास्टर का नाम रामरतन होगा।”
एस डी एम साहब को अब विश्वास हो गया। उन्होंने किशन को जाने के लिए कहा और सोच में डूब गए।

ये मुकदमा सारे इलाके में चर्चा का विषय बन गया….जितने मुँह,उतनी बातें…कोई कहता अच्छा हुआ अब एस डी एम साहब को पता चलेगा…और कोई कहता कि मास्टर जी ने बहुत गलत किया…जल में रहकर मगरमच्छ से बैर कर लिया। भाई कुछ भी हो अधिकारी तो अधिकारी होता है। उधर मास्टर जी की पत्नी भी दिन में हजारों ताने देती और कोसती,”क्या जरूरत थी मुक़दमे-सुकदमे की ।सब पैसे का खेल है,कुछ दिन में बहाल हो जाते….मगर इनको कौन समझाए….मेरी तो किस्मत ही फूट गयी थी”
किन्तु मास्टर जी पर कोई प्रभाव न पड़ता…वो तो कुछ और ही सोच रहे थे।
सबसे अधिक उत्साह अध्यापकों और अधिकारियों में था ..कि जाने क्या होगा? कुछ अधिकारी भी मास्टर जी से खार खा बैठे कि अभी उछल लो बाद में बताएँगे।
खैर वो दिन भी आ गया …इस बार तो कोर्ट परिसर में तिल भी रखने की जगह नहीं थी। नीली बत्ती वाली गाड़ियाँ भी कतार में खड़ी थीं…और उधर सैकड़ों अध्यापकों का समूह भी इधर-उधर बिखरा हुआ था। सबकी जुबान पर इसी मुकदमे की चर्चा थी…एहतियातन प्रशासन ने पी ए सी तैनात कर दी । इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के लोगों में भी इस मुकदमे को लेकर उत्सुकता देखते ही बनती थी।
कोर्ट रूम में वादी-प्रतिवादी दोनों अपने वकीलों के साथ उपस्थित थे। तभी जज साहब ने अन्दर प्रवेश किया। सबने खड़े होकर जज साहब का अभिवादन किया। जज साहब कुर्सी पर बैठते ही बोले,”अमां आज कोई मेला-वेला है क्या?…इतनी भीड़!.. बाप रे!…क्यों शर्मा जी बात क्या है?”
शर्मा वकील ने पसीना पोछते हुए जवाब दिया,”हुजुर,आप जिस मुकदमें की आज सुनवाई करने वाले हैं,ये सब उसी को सुनने आये हैं।”
जज साहब बोले,”किन्तु ये नीली बत्तियां यहाँ क्या कर रही हैं..जिले की सारी समस्या समाप्त हो गयी क्या?…खैर कार्यवाही प्रारंभ की जाये।”
अर्दली ने फाइल उठाई और चीखा,”रामरतन बनाम श्याम किशोर अग्रवाल”
जज साहब ने फाइल खोली और बोले,”तिवारी जी कहाँ हैं?”
तभी तिवारी जी पसीना पोछते हुए अन्दर दाखिल हुए,”जी हुजूर”
जज साहब मुस्कुराते हुए बोले,” तिवारी जी आपकी इंट्री भी जोरदार होती है और पसीना तो बहता ही रहता है।”
अर्दली से,”पंखा चला दो यार”
“एस डी एम साहब आये हैं?” जज साहब ने सभी वकीलों को बारी-बारी से घूरते हुए कहा
“जी हुजूर” एस डी एम साहब खड़े होकर बोले।
“आपके वकील हैं…(वकालतनामा पढ़ते हुए) हाँ चंद्रजीत तेजा…कहाँ हैं?” जज साहब ने सिर खुजाते हुए पूछा।
“जी हुजूर ” एक लम्बे-चौड़े वकील ने सिर झुकाकर कहा।
जज साहब चौंके,”अरे तेजा साहब!आप तो सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हैं न!”
गर्व के साथ सीना तानकर तेजा बोले,”जी हुजूर।”
“बड़ा पैसा खर्च कर दिया एस डी एम साहब आपने ,डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के इतने बड़े वकील को ले आये…कितना कमाते हैं आप?” जज साहब बिना रुके बोले,”मुकदमे की कार्यवाही प्रारम्भ की जाये।”

मुकदमे की कार्यवाही प्रारम्भ हुई। तिवारी वकील ने मास्टर जी का पक्ष रखा और मास्टर जी के निलम्बन को नाजायज बताया। वकील तेजा ने अपनी दलील दी,” हुजूर, शिक्षा के मंदिर में दीवारों पर गालियाँ लिखी हों,तीन अध्यापकों के होते हुए भी मात्र एक अध्यापक का उपस्थित होना,दो सौ छात्र संख्या वाले विद्यालय में मात्र सत्तर बच्चे मिलना, मास्टर साहब के विद्यालय में होते हुए भी बाहर कुर्सी पर आराम फरमाना और बच्चों को एस डी एम साहब का नाम तक न पता होना….क्या ये सारे कारण मास्टर जी को ससपेंड करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं?”
जज साहब ने सोचते हुए कहा,”हाँ,पर्याप्त तो है।”
अध्यापकों में सन्नाटा छा गया जबकि अधिकारी वर्ग खुश नजर आ रहा था। सब तेजा वकील की बड़ाई कर रहे थे।

जज साहब ने तिवारी जी की ओर देखा,” अरे तिवारी जी,कोई काट है आपके पास तेजा साहब की बातों का।”
तिवारी जी जो कि मास्टर जी के साथ कुछ विचार विमर्श कर रहे थे…खड़े हुए और तेजा की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोले,” जी हुजुर,मेरे पास इनकी हर बात की काट है।”
भीड़ में हलचल मच गयी। कुछ कह रहे थे कि तेजा सुप्रीम कोर्ट का वकील है..तिवारी की धज्जियाँ उड़ा देगा तो तमाम लोग तिवारी के भी पक्ष में थे।
जज साहब ने घड़ी की ओर देखा और बोले,”चलिए आपकी बातें अगली डेट पर सुनते हैं…चूँकि मामला दिलचस्प है इसलिए कल की डेट लगाई जा रही है।”
एस डी एम साहब लगातार मास्टर जी को घूर रहे थे मगर …मास्टर जी ने उनकी ओर देखा भी नहीं। भीड़ धीरे-धीरे छँटने लगी और कोर्ट रूम खाली हो गया।

अगले दिन कोर्ट परिसर में और अधिक भीड़ थी….जज साहब ने तिवारी जी से अपनी बात रखने को कहा। तिवारी जी बोले,”हुजूर,मैं तेजा साहब से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ।”
“हाँ,हाँ जरुर पूछिये” जज साहब बोले।
“जी, मेरा प्रश्न ये है कि अगर किसी के घर में चोरी हो जाये तो आप चोर को गुनहगार मानेंगे या फिर घर के मालिक को?” तिवारी जी ने तेजा साहब की आँख में आँख डालकर पूछा।
तेजा को एक छोटे वकील से कतई ऐसी उम्मीद नहीं थी। कहाँ वो सुप्रीम कोर्ट के वकील….कहाँ तिवारी जी जिला न्यायालय के। जज साहब शायद भांप गए वो तुरंत बोले,”अरे तेजा साहब जवाब दे ही दीजिये…हो सकता है तिवारी जी को पता न हो।”
तेजा ने तिवारी को घूरते हुए कहा,”जाहिर है चोर को।”
” तो फिर स्कूल की दीवारों पर जिसने गालियाँ लिखी हैं वो गुनहगार है या फिर मास्टर जी…बोलिए तेजा साहब”तिवारी जी ने हाथ को झटकते हुए पूछा।
तेजा को कुछ न बोलते देख जज साहब ने कहा ,” बोलिए तेजा साहब , मैं आपसे कहूंगा तभी बोलेंगे क्या?”
तेजा ने कहा,” यकीनन लिखने वाला….किन्तु”
तिवारी जी चीखे,”फिर मेरे मुवक्किल को इस बिंदु पर निलम्बित क्यों किया गया? नोट किया जाये हुजूर ”
” मैं खुद ही नोट कर लेता हूँ यार….आप चीखा मत करिये प्लीज…पसीना पोछ लीजिये..”
जज साहब खीझ कर बोले।
“अब आप बताइए हुजूर अगर आपकी माँ बीमार हो या बहन की शादी हो तो क्या आप उस दिन कोर्ट में बैठकर सुनवाई करेंगे ?…क्या करेंगे आप?”
जज साहब ने सोचते हुए कहा,”छुट्टी लूँगा। भाई उनको भी तो मुझे ही देखना है।”
तिवारी जी ने तेजा की ओर देखकर कहा,” तो हुजूर अगर मेरे मुवक्किल ने इन परिस्थितियों में अपने अधीनस्थों को अवकाश दे दिया,जो कि उनका हक था,तो क्या गलत किया?”
जज साहब को संतुष्ट होता देखकर तेजा चिल्लाये,”महोदय , बच्चों का भविष्य भी तो देखना चाहिए…मैं तो अपने फर्ज से कभी गद्दारी न करूँ।”
तभी एक व्यक्ति अन्दर आया और तेजा के कान में कुछ कहा। तेजा साहब के माथे पर पसीना आ गया और वो अपनी कुर्सी पर धम्म से गिर पड़े।
कोर्ट रूम में शोरगुल होने लगा कि आखिर तेजा साहब को क्या हुआ? तभी तेजा उठे और बोले,”जज साहब मेरे बेटे का एक्सीडेंट हो गया…मैं निकल रहा हूँ।”
तभी तिवारी जी ने तेजा के कंधे पर हाथ रखा और बोले,” तेजा साहब,शुभ समाचार है आपके लिए…आपके बेटे को कुछ नही हुआ..अब बताइए आप…जिस मुवक्किल ने आपको लाखों रुपये दिए,आप उसी को मंझधार में छोडकर चल दिए…कहाँ गया आपका फर्ज…ऐसा ही होता है..और सही होता है…जिस प्रकार आपको ऐसी खबर पर जाने का हक़ है ठीक वैसे ही सभी को है…कोई भी नौकरी रिश्तों और परिवार से बड़ी नहीं होती…इसीलिए मैं कहता हूँ कि मेरे मुवक्किल ने अपने दोनों अधीनस्थों को छुट्टी देकर कोई गुनाह नहीं किया..।”
तिवारी की जोरदार दलील पर कोर्ट रूम में ख़ामोशी छा गयी। ऐसी ख़ामोशी कि सुई भी गिरे तो बम जैसा धमाका हो। ख़ामोशी को तोडा जज साहब ने ” बहुत अच्छे तिवारी जी , आज मुझे पता चल गया कि आपने पसीना धूप में नहीं बहाया…किन्तु यार इतना भयंकर मजाक अच्छा नहीं होता…अभी तेजा साहब को कुछ हो जाता तो? तेजा साहब.. क्या आप तिवारी जी की बात से सहमत हैं?”
तेजा ने हाथ उठाकर सहमति में सिर हिला दिया। वो अभी भी सदमे में थे।
कोर्ट तालियों से गूँज उठा। एस डी एम साहब कुछ परेशान से दिख रहे थे जबकि मास्टर जी के चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
“बच्चों को एस डी एम साहब का नाम नहीं पता…निलम्बित करने का इससे बेहूदा कारण और कुछ नहीं हो सकता….अन्य दो बिन्दुओं को स्पष्ट करने के लिए मैं खंड शिक्षा अधिकारी महोदय को बुलाना चाहूँगा।” तिवारी जी ने कहा।
जज साहब ने घडी की ओर देखा और फाइल पर डेट लिखते हुए बोले,” अब सुनवाई तीन दिन बाद होगी ”

मास्टर जी और एस डी एम साहब के बीच का ये मुकदमा अब सामान्य जन के बीच भी चर्चित हो चुका था। इसका फैसला क्या होगा ?सबके बीच यही चर्चा होती रहती थी। मीडिया भी प्रतिदिन की सुनवाई को प्राथमिकता के आधार पर प्रकाशित करती थी।
आज सुनवाई का चौथा दिन था ।तिवारी जी ने खंड शिक्षाधिकारी को बुलाने की इजाजत मांगी। इजाजत मिलने पर खंड शिक्षा अधिकारी अजय वर्मा सामने आये…तिवारी जी ने पूछा,”वर्मा जी पिछली ग्यारह तारीख को जब एस डी एम साहब ने रामरतन जी का विद्यालय चेक किया था, उस दिन आपने उनके पास फ़ोन किया था?एक बार लगभग दस बजे फिर दुबारा लगभग ग्यारह बजे….जैसा कि मास्टर जी के कॉल डिटेल में पता चला है।”
“क्या आपको याद है?”
वर्मा जी ने याद करते हुए कहा,” हाँ जी ,मुझे अच्छी तरह याद है।”
” क्या आप कोर्ट को बताएँगे कि आपने फ़ोन किसलिए किया था?” तिवारी जी ने पूछा।
” जी,बात ये थी कि बी एस ए ऑफिस से एम डी एम के सम्बन्ध में जानकारी मांगी गयी थी…. जिसके सम्बन्ध में मेरी मास्टर जी से बात हुई थी” बी ई ओ साहब ने बताया।
तभी तेजा साहब बिफर पड़े,” ये क्या नाटक हो रहा है हुजुर?इन सब बयानों से मुकदमे का क्या ताल्लुक?”
तिवारी जी बोले,” तेजा साहब आपने आरोप लगाया था कि मेरा मुवक्किल कुर्सी पर आराम फरमा रहा था तो मैं कोर्ट को बताना चाहूँगा कि जब सवा दस बजे एस डी एम साहब विद्यालय पहुंचे तो मेरा मुवक्किल बी ई ओ साहब द्वारा मांगी गयी सूचना तैयार कर रहा था। इस सम्बन्ध में मास्टर जी से बिना पूछताछ किये उन्हें निलंबित कर दिया गया। ये कहाँ का न्याय है हुजूर?”
जज साहब ने सहमति में सिर हिलाया।
“और जहां तक बच्चों की उपस्थिति का मामला है…ये सबको पता है कि ये बच्चे…बच्चे नहीं बल्कि घर के बड़े होते हैं जो कि दो जून की रोटी के लिए खेतों में पिता का हाथ बंटाते हैं…हुजूर ये बात सरकार को भी पता है इसीलिए वो केवल साठ प्रतिशत बच्चों के लिए ही अनाज भेजती है…फिर भी मेरे मुवक्किल ने तीन बार अभिभावक सम्पर्क किया ताकि बच्चे विद्यालय में उपस्थित हों…अगर फिर भी बच्चे नहीं आते तो मास्टर जी का क्या दोष….हुजूर ये रहा वो रजिस्टर जिस पर जनसंपर्क के दौरान अभिभावकों ने अपने हस्तक्षर किये हैं?” तिवारी जी ने बताया और रजिस्टर जज साहब की ओर बढ़ा दिया?”

जज साहब ने रजिस्टर देखा और एस डी एम साहब की ओर देखकर बोले,”एस डी एम साहब, आप कुछ कहना चाहेंगे?”
एस डी एम साहब खड़े हुए और बोले,”जी हुजूर, मैं देख रहा हूँ कि जबसे ये मुकदमा शुरू हुआ है…कोर्ट को ऊल-जुलूल तर्कों से गुमराह किया जा रहा है…सबको पता है कि एक विद्यालय की जिम्मेदारी उस विद्यालय के हेडमास्टर की होती है..किन्तु यहाँ अपनी गलतियों पर झूठ की राख डालकर सच्चाई को दबाने की कोशिश की जा रही है….अगर मास्टर जी के अंदर योग्यता होती तो आज वो निलम्बित न हुए होते। मैं तो कहता हूँ कि गरीब बच्चों के भविष्य से खेलने वाले इस मास्टर को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए।”
जज साहब ने मुस्कुराते हुए कहा,”वो सब तो मैं देख ही रहा हूँ…थोडा मास्टर के आगे जी लगा देते तो शायद मैं आपको सम्मान की दृष्टि से देखता…खैर,
तिवारी जी बहस पूरी हुई ..अगली डेट पर फैसला सुनाया जायेगा।एस डी एम साहब,तेजा वकील सिर झुकाए हुए बाहर जाने लगे तभी मास्टर जी उठे और जज साहब से बोले,”हुजूर,मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ ।”
सबकी निगाह मास्टर जी पर जाकर ठहर गयी ।सबके दिमाग में एक ही बात थी कि मास्टर जी तो केस जीत रहे हैं फिर क्या बोलना चाहते हैं। जज साहब ने कहा,”हाँ मास्टर जी,बोलिए।”
मास्टर साहब एस डी एम साहब की ओर देखकर बोले,”हुजूर अभी-अभी आदरणीय एस डी एम साहब ने मुझे अयोग्य कहा..ठीक है..मैं अयोग्य हूँ। किन्तु क्या एस डी एम साहब किसी भी विद्यालय में इन्चार्ज बनकर अपनी सेवा दे सकते हैं….मैं अदालत से दरख्वास्त करता हूँ की एस डी एम साहब को कम से कम एक महीने तक किसी विद्यालय में इन्चार्ज के पद पर रखा जाये..,जिससे कि हमें काम करने का तरीका पता चल सके। बच्चों के भविष्य के लिए ये आवश्यक है। अगर इन्होने उन्हीं सुविधाओं के अंतर्गत जो कि मुझे मिलती थी और बिना अपने एस डी एम के अधिकारों का प्रयोग किये वो सब कर दिखाया जिसकी वजह से मैं सस्पेण्ड किया गया तो मैं खुद को अयोग्य मानते हुए अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दूंगा ।”
“ये कैसे हो सकता है?मैं एक एस डी एम हूँ। मेरी कोई इज्जत है … मैं मास्टर का काम करूँ…असंभव।” एस डी एम साहब ने भड़कते हुए कहा।
जज साहब ने कुछ देर सोचा फिर बोले,” मेरे ख्याल से मास्टर जी ठीक कह रहे हैं…जिस वजह से आपने उन्हें अयोग्य कहा निश्चित रूप से उन वजहों को दूर करने का प्लान तो आपके पास होगा ही…बच्चों की भलाई के लिए कोर्ट आपसे उम्मीद करती है कि आप इस ड्यूटी का जिम्मेदारी से निर्वहन करेंगे…आज से कोर्ट आपको तीन माह के लिए प्राथमिक विद्यालय बसंत पुर का इन्चार्ज नियुक्त करती है…आप कल विद्यालय में ज्वाइन करेंगे और तीन माह के लिए आपके इलाके का एस डी एम प्रभार किसी और को दे दिया जायेगा…ठीक तीन माह बाद मैं खुद विद्यालय का निरीक्षण करूँगा। अगली सुनवाई तीन माह के बाद…”
जज साहब ने फाइल बंद की और अपने केबिन में चले गए। सबके चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे….तिवारी वकील भी मास्टर जी के इस कदम पर भौंचक रह गए। एस डी एम साहब ने क्रोध से मास्टर जी की ओर देखा किन्तु मास्टर जी बिना कोई प्रतिक्रिया दिए कोर्ट रूम से निकल गये।

एस डी एम साहब के मास्टर बनने की खबर को मीडिया ने खूब प्रसारित किया। इस खबर का सबसे ज्यादा प्रभाव किसी पर पड़ा तो वो थी एस डी एम साहब की पत्नी सावित्री….कॉलोनी में बेइज्जती के डर से वो अपने बच्चों के साथ मायके चली गयीं। मास्टर साहब की पत्नी भी अपनी किस्मत को कोस रही थी और उन्हें अपने पति के वक़्त के पहले सठियाने का पूरा विश्वास हो चुका था।
उधर अगले दिन एस डी एम साहब अपनी आदत के अनुसार नौ बजे सोकर उठे।नहाते-धोते उन्हें दस बज गये। उन्होंने समाचार देखने के लिए टी वी चलायी तो उनके प्राण सूख गए। टी वी में उनके स्कूल न पहुचने की खबर प्रसारित हो रही थी। अब एस डी एम साहब को याद आया कि आज तो उन्हें स्कूल जाना था। वो जल्दी-जल्दी तैयार हुए और बाहर निकलकर देखा तो उनकी नीली बत्ती वाली कार नदारद थी। जानकारी करने पर पता चला कि कोर्ट के आदेश पर उनकी एस डी एम वाली सारी सुविधाएँ तीन माह के लिए हटा ली गयी हैं। वो तुरंत टैक्सी स्टैंड की और भागे। टैक्सी पकड कर वो चौराहे पर पहुंचे जहां से उन्हें पांच किलोमीटर अंदर जंगल से गुजर कर जाना था। दुर्भाग्य से उस रास्ते पर कोई वाहन नहीं चलता था। एस डी एम साहब पैदल ही स्कूल के लिए चल पड़े।

रास्ते भर वो डरते हुए लगभग एक बजे किसी तरह विद्यालय के समीप पहुचे।उन्होंने देखा कि प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लोग उनके स्कूल न पहुँचने की खबर जोर-शोर से प्रसारित कर रहे थे। एस डी एम साहब के पहुँचते ही सब उनकी और दौड़े और प्रश्नों की बौछार कर दी। चूंकि एस डी एम साहब बहुत ज्यादा थक चुके थे इसलिए वो वहीँ जमीन पर बैठ गये…सारा गाँव नए मास्टर जी को देखने के लिए जमा हो गया था। उन्होंने पीने के लिए पानी माँगा तो गाँव वालों ने एक लोटा पानी दिया किन्तु पानी से आती बदबू के कारण वो इसे पी न सके। गाँव वालों ने बताया कि पुराने मास्टर जी ने पाँच बार प्रधान और तीन बार बी डी ओ को प्रार्थना पत्र दिया किन्तु नल आज तक नहीं बना। मास्टर जी एक ड्रम पानी एक किलोमीटर दूर से खुद अपनी साइकिल पर लेकर आते थे। अब सबको नए मास्टर जी अर्थात एस डी एम साहब से पूरी उम्मीद थी कि वो सारी परेशानी दूर कर देंगे।

एस डी एम साहब स्कूल के अन्दर पहुँचे..। दोनों सहायक अध्यापक गिरजाशंकर और प्यारे लाल सहित रसोइयाँ और बच्चे उन्हें ऐसा घूर रहे थे जैसे कि कोई अजूबा आ गया हो। एस डी एम साहब कुर्सी पर ढेर हो गये और गिरजाशंकर से बोले,”चपरासी को बुलाओ।”
गिरिजाशंकर भी कम रंगबाज नहीं थे। उनका दूर का कोई रिश्तेदार मंत्री था। इसलिए वो भी किसी को कुछ नहीं समझते थे…अकड़कर बोले,” खुद ही बुला लीजिये।”
तभी प्यारे लाल जो कि बहुत सीधे इन्सान थे,दौड़कर आये और बात को सँभालते हुए बोले,’ अरे सर जी,आपको पता नहीं क्या?सरकारी स्कूलों में चपरासी नहीं होते। सारा काम आपको खुद ही करना है।”
एस डी एम साहब ने अपनी थकी हुई आँखों को खोलने का प्रयास करते हुए कहा,” बड़ी अजीब बात है….यहाँ चपरासी नहीं होते। ओके मेरे लिए एक गिलास पानी लाओ।” उन्होंने गिरिजाशंकर की ओर इशारा करके कहा। अब तो गिरिजाशंकर जी तैश में आ गये,बोले,”हम मास्टर हैं,किसी के बाप के नौकर नहीं…खुद ले लो।”
एस डी एम साहब को भी गुस्सा आ गया..मेज पर हाथ मारते हुए बोले,” तुम शायद नहीं जानते कि मैं कौन हूँ?”
गिरिजाशंकर बोले,” मैं तो आपको जानता हूँ…पर आप मेरे बारे में पता कर लीजिये…और हाँ चल रहा हूँ ।कल से प्यारे लाल जी के साथ पढ़ाइये।”
और अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट करके चले गये।प्यारेलाल जी एस डी एम साहब को नार्मल करने की कोशिश करने लगे।

उस दिन प्यारेलाल एस डी एम साहब को अपनी साइकिल से चौराहे तक छोड़ आये। घर आकर एस डी एम साहब सोच विचार में डूब गए। अंत में उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार करने का मन बना लिया। उन्होंने रातों-रात एक कार का इंतजाम किया और खा-पीकर जल्दी सो गये।
अगले दिन वो समय से विद्यालय पहुँच गए। प्यारेलाल जी उनका इन्तजार कर रहे थे। उनके पहुँचते ही प्यारेलाल जी ने अभिवादन किया और चाबी लेकर कमरे खोलने लगे। एस डी एम साहब ऑफिस के अन्दर पहुँचे…हेडमास्टर की वही कुर्सी अन्दर रखी थी जिस पर एक दिन वो अपने अहंकार को पोषित करने के लिए मास्टर जी को हटा कर बैठे थे। उन्हें आभास हो रहा था जैसे कि वो कुर्सी उनकी खिल्ली उड़ा रही हो। उनकी उस कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं हुई। उन्होंने अपने लिए एक अलग कुर्सी रखवाई और प्यारेलाल जी से बोले,” गिरिजाशंकर जी नहीं दिख रहे।”
“जी,उन्होंने अपना अटैचमेंट दूसरे विद्यालय में करवा लिया।” प्यारेलाल जी ने बताया।
“ओह! चलिए बच्चों की प्रार्थना करवाते हैं।” विद्यालय के प्रांगण में पहुचकर उन्होंने प्रार्थना करवाई और प्यारेलाल जी से हाजिरी लेने को बोला।तभी रसोइयाँ आकर बोली,”मास्टर जी, पानी का इंतजाम करिए वर्ना खाना नहीं बनेगा।”
मास्टर जी ने विद्यालय के दो बच्चों को ड्रम और प्यारेलाल जी की साइकिल देकर पानी मंगवाया। इस समस्या का समाधान इतनी आसानी से हो जायेगा,उन्होंने सोचा भी न था। अब उन्होंने सबसे पहले नल बनवाने की सोची। प्रधान को प्रार्थना-पत्र लिखते वक़्त उनकी आँखों में न जाने क्यों आंसू आ गए। किन्तु प्रार्थना-पत्र लेकर प्रधान के पास जाने की उनकी हिम्मत नहीं पड़ी। उन्होंने प्रधान के पास फ़ोन किया,”प्रधान जी,मैं एस डी एम श्यामकिशोर अग्रवाल बोल रहा हूँ….तीन महीनों के लिए मुझे बसन्तपुर के सरकारी विद्यालय का चार्ज मिला है। यहाँ का हैंडपम्प कल तक ठीक हो जाना चाहिए।”
तभी बच्चों का शोरगुल सुनाई दिया। बच्चों के बीच लड़ाई हो गयी थी जिसमे एक बच्चे का सर फुट गया। बच्चा रोते-रोते अपने घर पहुँच गया।कुछ देर में बच्चे के माता-पिता आ गए और एस डी एम साहब को खूब बुरा-भला कहा। एस डी एम होते हुए भी आज न जाने क्यों उन्हें डर का आभास हुआ।खैर,किसी तरह ये दिन भी गुजर गया।

अगले दिन अखबार पढ़ते वक़्त एक समाचार पढ़कर एस डी एम साहब सकते में आ गए। समाचार ये था कि ‘प्रा वि बसन्तपुर में बच्चों से करायी जा रही मजदूरी’ और बच्चों की साइकिल पर पानी लाने की फोटो भी लगी थी।अभी वो समाचार पढ़ ही रहे थे की मोबाइल का रिंगटोन बजा…उन्होंने देखा,फोन डी एम साहब का था..।उनके इस कृत्य पर डी एम साहब ने फ़ोन पर खूब फटकारा। इस घटना पर लीपा-पोती करने के आश्वासन के साथ ही उन्हें सचेत रहने की हिदायत दी गयी।
आज तीसरा दिन था।एस डी एम साहब एक पेंटर को लेकर गए और उसे विद्यालय पेंट करने का ठेका दे दिया। दो दिनों में विद्यालय चमकने लगा। उन्होंने गाँव के लोगों की एक मीटिंग बुलाई और कहा,”देखिये,आप सबको पता होगा कि मैं एस डी एम हूँ…तीन महीनों के लिए मैं चार्ज पर हूँ। इसके बाद मैं पुनः एस डी एम बन जाऊँगा…अगर किसी ने इन दीवारों पर खरोचने की जुर्रत की तो उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी।” गाँव के सीधे-सादे लोग डर गए और स्कूल के अन्दर जाना ही छोड़ दिया। इसी प्रकार डर दिखाने के कारण कोटेदार,जो कि मास्टर जी को गल्ला देने से पहले हर बोरी से दस किलो निकाल लिया करता था…अब पूरा गल्ला खुद ही स्कूल में पहुंचा दिया करता था जबकि मास्टर जी को हमेशा गल्ला लेने खुद जाना पड़ता था। इसी प्रकार भय दिखाकर उन्होंने सारी व्यवस्था कर ली।
एक दिन अचानक खबर आई की प्यारेलाल जी की माता जी अब इस दुनिया में नहीं रहीं…।एस डी एम साहब ने लम्बी छुट्टी देने से साफ़ मना कर दिया। मजबूरन प्यारेलाल जी ने दो महीने का चिकित्सीय अवकाश ले लिया। अब एस डी एम साहब अकेले रह गये।

अगले दिन एस डी एम साहब विद्यालय पहुँचे…देखा तो काफी गंदगी फैली हुई थी। उन्होंने रसोइयाँ से सफाई के लिए कहा तो बोली,”देखो साहब जी, हमारा काम है खाना बनाना…ई सफाई ओफाई हम नहीं करेंगे।”
” तो फिर कौन करेगा? इस ग्रामपंचायत में तो कोई सफाई कर्मी भी नहीं है।”उन्होंने गंदे विद्यालय परिसर को देखते हुए कहा।
रसोइयाँ ने झाड़ू की और इशारा करते हुए कहा,” वो झाड़ू रखा है…उठाइए और शुरू हो जाइये। मास्टर जी भी खुद ही झाड़ू लगाते थे।”
एस डी एम साहब को बड़ा अजीब सा महसूस हुआ कि मास्टर को झाड़ू भी खुद ही लगाना पड़ता है। उन्हें ये काम करना गवारा न हुआ ।बच्चे आये और प्रार्थना आदि के पश्चात कक्षा में बैठ गए। एस डी एम साहब बच्चों की हाजिरी ले ही रहे थे कि उनका मोबाइल बज उठा,” सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।” उन्होंने फ़ोन रिसीव किया दूसरी तरफ से आवाज आई,” हाँ जी मास्टर साहब, छात्र संख्या बनाकर सेंड कीजिये।” और फ़ोन कट गया।
उन्होंने प्यारे लाल जी को फ़ोन मिलाया और बोले,”अरे प्यारे लाल जी…क्या इस विद्यालय में कोई क्लर्क नहीं है…सूचना बनाकर भेजना है।”
” अरे सर जी, सरकारी स्कूल में क्लर्क नही होता…सब कुछ आपको ही करना पड़ेगा…मास्टर जी भी खुद ही करते थे। प्यारेलाल जी ने बताया और फ़ोन काट दिया।
वो सूचना बनाने के लिए बैठे किन्तु बच्चों के शोरगुल के आगे दिमाग ही काम नहीं कर रहा था। फिर उन्होंने सोचा कि बच्चों को कुछ काम दे दिया जाय तो शोरगुल बंद हो जायेगा।पहली बार एस डी एम साहब कक्षा में गए….देखा तो एक से लेकर पांच तक के बच्चे सब एक साथ ही बैठे थे और आपस में खूब लड़-झगड़ रहे थे। काफी शोरगुल था…वो चिल्ला रहे थे किन्तु बच्चे आपस में ही बात करने में मस्त थे। तभी कक्षा एक व दो के बच्चे अपनी कापी लेकर चारों और खड़े हो गये और सब चिल्लाने लगे,” मास्टर जी काम दे दो।”
या डी एम साहब ने उन्हें किसी तरह बैठाया। सारी कक्षाओं के बच्चे एक साथ बैठे थे इसलिए उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि काम क्या देना चाहिए? तभी फिर फ़ोन बज उठा। उन्होंने उठाया तो शीघ्र सूचना देने को कहा गया। उन्होंने बच्चों को किताब पढने को कहा और ऑफिस में जाकर बैठ गये।सूचना के लिए कागज पर लाइन खींच ही रहे थे कि बच्चों का शोरगुल सुनकर उन्हें क्रोध आ गया। उन्होंने डंडा उठाया और सारे बच्चों को जमकर पीटा।
तभी मोबाइल का रिंगटोन फिर बजा।उन्होंने कॉल रिसीव किया…उधर से फिर सूचना देने के लिए कहा गया।
एस डी एम साहब क्रोध में बोले,”कैसे दूं सूचना? मैं अकेला क्या-क्या करूँ….न तो क्लर्क है…न तो टीचर्स है…और न सफाईकर्मी…आखिर आप नये टीचर्स क्यों नहीं भेजते..मैं कोई अलादीन का जिन्न थोड़ी न हूँ…मजाक बना कर रख दिया…”
उधर से आवाज आई,”जल्दी भेजिए…बहाना मत करिये…मास्टर जी की सूचना सबसे पहले आ जाती थी और आप तो कुछ करना ही नहीं चाहते।” इतना कहकर फ़ोन काट दिया गया।
तभी रसोइयाँ आई और बोली,”चलो साहब बच्चों को खाना खिलवाओ।”
अब एस डी एम साहब का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया।चीख कर बोले,”अब मैं चलूँ खाना भी खिलाऊं बच्चों को…तुम लोगों को क्या मुफ्त में वेतन दिया जाता है।”
रसोइयाँ ने कुछ देर तक उन्हें घूरकर देखा और फिर भुनभुनाते चली गयी ,”हुंह…बड़ा चले थे मास्टर बनने…एक हजार रुपल्ली में जैसे हमको खरीद लिए हैं।”
एस डी एम साहब खून का घूँट पीकर रह गए। आज उन्हें अपने वो दिन याद आ रहे थे जब वो ए सी वाले ऑफिस में बैठते थे और बड़े-बड़े लोग उनके सामने सर झुकाते थे।
धीरे-धीरे एस डी एम साहब चिडचिडे होते चले गए। बात-बात में बच्चों को पीटना उनकी आदत बन गयी। जिसका परिणाम ये हुआ की बच्चों ने स्कूल आना बंद कर दिया।एस डी एम साहब का शरीर भी टूटने लगा। उन्हें अपने चारों ओर मास्टर जी ही दिखाई पड़ते थे। खैर धीरे-धीरे तीन महीने बीत गए और आज जज साहब के निरीक्षण का दिन था
जज साहब और उनके साथ पुलिस और मीडिया की गाड़ियों ने भी दनदनाते हुए विद्यालय में प्रवेश किया। गाडी से उतरकर जज साहब समेत सारे लोगों ने एस डी एम साहब की हरकत देखी तो उनकी आँखें फटी रह गयी ।
एस डी एम साहब कोयला लेकर दीवार पर खरोच रहे थे। विद्यालय में एक भी बच्चा दिखाई नहीं दे रहा था….विद्यालय परिसर में गंदगी का अम्बार था। सारी रसोइयाँ डरी-सहमी बैठी हुई थीं। एस डी एम साहब काफी कमजोर दिखाई दे रहे थे। जज साहब एस डी एम साहब के पास पहुँचे और उन्हें पुकारा,”एस डी साहब….एस डी एम साहब..।” किन्तु एस डी एम साहब तो जैसे कुछ सुन ही नही रहे थे। जज साहब को मामले की गंभीरता का एहसास हुआ। उन्होंने तुरंत एम्बुलेंस बुलाई और एस डी एम साहब को अच्छे अस्पताल में भर्ती कराया गया।
मास्टर जी को जैसे ही पता चला वो भागते हुए अस्पताल पहुँचे…। वहाँ पर मास्टर गिरिजाशंकर भी उपस्थित थे। उनकी आँखों में पश्चात्ताप के आँसू थे…सबसे यही कह रहे थे कि सब उनकी वजह से हुआ है…अगर वो सहयोग करते तो ये दिन न देखना पड़ता। खबर पाकर प्यारेलाल जी भी दौड़े चले आये….विद्यालय की रसोइयाँ भी अपने कटु वचनों के लिए दुखी थी। मास्टर जी भागकर एस डी एम साहब की पत्नी के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर बोले,”भाभी जी,मुझे माफ़ कर दीजिये…सब मेरी वजह से हुआ है…सच मानिये मुझे नहीं पता था कि स्थिति इतनी गंभीर हो जाएगी।”
एस डी एम साहब की पत्नी रोते हुए बोली,” नहीं भाई साहब,आपकी कोई गलती नहीं है…इसकी दोषी तो मैं हूँ….वो कभी इस स्थिति में न पहुँचते,अगर मैंने एक पत्नी का फर्ज निभाते हुए मुसीबत में इनका साथ दिया होता….इंसान कितना भी मजबूत हो किन्तु अगर उसके अपने साथ न दें तो वो टूटकर बिखर जाता है…और मैं अभागिन उनकी अर्धांगिनी होते हुए भी उनका साथ छोडकर चली गयी….ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा।” इतना कहकर वो फूट-फूटकर रो पडीं।

दो-चार दिन इलाज होने के बाद एस डी एम साहब के स्वास्थ्य में सुधार हुआ तो मास्टर जी, उनकी पत्नी, मास्टर गिरिजाशंकर,प्यारेलाल जी उनसे मिलने उनके आवास पर पहुँचे…एस डी एम साहब अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे…बगल में उनकी पत्नी और बेटा बैठे हुए थे। मास्टर जी को देखते ही एस डी एम साहब बैठने का प्रयास करने लगे…ये देखकर मास्टर जी बोले,”अरे नहीं साहब, लेटे रहिये..और बताइए..कैसे हैं आप?”
एस डी एम साहब तकिए पर टेक लगाकर बैठ गए और बोले,” अब बेहतर हूँ मास्टर जी…और बताइए ,अब तो आप मुकदमा जीत गए।”
इसके पहले कि मास्टर जी कुछ बोलते…जज साहब ने अन्दर प्रवेश किया..सबने उनका अभिवादन किया..एस डी एम साहब की पत्नी ने सबके लिए चाय नाश्ते का प्रबंध किया…इधर-उधर की बातें होती रहीं..जज साहब बोले,” एस डी एम साहब,मास्टर जी ने अपना केस वापस ले लिया है…और मैंने इनकी बहाली का आर्डर भी दे दिया है…किन्तु आप बताइए आपको क्या महसूस हुआ इन तीन महीनों में?”
एस डी एम साहब ने अपनी पत्नी की ओर देखा और बोले,” हुजूर, मैंने इन तीन महीनों में यही महसूस किया कि एक सरकारी स्कूल का मास्टर एक साथ कई जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है….चपरासी, क्लर्क, सफाईकर्मी, पत्रवाहक, शिक्षक, मजदूर सब कुछ वही होता है…फिर भी उस पर नकारा होने का आरोप लगता है…हाँ,कुछ लोग गलत होते हैं किन्तु कुछ लोगों के कारण पूरे विभाग की छवि ख़राब होती है…एक प्राइवेट स्कूल का मैनेजर अपने विद्यालय की कमियों को छुपाकर चुपचाप उसमे सुधार कर लेता है किन्तु हम जैसे अधिकारी और जनता के प्रतिनिधि अपने ही सरकारी स्कूलों की कमियों का प्रचार करते हैं,उनका वीडियो बनाकर वायरल करते हैं…सुधार करने की जगह शिक्षकों का मनोबल गिराने का काम करते हैं…ये किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।”
फिर कुछ देर रुककर बोले,” अगर सरकारी नुमाइन्दे और शिक्षक एक दुसरे का सहयोग करें तभी सुधार संभव है…।”
फिर मास्टर जी की ओर देखकर बोले,”मास्टर जी, जब मैने पहले दिन विद्यालय के कार्यालय में प्रवेश किया तो आपकी कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं जुटा सका…इसलिए नहीं कि मैं एस डी एम था बल्कि इसलिए कि मुझे बचपन की वो घटना याद आ गयी जब मैं स्कूल में अपने मास्टर जी की कुर्सी पर बैठ गया था तब उन्होंने मुझे समझाया था कि बेटा…इस कुर्सी की इज्जत करना…तुम कितने भी बड़े अधिकारी की कुर्सी क्यों न हासिल कर लो किन्तु वो कुर्सी कभी इस कुर्सी की बराबरी नही कर सकती…और इन तीन महीनों में मैंने महसूस किया कि वो सच कहते थे…मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।”
मास्टर जी एस डी एम साहब का हाथ पकड कर बोले ,” ऐसा कहकर आप मुझे शर्मिंदा न करें…वैसे एक बात बताऊँ?”
” हाँ,हाँ बताइए मास्टर जी।” एस डी एम साहब बोले।
” आपकी तोंद ख़त्म हो गयी…अब आप पूरी तरह फिट दिखाई दे रहे हैं।” मास्टर जी मुस्कुराते हुए बोले।
एस डी एम साहब भी उसी अंदाज में बोले,”मैं भी एक बात बताऊँ?”
“हाँ,हाँ जरूर।”मास्टर जी बड़ी आत्मीयता से बोले।
” अब आपकी तोंद निकल आई है।” एस डी एम साहब ने शरारत भरे अंदाज से मास्टर जी की तोंद पर मुक्का मारते हुए कहा।
उनके इस अंदाज से सब ठहाका लगाकर हँस पड़े। इन ठहाकों ने सबके मन का मैल धो दिया।

(समाप्त)

written by – sanjay kaushambi

Language: Hindi
372 Views
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