मापनी
मापनी
परिभाषा
किसी काव्य पंक्ति की लय को निर्धारित करने के लिए प्रयुक्त मात्राक्रम को ‘मापनी’ कहते है।
उदाहरणार्थ: ‘लेखनी की साधना है ब्रह्म की आराधना’ इस पंक्ति की मापनी है –
2122 2122 2122 212 (अंकावली)
गालगागा गालगागा गालगागा गालगा (लगावली)
जबकि लघु को 1 या ल से तथा गुरु को 2 या गा से प्रदर्शित किया गया है। यहाँ पर उल्लेखनीय है कि लिखने या टंकण करने की दृष्टि से अंकावली उत्तम है जबकि लय-बोध की दृष्टि से लगावली उत्तम है। इस कृति में लय-बोध को वरीयता देते हुए मुख्यतः लगावली का ही प्रयोग किया गया है। लय-बोध ही मापनी का मुख्य उद्देश्य है और इस उद्देश्य से इसे काव्य-साधक यथारूचि किसी भी रूप में व्यक्त कर सकते हैं, यथा-
टंटनाटन् टंटनाटन् टंटनाटन् टंटनन् (घंटे का स्वर)
ढंढनाढन् ढंढनाढन् ढंढनाढन् ढंढनन् (बर्तन गिरने का स्वर)
गूँगुटर्गूँ गूँगुटर्गूँ गूँगुटर्गूँ गूँगुटर (कबूतर का स्वर)
काँवकाँकाँ काँवकाँकाँ काँवकाँकाँ काँवकाँ (कौवे का स्वर)
सम्प्रति इस कृति में लगावली को वरीयता दी गयी है जिसमें लघु के लिए ल और गुरु के लिए गा का प्रयोग किया गया है। यह प्रयोग व्यावहारिक है क्योंकि इसमें लघु और गुरु शब्दों के प्रथमाक्षरों का प्रयोग होने से अर्थ ग्रहण करने में सुविधा रहती है और उच्चारण से सटीक लय-बोध होता है तथा यह प्रयोग शास्त्र-सम्मत भी है क्योंकि गणों के सूत्र यमाताराजभानसलगा में लघु और गुरु के लिए क्रमशः ल और गा का प्रयोग किया गया है।
मापनी के मुख्य प्रकार
मापनी मुख्यतः दो प्रकार की होती है –
(1) वाचिक मापनी
इसमें वाचिक भार का प्रयोग किया जाता है जैसे मात्रिक छन्द गीतिका की सोदाहरण वाचिक मापनी निम्नवत है –
लेखनी की/ साधना है/ ब्रह्म की आ/राधना अथवा
हे प्रभो आ/नंददाता/ ज्ञान हमको/ दीजिए
2122 2122 2122 212 (अंकावली)
गालगागा गालगागा गालगागा गालगा (लगावली)
इसके किसी भी गुरु के स्थान पर उच्चारण के अनुरूप दो लघु का प्रयोग किया जा सकता है जैसे दूसरे उदाहरण में गुरु के स्थान पर ‘हम’ का प्रयोग है। वाचिक मापनी का उपयोग मुख्यतः मात्रिक छंद, मुक्तक, गीतिका, गीत, ग़ज़ल और अन्य छंदाधारित कविताओं में होता है।
(2) वर्णिक मापनी
इसमें वर्णिक भार का प्रयोग होता है जैसे वर्णिक छन्द सीता की वर्णिक मापनी निम्नवत है (मात्रिक छन्द ‘गीतिका’ वास्तव में वर्णिक छन्द ‘सीता’ का ही वाचिक रूप है) –
लेखनी की/ साधना है/ ब्रह्म की आ/राधना अथवा
2122 2122 2122 212 (अंकावली)
गालगागा गालगागा गालगागा गालगा (लगावली)
इसके गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग करने की छूट बिलकुल नहीं होती है, इसीलिए दूसरी पंक्ति को वर्णिक मापनी के उदाहरण में नहीं लिया जा सकता है। वर्णिक मापनी का उपपयोग मुख्यतः वर्णिक छंदों में होता है। मापनीयुक्त ‘वर्णिक छन्द’ को पारम्परिक छन्द शास्त्र में ‘वर्ण वृत्त’ कहते हैं। पारम्परिक छन्द शास्त्र में वर्णिक मापनी को गणों में विभाजित कर लिखा जाता है, यथा-
लेखनी/ की साध/ना है ब्रह्/म की आ/राधना/ अथवा
212 221 222 122 212 (अंकावली)
राजभा ताराज मातारा यमाता राजभा (गणावली)
रगण तगण मगण यगण रगण अथवा
र त म य र (पिंगल सूत्र)
इस कृति में लगावली को प्रायः स्वरकों में विभाजित किया गया है क्योंकि इससे लघु-गुरु वर्णों की आवृत्ति का समुचित आभास होता है और सहजता से लय-बोध हो जाता है तथापि जहाँ पर ये दोनों लाभ लक्षित नहीं होते हैं वहाँ पर गणावली को ही यथावत मान लिया गया है जिसको गणों में विभाजित किया गया है और इस प्रकार गणों को ही स्वरक मान लिया गया है। उपर्युक्त उदाहरण में मापनी के दोनों रूप लगावली और गणावली को देख कर स्पष्ट हो जाता है कि सीता छन्द को समझने के लिए गणावली की अपेक्षा लगावली अधिक उपयुक्त है जिसमें गालगागा की आवृत्तियाँ सुगमता से समझ में आ जाती हैं।
ध्यातव्य : सामान्यतः वाचिक और वर्णिक दोनों प्रकार की मापनियों को केवल ‘मापनी’ ही कहा जाता है और दोनों को लिखा भी एक ही प्रकार से जाता है किन्तु मात्रिक छन्द के संदर्भ में उसे ‘वाचिक मापनी’ और ‘वर्णिक छन्द’ के संदर्भ में उसे ही ‘वर्णिक मापनी’ मान लिया जाता है।
विन्यास पर आधारित वर्गीकरण
समान या भिन्न स्वरकों की आवृत्ति के आधार पर मापनी दो प्रकार की होती है- मौलिक मापनी और मिश्रित मापनी।
(क) मौलिक मापनी
एक ही स्वरक की आवृत्ति से बनने वाली मापनी को मौलिक मापनी कहते हैं। मुख्यतः गालगा, गालगागा, गालगाल, लगागा, लगागागा, ताराज, ताराजगा, लगाल, लगालगा, लगालगागा, ललगा, ललगालगा, गालल, गाललगा आदि स्वरकों की दो, तीन, चार, छः या आठ आवृत्तियों से विभिन्न मापनियाँ बनती हैं जो किसी न किसी छन्द का निरूपण करती हैं। उदाहरणार्थ गालगागा स्वरक से बनने वाली मात्रिक मापनियाँ और उनके आधार-छन्द निम्न प्रकार हैं-
(1) एक आवृत्ति से निर्मित
मापनी- गालगागा
आधार छन्द- वाचिक रंगी
(2) दो आवृत्तियों से निर्मित
मापनी- गालगागा गालगागा
आधार छन्द- मात्रिक मनोरम
(3) तीन आवृत्तियों से निर्मित
मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा
आधार छन्द- मात्रिक सार्द्धमनोरम
(4) चार आवृत्तियों से निर्मित
मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा
आधार छन्द- मात्रिक माधवमालती
(5) आठ आवृत्तियों से निर्मित
मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा
आधार छन्द- मात्रिक चतुर्मनोरम
इसी प्रकार गालगा स्वरक से बनने वाली मात्रिक मापनियाँ और उनके आधार छन्द निम्न प्रकार हैं-
(1) दो आवृत्तियों से निर्मित
मापनी- गालगा गालगा
आधार छन्द- वाविमोहा
(2) तीन आवृत्तियों से निर्मित
मापनी- गालगा गालगा गालगा
आधार छन्द- वामहालक्ष्मी
(3) चार आवृत्तियों से निर्मित
मापनी- गालगा गालगा गालगा गालगा
आधार छन्द- वास्रग्विणी
(4) आठ आवृत्तियों से निर्मित
मापनी- गालगा गालगा गालगा गालगा गालगा गालगा गालगा गालगा
आधार छन्द- वागंगोदक
इसी प्रकार अन्य स्वरकों से निर्मित मापनियों को समझा जा सकता है।
(ख) मिश्रित मापनी
भिन्न स्वरकों को मिलाने से बनने वाली मापनी को मिश्रित मापनी कहते हैं। कुछ मिश्रित वाचिक मापनियों और उनके आधार छन्द निम्न प्रकार हैं-
(1) मापनी- गालगा गालगा गालगा गा
आधार छन्द- वाबाला
(2) मापनी- लगागा लगागा लगागा लगा
आधार छन्द- शक्ति
(3) मापनी- गागालगा लगालगा
आधार छन्द- वानाराचिका
(4) मापनी- गालगागा ललगागा गागा
आधार छन्द- वाराभामागा
(5) मापनी- गालगागा गालगागा गालगा
आधार छन्द- आनंदवर्धक
(6) मापनी- लगागागा लगागागा लगागा
आधार छन्द- सुमेरु
(7) मापनी- गालगागा लगालगा गागा
आधार छन्द- पारिजात
(8) मापनी- गागाल गालगागा गागाल गालगागा
आधार छन्द- दिग्पाल
(9) मापनी- गागाल गालगागा गागाल गालगा
आधार छन्द- दिग्वधू
(10) मापनी- गागाल गालगागा गागाल गालगा
आधार छन्द- दिग्वधू
(11) मापनी- गालगाल गालगाल गालगाल गालगा
आधार छन्द- वाचामर
——————————————————————————————–
संदर्भ ग्रंथ – ‘छन्द विज्ञान’, लेखक- ओम नीरव, पृष्ठ- 360, मूल्य- 400 रुपये, संपर्क- 8299034545