Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Dec 2021 · 7 min read

मात्रा कलन

मात्रा कलन

मात्राभार
किसी वर्ण का उच्चारण करने में लगने वाले तुलनात्मक समय को मात्राभार कहते है। जैसे अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु, कृ आदि हृस्व वर्णों के उच्चारण में अल्प समय लगता है, इसलिए इनका मात्राभार लघु माना जाता है और इसे 1 या ल या । से प्रदर्शित किया जाता है। इसकी तुलना में आ, ई, ऊ, का, की, कू, के, कै, को आदि दीर्घ वर्णों के उच्चारण में दुगना समय लगता है, इसलिए इनका मात्राभार गुरु माना जाता है और इसे 2 या गा या S से प्रदर्शित किया जाता है।
मात्राभार दो प्रकार का होता है– वर्णिक भार और वाचिक भार। वर्णिक भार में प्रत्येक वर्ण का भार अलग-अलग यथावत लिया जाता है जैसे – विकल का वर्णिक भार = 111 या ललल जबकि वाचिक भार में उच्चारण के अनुरूप वर्णों को मिलाकर भार की गणना की जाती है जैसे विकल का उच्चारण वि कल है, विक ल नहीं, इसलिए विकल का वाचिक भार है– 12 या लगा। मात्राभार की गणना करने के लिए कुछ निश्चित नियम हैं, जिनका उल्लेख आगे किया जा रहा है।

वर्णिक भार की गणना
(1) ह्रस्व स्वर की मात्रा 1 होती है जिसे लघु कहते हैं, जैसे – अ, इ, उ, ऋ की मात्रा 1 है। लघु को 1 या ल या । से भी व्यक्त किया जाता है।
(2) दीर्घ स्वर की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं, जैसे- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा 2 है। गुरु को 2 या गा या S से भी व्यक्त किया जाता है।
(3) व्यंजन की मात्रा 1 होती है, जैसे- क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म /य,र,ल,व,श,ष,स,ह।
वास्तव में व्यंजन का उच्चारण स्वर के साथ ही संभव है, इसलिए उसी रूप में यहाँ लिखा गया है। अन्यथा क्, ख्, ग् … आदि को व्यंजन कहते हैं, इनमें अकार मिलाने से क, ख, ग … आदि बनते हैं जो उच्चारण योग्य होते हैं।
(4) व्यंजन में ह्रस्व इ, उ, ऋ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 1 ही रहता है, जैसे शुचि = 11, विभु = 11, ऋतु = 11, कृति = 11, अमृत = 111
(5) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 2 हो जाता है, जैसे- चीनी = 22, भूसा = 22, मौसी = 22
(6) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे– रँग = 11, कँगना = 112, अँगनाई = 1122, चाँद = 21, माँ = 2, आँगन = 211, गाँव = 21
(7) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार 2 हो जाता है, जैसे- रंग = 21, अंक = 21, कंचन = 211, घंटा = 22, पतंगा = 122
(8) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे– नहीं = 12, भींच = 21, छींक = 21
वास्तव में यह अनुनासिक ही है जो लिखावट में अनुस्वार जैसा होता है।
(9) संयुक्ताक्षर का मात्राभार 1 (लघु) होता है, जैसे– स्वर = 11, प्रभा = 12, श्रम = 11, च्यवन = 111, प्रकृति = 111
(10) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार लघु अर्थात 1 ही रहता है, जैसे– प्रिया = 12, क्रिया = 12, द्रुम = 11, च्युत = 11, श्रुति = 11,
(11) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार गुरु अर्थात 2 हो जाता है, जैसे– भ्राता = 22, श्याम = 21, स्नेह = 21, स्त्री = 2, स्थान = 21
(12) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे– हास्य = 21, आत्मा = 22, सौम्या = 22, शाश्वत = 211, भास्कर = 211, धैर्य = 21, तात्पर्य = 221, संस्कृत = 211, संस्कार = 221
(13) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार गुरु अर्थात 2 हो जाता है, जैसे– नम्र = 21, सत्य = 21, विख्यात = 221, व्यक्ति = 21, स्वप्निल = 211, नन्हा = 22, कुल्हड़ = 211, अल्हड़ = 211
(14) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी उपर्युक्त नियम (13) के कुछ अपवाद भी हैं, जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है, अशुद्ध उच्चारण नहीं।
जैसे– तुम्हें = 12, तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे = 122, जिन्हें = 12, जिन्होंने = 122, कुम्हार = 122, कन्हैया = 122, मल्हार = 121, कुल्हाड़ी = 122
व्याख्या– इन अपवादों में संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती अक्षर सदैव ऐसा व्यंजन होता है जिसका ‘ह’ के साथ योग करके कोई नया अक्षर हिन्दी वर्ण माला में नहीं बनाया गया है, इसलिए जब इस पूर्ववर्ती व्यंजन का ‘ह’ के साथ योग कर कोई संयुक्ताक्षर बनता हैं तो उसका व्यवहार संयुक्ताक्षर जैसा न होकर एक नए वर्ण जैसा हो जाता है और इसीलिए उसपर संयुक्ताक्षर के नियम लागू नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए न् म् ल् का ‘ह’ के साथ योग करने से बनने वाले संयुक्ताक्षरों म्ह न्ह ल्ह का व्यवहार ‘एक वर्ण’ जैसा हो जाता है जिससे उनके पहले आने वाले लघु का भार 2 नहीं होता अपितु 1 ही रहता है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी वर्णमाला के कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग में पहले व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से दूसरा व्यंजन तथा तीसरे व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से चौथा व्यंजन बनता है। उदाहरणार्थ –
क् + ह = ख , ग् + ह = घ
च् + ह = छ , ज् + ह = झ
ट् + ह = ठ , ड् + ह = ढ
त् + ह = थ , द् + ह = ध
प् + ह = फ , ब् + ह = भ
किन्तु –
न् + ह = न्ह, म् + ह = म्ह, ल् + ह = ल्ह (कोई नया वर्ण नहीं, तथापि व्यवहार नये वर्ण जैसा)

ध्यातव्य– कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जिनपर उपर्युक्त व्याख्या लागू नहीं होती है, जैसे नन्हा = 22, कुल्हड़ = 211, अल्हड़ = 211 आदि।
(15) जिस संयुक्ताक्षर के पूर्व एक और अर्धाक्षर होता है उसके मात्राभार की गणना में दोनों अर्धाक्षर को पूर्णाक्षर के साथ मिला कर एक ही संयुक्ताक्षर माना जाता है, जैसे- अस्त्र = 21, ज्योत्स्ना = 212, अपवर्त्य = 1121
(15) दूसरी भाषाओं से आयातित शब्दों के मात्राभार की गणना उनके सामान्य उच्चारण के अनुरूप करना उचित है जैसे- पेन = 11, नेट = 11, क्रिकेट = 111, प्रेस = 11, मैसेज = 211, सेहरा = 112, मोहब्बत = 1211, चेहरा = 112,

वाचिक भार की गणना
वाचिक भार की गणना करने में ‘उच्चारण के अनुरूप’ दो लघु वर्णों को मिलाकर एक गुरु मान लिया जाता है। उदहरणार्थ निम्न शब्दों के वाचिक भार और वर्णिक भार का अंतर दृष्टव्य है –

उदाहरण/ वाचिक भार/ वर्णिक भार
नभ, कृति, लघु, क्षिति, ऋतु, श्रुति आदि/ 2/ 11
पवन, अमित, अमृत, विविध, मुकुल आदि/ 12/ 111
पनघट, मघुकर, विचलित, अभिरुचि आदि/ 22/ 1111
पावक, स्वप्निल, कुल्हड़, भास्कर आदि/ 22/ 211
कमला, विविधा, प्रतिभा, भ्रकुटी आदि/ 22/ 112
भावना, स्वामिनी, जाह्नवी, उर्मिला आदि/ 212/ 212
सुपरिचित, अविकसित आदि/ 122 (212 नहीं)/ 11111
अनुगमन, अवनमन आदि/ 212 (122 नहीं)/ 11111
अधखिली, अटपटा, मधुमिता आदि/ 212 (122 नहीं)/ 1112
प्रखरता, सँभलता, असुविधा आदि/ 122 (212 नहीं)/ 1112

कलन की कला
जब हम किसी काव्य पंक्ति के मात्राक्रम की गणना करते हैं तो इस क्रिया को कलन कहते हैं, उर्दू में इसे तख्तीअ कहा जाता है। कलन में मात्राभार को व्यक्त करने की कई प्रणाली हैं। हमने ऊपर की विवेचना में मुख्यतः अंकावली का प्रयोग किया है, अन्य प्रणालियों के रूप में लगावली, स्वरावली और अरकान का भी प्रयोग किया जाता है। आगामी उदाहरणों में हम इनका भी उल्लेख करेंगे। किसी काव्य पंक्ति का कलन करने के पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है वह पंक्ति मात्रिक छंद पर आधारित है या फिर वर्णिक छंद पर। यदि पंक्ति मात्रिक छंद पर आधारित है तो कलन में वाचिक भार का प्रयोग किया जायेगा और यदि पंक्ति वर्णिक छंद पर आधारित है तो कलन में वर्णिक भार का प्रयोग किया जाएगा। एक बात और, काव्य पंक्ति का कलन करते समय मात्रापतन का ध्यान रखना भी आवश्यक है अर्थात जिस गुरु वर्ण में मात्रापतन है उसका भार लघु अर्थात 1 ही माना जाएगा। उदाहरणों से यह बात पूर्णतः स्पष्ट हो जायेगी।

वाचिक कलन
इसे समझने के लिए एक हम एक फिल्मी गीत की पंक्ति का उदाहरण लेते हैं-
सुहानी चाँदनी रातें हमें सोने नहीं देतीं
यह पंक्ति मात्रिक छंद (विधाता) पर आधारित है, इसलिए हम इसका कलन करने में वाचिक भार का ही प्रयोग करेंगे।
पहले हम सभी शब्दों का वाचिक भार अलग-अलग देखते हैं –
सुहानी(122) चाँदनी(212) रातें(22) हमें(12) सोने(22) नहीं(12) देतीं(22)
अब हम इसे प्रचलित स्वरकों (रुक्नों/अरकान) में विभाजित करते हैं-
सुहानी चाँ (1222) दनी रातें (1222) हमें सोने (1222) नहीं देतीं (1222)
सुविधा की दृष्टि से हम इसे इस प्रकार भी लिख सकते हैं-
सुहानी चाँ/दनी रातें/ हमें सोने/ नहीं देतीं
1222/ 1222/ 1222/ 1222 (अंकावली)
लगागागा/ लगागागा/ लगागागा/ लगागागा (लगावली)
यमातागा/ यमातागा/ यमातागा/ यमातागा (गणावली)
मुफ़ाईलुन/ मुफ़ाईलुन/ मुफ़ाईलुन/ मुफ़ाईलुन (अरकान)

इसी मापनी का एक और उदाहरण लेते हैं जिसमें मात्रापतन और वाचिक भार की बात भी स्पष्ट हो जायेगी। इस दृष्टि से डॉ. कुँवर बेचैन की यह पंक्ति दृष्टव्य है-
नदी बोली समंदर से मैं तेरे पास आयी हूँ
यह पंक्ति भी मात्रिक छंद (विधाता) पर आधारित है, इसलिए वाचिक भार का प्रयोग करते हुए इसका कलन निम्नप्रकार करते हैं –
नदी (12) बोली (22) समंदर (122) से (2) मैं (1) तेरे (22) पास (21) आयी (22) हूँ (2)
इस कलन में उच्चारण के अनुरूप ‘समंदर’ के अंतिम दो लघु 11 को मिलाकर एक गुरु 2 माना गया है (वाचिक भार) तथा दबाकर उच्चारण करने के कारण ‘मैं’ का भार गुरु न मानकर लघु माना गया है (मात्रापतन)।
पारंपरिक ढंग से इस कलन को हम ऐसे भी लिख सकते हैं –
नदी बोली/ समंदर से/ मैं’ तेरे पा/स आयी हूँ
1222/ …..1222/ …..1222/ …..1222 (अंकावली)
लगागागा/ लगागागा/ लगागागा/ लगागागा (लगावली)
यमातागा/ यमातागा/ यमातागा/ यमातागा/ (गणावली)
मुफ़ाईलुन/ मुफ़ाईलुन/ मुफ़ाईलुन/ मुफ़ाईलुन (अरकान)

वर्णिक कलन
इसे समझने के लिए महाकवि रसखान की एक पंक्ति लेते हैं –
मानुस हौं तो वही रसखान बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन
यह पंक्ति वर्णिक छंद (किरीट सवैया) पर आधारित है, इसलिए हम इसका कलन करने में वर्णिक भार का ही प्रयोग करेंगे।
पहले हम सभी शब्दों का वर्णिक भार अलग-अलग देखते हैं-
मानुस (211) हौं (2) तो’ (1) वही (12) रसखान (1121) बसौं (12) ब्रज (11) गोकुल (211) गाँव (21) के’ (1) ग्वारन (211)
इस कलन में प्रत्येक वर्ण का अलग-अलग भार यथावत लिखा गया है, दबाकर पढ़ने के कारण ‘तो’ का भार लघु 1 और ‘के’ का भार भी लघु 1 लिया गया है। यह वर्णिक छंद गणों पर आधारित है, इसलिए इसलिए इसके मात्राक्रम का विभाजन गणों के अनुरूप निम्नप्रकार करते हैं –
मानुस/ हौं तो’ व/ही रस/खान ब/सौं ब्रज/ गोकुल/ गाँव के’/ ग्वारन
211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211 (अंकावली)
गालल/ गालल/ गालल/ गालल/ गालल/ गालल/ गालल/ गालल/ (लगावली)
भानस/ भानस/ भानस/ भानस/ भानस/ भानस/ भानस/ भानस/ (गणावली)

उपयोगिता
छंदस काव्य की रचना प्रायः उस लय के आधार पर ही जाती है जो किसी उपयुक्त काव्य को उन्मुक्त भाव से गाकर अनुकरण से आत्मसात होती है। बाद में मात्राभार की सहायता से अपने बनाये काव्य का कलन करने से त्रुटियाँ सामने आ जाती हैं और उनका परिमार्जन हो जाता है। दूसरे रचनाकार के काव्य का निरीक्षण और परिमार्जन करने में भी कलन बहुत उपयोगी होता है।
——————————————————————————————–
संदर्भ ग्रंथ – ‘छन्द विज्ञान’, लेखक- ओम नीरव, संपर्क- 8299034545

Category: Sahitya Kaksha
Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 2453 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हम लहू आशिकी की नज़र कर देंगे
हम लहू आशिकी की नज़र कर देंगे
Dr. Sunita Singh
दोहा- अभियान
दोहा- अभियान
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
महिलाएं जितना तेजी से रो सकती है उतना ही तेजी से अपने भावनाओ
महिलाएं जितना तेजी से रो सकती है उतना ही तेजी से अपने भावनाओ
Rj Anand Prajapati
मौसम है मस्ताना, कह दूं।
मौसम है मस्ताना, कह दूं।
पंकज परिंदा
*पुरस्कार तो हम भी पाते (हिंदी गजल)*
*पुरस्कार तो हम भी पाते (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
पढ़ो और पढ़ाओ
पढ़ो और पढ़ाओ
VINOD CHAUHAN
कहाँ लिखूँ कैसे लिखूँ ,
कहाँ लिखूँ कैसे लिखूँ ,
sushil sarna
इंतज़ार के दिन लम्बे हैं मगर
इंतज़ार के दिन लम्बे हैं मगर
Chitra Bisht
इन रेत के टुकडों से तुम दिल बना ना पाये।
इन रेत के टुकडों से तुम दिल बना ना पाये।
Phool gufran
4522.*पूर्णिका*
4522.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ऊपर चढ़ता देख तुम्हें, मुमकिन मेरा खुश हो जाना।
ऊपर चढ़ता देख तुम्हें, मुमकिन मेरा खुश हो जाना।
सत्य कुमार प्रेमी
"अहसास"
Dr. Kishan tandon kranti
उस जैसा मोती पूरे समन्दर में नही है
उस जैसा मोती पूरे समन्दर में नही है
शेखर सिंह
ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
Taj Mohammad
जनता का पैसा खा रहा मंहगाई
जनता का पैसा खा रहा मंहगाई
नेताम आर सी
प्यारा-प्यारा है यह पंछी
प्यारा-प्यारा है यह पंछी
Suryakant Dwivedi
"आंखों के पानी से हार जाता हूँ ll
पूर्वार्थ
जब ज्ञान स्वयं संपूर्णता से परिपूर्ण हो गया तो बुद्ध बन गये।
जब ज्ञान स्वयं संपूर्णता से परिपूर्ण हो गया तो बुद्ध बन गये।
manjula chauhan
प्रणय गीत --
प्रणय गीत --
Neelam Sharma
लिखने के आयाम बहुत हैं
लिखने के आयाम बहुत हैं
Shweta Soni
घर-घर तिरंगा
घर-घर तिरंगा
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
रमेशराज की पत्नी विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की पत्नी विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
वो गुलमोहर जो कभी, ख्वाहिशों में गिरा करती थी।
वो गुलमोहर जो कभी, ख्वाहिशों में गिरा करती थी।
Manisha Manjari
जन्मदिन की हार्दिक बधाई (अर्जुन सिंह)
जन्मदिन की हार्दिक बधाई (अर्जुन सिंह)
Harminder Kaur
अब तो मिलने में भी गले - एक डर सा लगता है
अब तो मिलने में भी गले - एक डर सा लगता है
Atul "Krishn"
इश्क़ किया नहीं जाता
इश्क़ किया नहीं जाता
Surinder blackpen
Best Preschool Franchise in India
Best Preschool Franchise in India
Alphabetz
*हिंदी तो मेरे मन में है*
*हिंदी तो मेरे मन में है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
दिल का दर्द
दिल का दर्द
Dipak Kumar "Girja"
प्रशांत सोलंकी
प्रशांत सोलंकी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
Loading...