दिल का बुरा नहीं हूँ मैं...
दुनिया में लोग ज्यादा सम्पर्क (contect) बनाते हैं,
घाव
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
खुद गुम हो गया हूँ मैं तुम्हे ढूँढते-ढूँढते
अच्छे रिश्ते पौधो की तरह होते हैं, वे ध्यान और देखभाल की मां
*रखिए एक दिवस सभी, मोबाइल को बंद (कुंडलिया)*
कड़वा बोलने वालो से सहद नहीं बिकता
टूटकर, बिखर कर फ़िर सवरना...
यही बात समझने में आधी जिंदगी बीत गई
परिंदों का भी आशियां ले लिया...