निंदा
सुन पाकिस्तान, आज फिर हम एक बार हुए शर्मिंदा हैं,
क्यों भारत ने छोड़ा तुझे अब तक यूं ही जिंदा है ।
तूने जो ऐसी नीति से दिखाई अपनी नियत है,
जल्द ही दिखेगा तू पाक की बिगड़ी सूरत है ।।
बांध लिया है अबकी तूने, खुद के हाथों मौत का फंदा,
तू तो कभी शहादत पाएगा नहीं !
तो चल मरने से पहले सुनकर अपनी “निंदा” इस बार हो जा तू शर्मिंदा ।।
निंदा तुम्हारा है, निंदा तुम्हारे मुल्क़ का है ।
निंदा तुम्हारे मुल्क़ के जवानों का है, निंदा तुम्हारे मुल्क़ के हैवानों का है ।
संग ही, निंदा तुम्हारे झूठे ईमानों का है ।
निंदा तुम्हारे घटिया उस कानून का है,
निंदा तुम्हारे रगों में दौड़ती उस दोगले खून का है ।
निंदा तुम्हारे गद्दारी का है,
निंदा तुम्हारे वफादारी का है ।
निंदा तुम्हारे झूठे ज्ञान का है,
निंदा यह दिखावे के सम्मान का है ।
निंदा तुम्हारे नस्ल का है,
निंदा तुम्हारे खोखले अक्ल का है ।
निंदा तुम्हारे कायरता का है,
निंदा तुम्हारे प्रतिस्पर्धा का है ।
निंदा तुम्हारे इतिहास का है,
निंदा तुम्हारे झूठे एहसास का है ।
निंदा तुम्हारे वर्तमान का है,
निंदा तुम्हारे आत्मसम्मान का है ।
निंदा तुम्हारे झूठे आन बान और शान का है,
निंदा पाकिस्तानी हर दोगले इंसान का है ।
निंदा तुम्हारी जिस्म का है,
निंदा तुम्हारी किस्म का है ।
निंदा भारत में पल रहे देशद्रोही का है,
निंदा आतंकवादी मौत के विद्रोही का है ।
निंदा तुम्हारी सरकार का है,
निंदा तुम्हारी “पीठ पीछे” वाली वार का है ।
निंदा तुम्हारे “भारत का सर्वनाश” करने वाले सपने का है,
निंदा तुम्हारे दोगली राजनीति हड़पने का है ।
निंदा तुम्हारी इंतकाम का है,
निंदा उसके अंजाम का है ।
निंदा तुम्हारे आविष्कारों का है,
निंदा तुम्हारे हथियारों का है ।
निंदा तुम्हारे इबादत का है,
निंदा तुम्हारे सियासत का है ।
निंदा तुम्हारे जंग का है,
निंदा अब तक “जिंदगी और तुम्हारी” संग का है ।
जिंदा तुम्हारे तक़ाजे का है,
निंदा तुम्हारे जनाजे का है ।
निंदा तुम्हारी औकात का है,
निंदा तुम्हारी हर बात का है ।
निंदा तुम्हारे रब का है,
निंदा “तुम” और तुम्हारा “सब” का है ।
निंदा तुम्हारे कफन का है,
निंदा तुम्हारे पूरे पाकिस्तान वतन का है ।
– निखिल मिश्रा