औपचारिक सच

बहुत कुछ बदल देता है
समय
भर जाते हैं
घाव
मिल जाता है
हड़बड़ी को भी
एक उचित ठहराव !
टिकने लगती हैं निगाहें
अतीत के किसी दृश्य पर!
मजबूरियाॅं और
समझौते
चिड़चिड़ा उठते हैं
किसी अंतहीन…
अकुलाए सत्य पर
धीरे धीरे..
रश्मि ‘लहर’
बहुत कुछ बदल देता है
समय
भर जाते हैं
घाव
मिल जाता है
हड़बड़ी को भी
एक उचित ठहराव !
टिकने लगती हैं निगाहें
अतीत के किसी दृश्य पर!
मजबूरियाॅं और
समझौते
चिड़चिड़ा उठते हैं
किसी अंतहीन…
अकुलाए सत्य पर
धीरे धीरे..
रश्मि ‘लहर’