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24 Sep 2024 · 3 min read

*अंग्रेजी राज में सुल्ताना डाकू की भूमिका*

अंग्रेजी राज में सुल्ताना डाकू की भूमिका
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समीक्षा पुस्तक: मुरादाबाद मंडलीय गजेटियर (खंड 2), वर्ष 2024
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सुल्ताना डाकू के व्यक्तित्व को अत्यंत खोजपूर्ण दृष्टि से मुरादाबाद मंडलीय गजेटियर में प्रस्तुत किया गया है। गजेटियर में प्रतिष्ठित अंग्रेज लेखकों की पुस्तकों के उद्धरण से सुल्ताना डाकू की उदार तथा जनवादी छवि सामने लाने का प्रयास काफी हद तक सफल हुआ है।

सबसे बड़ी बात यह रही कि गजेटियर ने “ब्रिटिश शासन के दौरान घोषित अपराधिक जनजातियॉं” शीर्षक से एक पृथक लेख दिया है। इसने अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ को प्रकाश में लाने का काम किया है। इससे पता चलता है कि किसी व्यक्ति विशेष को अच्छा या बुरा मानना अलग बात है, लेकिन यहां तो एक के बाद एक समूची जनजातियों को अंग्रेजों ने अपराधिक जनजाति घोषित कर दिया था। इन जातियों में अहेरिया, भतरा, भॉंतु, हबूड़ा, कंजर, नट और सॉंसिया का विवरण गजेटियर में विस्तार से दिया गया है। यह सभी जनजातियॉं संयुक्त प्रांत की थीं। सुल्ताना डाकू इन्हीं अपराधी घोषित की गई जनजातियों में से एक ‘भॉंतु’ जनजाति का था।

गजेटियर के अनुसार 1576 ईस्वी में जब महाराणा प्रताप की पराजय हुई तो उसके बाद भॉंतु जनजाति के लोग ‘कठेर’ में आकर बस गए। ‘कठेर’ वहीं क्षेत्र है, जिसमें आजकल रामपुर और मुरादाबाद शामिल हैं । कठेर राज्य पर कठेरिया राजपूतों का शासन था। जिस प्रकार महाराणा प्रताप ने अपनी स्वाधीनता को मुगलों के सामने नतमस्तक नहीं होने दिया था, उसी प्रकार कठेर राज्य मुगलों की पकड़ से बाहर था।
1625 ईसवी के आसपास कठेरिया शासक राजा राम सिंह की मुगलों द्वारा हत्या कर दी गई थी। कठेर राज्य छिन्न-भिन्न हो गया था। उसके एक हिस्से को मुगलों ने मुरादाबाद नाम दिया था।
इन सारी कड़ियों को अगर आपस में मिलाया जाए और गहन शोध कुछ और आगे बढ़ाया जाए तो संभवतः यह सिद्ध हो जाएगा कि भॉंतु जनजाति विद्रोही तेवर रखने वाली स्वतंत्रताप्रिय जनजाति थी। इसका संघर्ष स्वाभिमान के लिए मुगलों के साथ भी रहा और इसी कड़ी में सन 1919 से 1923 तक इसी जनजाति के सुल्ताना डाकू ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया।

14 नवंबर 1923 को सुल्ताना डाकू गिरफ्तार हुआ। हत्या और डकैती के आरोप में 7 जुलाई 1924 को उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया। डाकू शब्द तो बहुत स्वाभाविक है कि अंग्रेजों ने एक आपराधिक घोषित जनजाति के विद्रोही व्यक्ति को कहा ही होगा। अंग्रेजों की नजर में तो सुल्ताना भी डाकू था और भॉंतु जनजाति का हर व्यक्ति अपराधी था। प्रश्न यह है कि सुल्ताना डाकू पर डाकू होने की पर्ची चिपका दी गई, यह अलग बात है। लेकिन उसके कार्य और व्यक्तित्व क्या सचमुच उसे डाकू सिद्ध करते हैं अथवा एक विद्रोही व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं ?

प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक जिम कॉर्बेट की पुस्तक ‘माइ इंडिया’के हवाले से गजेटियर ने बताया है कि सुल्ताना डाकू ने कभी किसी गरीब व्यक्ति का धन नहीं लूटा तथा छोटे दुकानदारों से खरीदे गए सामान के लिए मांगे गए मूल्य से दुगना मूल्य चुकाया।
प्रश्न यह है कि उपरोक्त चरित्र क्या एक डाकू का हो सकता है ? निःसंदेह सुल्ताना डाकू अपने जन्म के साथ ही भॉंतु जनजाति का होने के कारण अंग्रेजों की नजर में अपराधी था। शायद पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसके पूर्वजों के विद्रोही तेवर रहे थे।

गजेटियर में यह जानकारी नहीं मिलती कि सुल्ताना डाकू पर हत्या और डकैती के जो आरोप लगाए गए, उनकी प्रकृति क्या थी? अर्थात क्या उसने अंग्रेजी राज के समर्थक व्यक्तियों और संस्थाओं के प्रति हत्या और डकैती के अपराध किए थे? अगर यह विवरण तथ्यात्मक रूप से सामने आ जाएं तो सुल्ताना डाकू के प्रति ठोस तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर हम एक अलग ही चित्र बना पाएंगे।

आशा की जानी चाहिए कि मुरादाबाद मंडलीय गजेटियर ने सुल्ताना डाकू के जनपक्षधरता से ओतप्रोत व्यक्तित्व को जिस तरह उजागर किया है, उस पर शोध कार्यों का क्रम आगे चलेगा और स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास पर नए सिरे से प्रकाश पड़ सकेगा।
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समीक्षक: रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ, बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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