टीबी मुक्ति की राह पर भारत

हर साल 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें गंभीर बीमारी तपेदिक (टीबी) के प्रति जागरूक होने और इसे खत्म करने के लिए किए जा रहे वैश्विक प्रयासों को समर्थन देने का अवसर देता है। भारत में टीबी न केवल एक स्वास्थ्य संकट है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक चुनौती भी है। हालांकि पिछले वर्षों में इसके खिलाफ़ निर्णायक लड़ाई लड़ी गई है और सरकार ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है।
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टीबी की मौजूदा स्थिति और बदलाव
भारत में टीबी के खिलाफ़ चल रही लड़ाई के बावजूद, यह बीमारी अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों पर नजर डालें:
2023 में 24.2 लाख टीबी के मामले दर्ज किए गए।
2015 से 2023 के बीच, भारत में टीबी मामलों में 17.7% की कमी आई है।
टीबी से मृत्यु दर में 21.4% की गिरावट दर्ज की गई है।
भारत ने 2025 तक टीबी मुक्त होने का लक्ष्य रखा है, जबकि वैश्विक लक्ष्य 2030 है।
भारत ने 1997 में राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) की शुरुआत की, जो टीबी उन्मूलन की दिशा में पहला बड़ा प्रयास था। इस कार्यक्रम ने DOTS (Directly Observed Treatment, Short-course) रणनीति अपनाई, जिससे मरीजों को नियमित रूप से दवा उपलब्ध कराई गई और उनके इलाज की निगरानी की गई।
2020 में, RNTCP को राष्ट्रीय तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) में बदला गया, जिससे टीबी के खिलाफ़ लड़ाई और तेज हो गई।
निजी और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का एकीकरण किया गया।
AI और डिजिटल तकनीकों के माध्यम से टीबी जांच को तेज किया गया।
टीबी मरीजों को पोषण और वित्तीय सहायता देने के लिए ‘नि-क्षय पोषण योजना’ शुरू की गई।
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सरकारी योजनाएं और सुविधाएं
सरकार ने टीबी उन्मूलन के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं लागू की हैं, जिनमें मुख्य हैं:
राष्ट्रीय तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP)
इस कार्यक्रम के तहत टीबी मरीजों की पहचान, उपचार और निगरानी के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।
100 दिवसीय टीबी उन्मूलन अभियान के तहत देशभर में स्क्रीनिंग और उपचार को तेज किया गया।
निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया, ताकि हर मरीज तक सही समय पर इलाज पहुंच सके।
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नि-क्षय पोषण और नि-क्षय मित्र योजना
सरकार टीबी मरीजों को पोषण और आर्थिक सहायता भी प्रदान कर रही है:
₹500 प्रति माह की सहायता राशि DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के माध्यम से दी जाती है।
कुछ राज्यों में टीबी मरीजों को पोषण किट दी जाती है, जिसमें दाल, चावल, तेल, दूध पाउडर आदि शामिल होते हैं।
इस योजना का उद्देश्य टीबी मरीजों की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना और इलाज को जारी रखने में मदद करना है।
इसके अलावा, ‘नि-क्षय मित्र’ पहल के तहत व्यक्तिगत, संगठन और कॉरपोरेट सेक्टर के लोग टीबी मरीजों को पोषण और अन्य सहायता प्रदान कर सकते हैं। अब तक 1.5 लाख से अधिक ‘नि-क्षय मित्र’ इस अभियान से जुड़ चुके हैं।
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टीबी का इलाज, चुनौतियां और 100% उन्मूलन की संभावनाएं
टीबी के इलाज के लिए कई दवाओं का संयोजन किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:
1. आइसोनियाज़िड (INH) – बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकता है।
2. रिफैम्पिसिन (RIF) – बैक्टीरिया को नष्ट करता है।
3. पाइराज़ीनामाइड (PZA) – बैक्टीरिया के चयापचय को बाधित करता है।
4. एथैम्बुटोल (EMB) – बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति बनने से रोकता है।
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कुछ मरीजों में दवा प्रतिरोधक टीबी (MDR-TB) विकसित हो जाती है, जिसके लिए विशेष दवाएं दी जाती हैं।
भारत का लक्ष्य 2025 तक टीबी मुक्त बनना है, लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:
1. जागरूकता की कमी – ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी लोग टीबी के लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं।
2. दवा प्रतिरोधकता (MDR-TB) – कई मरीज इलाज अधूरा छोड़ देते हैं, जिससे बैक्टीरिया दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो जाता है।
3. सही समय पर निदान की कमी – कई मरीज इलाज में देर कर देते हैं, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
हालांकि, सरकार, निजी क्षेत्र और समाज के सहयोग से टीबी उन्मूलन संभव है।
निष्कर्ष: एकजुट होकर टीबी को हराना होगा
टीबी केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक चुनौती भी है। भारत ने पिछले 25 वर्षों में टीबी नियंत्रण में बड़ी प्रगति की है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
यदि सरकार, स्वास्थ्य सेवाएं और आम जनता एकजुट होकर इस चुनौती से लड़ें, तो 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य असंभव नहीं है। यह लड़ाई सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हम सबकी है।
“टीबी हारेगा, देश जीतेगा!”