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23 Oct 2023 · 4 min read

दादी माँ – कहानी

यादव जी एक प्रशासनिक पद पर कार्यरत थे | घर में माता जी साथ थीं , पत्नी संतोषी और दो बच्चे रीमा और राघव | एक बहन प्रियंका जिसकी शादी हो चुकी थी | पिता बचपन में ही दुनिया से विदाई ले चुके थे | पिताजी भी सरकारी नौकरी में थे सो ,पिताजी की पेंशन भी माँ को मिल रही थी | घर में किसी भी प्रकार के संसाधनों की कोई कमी नहीं थी | दोनों बच्चे रीमा और राघव पढ़ाई में बहुत अच्छे थे और साथ ही संस्कारी भी | माँ अपनी पेंशन में से कुछ राशि अपने पास रख लेती थी ताकि जब भी प्रियंका घर आये तो उसके सम्मान में कोई कोई कमी न हो साथ ही उन्हें अपने पोता – पोती से भी लगाव था और उनकी छोटी – छोटी जरूरतों को वे स्वयं ही पूरा कर देती थीं | माँ को अच्छा खाना बहुत पसंद था और साफ़ सुथरे कपड़े पहनना | छुट्टियों में धार्मिक स्थल घूमना उन्हे बहुत पसंद था |
यादव जी वैसे तो अपनी माँ से बहुत प्यार करते थे किन्तु उनकी पत्नी संतोषी को अपनी सास से ज्यादा लगाव नहीं था | महीने की पहली तारीख उसे हमेशा याद रहती थी जब उसकी सास को पेंशन मिलती थी | अपनी सास की सेवा करने में उसे कोई ख़ास रूचि नहीं थी | माँ का तीर्थ यात्रा पर पैसे खर्च करना उसे बिलकुल पसंद नहीं था | शुरू – शुरू में तो यादव जी अपनी पत्नी का विरोध किया करते थे किन्तु समय बीतते – बीतते उनका व्यवहार भी अपनी पत्नी जैसा हो गया | वे चाहकर भी अपनी पत्नी का विरोध नहीं कर पाते थे |
दोनों बच्चे अपने माता – पिता के व्यवहार से परिचित थे | दादी को न तो समय पर कोई खाना देता था न ही उनका ख़ास ध्यान रखा जाता था | जिस दिन बच्चों की स्कूल की छुट्टी होती वे दोनों अपनी दादी का पूरा – पूरा ख्याल रखते | माँ से छुप – छुपकर वे दादी को उनके पसंद की चीजें लाकर दिया करते थे | वे दादी को समय पर खाना देते और उनकी सभी जरूरतों का ख्याल रखते | यह सब रीमा और राघव की माँ को बिलकुल पसंद नहीं लगता था | वह शाम को यादव जी के आते ही बच्चों की सारी बातें बता दिया करती थी | बस फिर क्या , यादव जी का सारा गुस्सा बच्चों और माँ पर निकलता |
बच्चों को अपनी दादी के साथ होने वाले व्यवहार से कोफ़्त होने लगी थी | उन्होंने अपनी माँ और पिताजी को सबक सिखाने की सोची | उन्होंने दादी के साथ मिलकर एक योजना बनायी और उस पर अमल करने की तयारी कर ली | अगले दिन वे सब बहाना बनाकर घर से चले गए |

शाम को जब यादव जी ड्यूटी से वापस आये तो उन्होंने घर में माँ और बच्चों को नहीं देखा तो सोचने लगे कि आखिर , माँ और बच्चे कहाँ चले गए ?

सोच में पड़े यादव जी ने अपनी पत्नी से पूछा | पर कोई जवाब नहीं मिला |

सर पर हाथ रखे यादव जी सोच रहे थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि माँ और बच्चे बिना बताये घर से चले गए |

यादव जी की पत्नी को इस बात की चिंता सता रही थी कि यदि सासू माँ वापस नहीं आयीं तो उनकी पेंशन हाथ से निकल जायेगी |

यादव जी ने अपनी ओर से बहुत कोशिश की किन्तु उन्हें अपनी माँ की कोई जानकारी न मिल सकी | उन्होंने पुलिस थाने में जाने की सोची | बीच रास्ते में उन्हें उनके ही विभाग के मिश्रा जी मिल गए | उन्होंने यादव जी की परेशानी को भांप लिया और पूछा कि यादव जी किस परेशानी में हो भाई |

यादव जी ने सारी बातें मिश्रा जी को बता दीं |

मिश्रा जी ने यादव जी को बताया कि मैंने आपके बच्चों और आपकी माताजी को प्रिंस कॉलोनी के पास देखा है | मेरी उनसे नमस्ते भी हुई | पर मुझे भान नहीं था कि ऐसी कोई बात हुई है |

यादव जी अपने मित्र मिश्रा जी के साथ उसी जगह पर जा पहुंचे जहां उनकी माताजी और बच्चों को मिश्रा जी ने देखा था | यादव जी की साँसे कमजोर होती जा रहीं थीं | उन्होंने पूरी कोशिश की और अपनी माताजी तथा बच्चों को ढूंढ लिया | वे उनके पैरों में पड़ गए और उनसे अपने किये की माफ़ी मागने लगे | पर उनकी माँ और बच्चों ने साफ़ – साफ़ मना कर दिया कि वे घर नहीं जायेंगे | मिश्रा जी ने भी काफी कोशिश की किन्तु वे भी निराशा के साथ वापस हो लिए |

यादव जी अपना सा मुंह लेकर घर वापस आ गए | आते ही उनकी पत्नी ने सासू माँ और बच्चों के बारे में पूछा | किन्तु आशाजनक जवाब नहीं मिला | अब उनकी , सासू माँ और बच्चों को लेकर हालत भी खराब होने लगी उन्हें भी अपने किये पर अफ़सोस होने लगा | उन्होंने यादव जी से कहा कि वे खुद सासू माँ और बच्चों को मनाकर घर ले आएँगी |

यादव जी और उनकी पत्नी दोनों माँ और बच्चों के पास जा पहुंचे किन्तु वहां पुलिस को देख वे घबरा गए | पुलिस ने उनके आते ही यादव जी और उनकी पत्नी को गिरफ़्तार कर लिया | वे दोनों माँ और बच्चों के पैरों में पड़ गए | और माफ़ी मांगने लगे और वादा किया कि आज के बाद उन्हे शिकायत का मौका नहीं देंगे | पुलिस वालों ने बच्चों और उनकी दादी माँ से पूछा कि आप बताएं आगे क्या करना है | इन दोनों को छोड़ दें या ले जाए पुलिस थाने और डाल दें जेल में | .

माँ अपने बच्चों को जेल कैसे भेज सकती है | माँ ने अपने बेटे और बहु को माफ़ कर दिया किन्तु घर न जाने की जिद पर टिकी रहीं | बेटे और बहु की बहुत कोशिश के बाद वे घर जाने को राजी हुईं |

बच्चों और दादी माँ की नकली पुलिस वाली योजना रंग लायी | आज वे ख़ुशी – ख़ुशी अपने बेटे और बहु के साथ रह रही हैं |

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Books from अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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