तुम्हारी याद
याद नहीं करेंगे कभी तुम्हें,
यह दिल को मेरे मंजूर था।
इस तरह से भी तुम याद आओगी,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
फूलो में सुंगध की तरह,
दिल में बसी थी तुम।।
गुजरते वक्त के आगोश में,
चंदन की मानिंद
ओर भी महक रही हो तुम।
इन गुनगुनाते नग्मों के साथ ,
मेरी बहती सांसो में याद आती हो तुम।
मेरे दिल के विरान रेगिस्तान में,
खेजड़ी की छाव बन जाती हो तुम।
😉😉😉😉🥰🥰🥰
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
बनेड़ा (राजपुर)