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9 Jun 2021 · 1 min read

!!** झूम कर बरसो धरा पर गर बरसना चाहती हो **!!

!!** झूम कर बरसो धरा पर गर बरसना चाहती हो **!!

2122/ 2122/ 2122/ 2122

मेघ बनकर ऐ घटाओं तुम बरसना चाहती हो,
आसमां से तुम धरा पर अब उतरना चाहती हो ।।

जब धरा दुल्हन बनी धानी चुनरिया ओढ़ती है,
तुम नज़ारा देखकर खुद भी सँवरना चाहती हो ।।

है चमन गुलज़ार, फूलों ने गज़ब खुश्बू बिखेरी,
ये फ़िज़ा मदहोश है तुम भी बहकना चाहती हो ।।

बूंद को चातक तरसता ‘पी कहाँ’ कहता पपीहा,
गीत कोयलिया के सुनकर तुम चहकना चाहती हो ।।

“दीप” प्यासा है युगों से प्यास उसकी तुम बुझा दो,
झूम कर बरसो धरा पर गर बरसना चाहती हो ।।

दीपक “दीप” श्रीवास्तव
महाराष्ट्र

6 Likes · 12 Comments · 294 Views
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