*जो सजे मेज पर फल हैं सब, चित्रों के जैसे लगते हैं (राधेश्या
जो सजे मेज पर फल हैं सब, चित्रों के जैसे लगते हैं (राधेश्यामी छंद)
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जो सजे मेज पर फल हैं सब, चित्रों के जैसे लगते हैं
यद्यपि पत्थर के बने हुए, लेकिन ऑंखों को ठगते हैं
पत्थर कितना भी सुंदर हो, पर क्षुधा बुझाएगा कैसे
जिसमें प्राणों की धार नहीं, जीवित कहलाएगा कैसे
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451