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5 Apr 2024 · 1 min read

कुतरने का क्रम

मालूम नहीं
कितनों को है पता
कि इंसान भी
अपने अस्तित्व की खातिर
प्रकृति से जंग में
किसी न किसी को
निरन्तर कुतर रहा है,
कोई न कोई घर
नींव के कमजोर होने से
मूक-मौन रहकर
हर रोज गिर रहा है।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 62 Views
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