कुतरने का क्रम
मालूम नहीं
कितनों को है पता
कि इंसान भी
अपने अस्तित्व की खातिर
प्रकृति से जंग में
किसी न किसी को
निरन्तर कुतर रहा है,
कोई न कोई घर
नींव के कमजोर होने से
मूक-मौन रहकर
हर रोज गिर रहा है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति