“काल-कोठरी”
अण्डमान की सेल्युलर जेल की
गलियारों में घूमते हुए
तेरह बाई सात की काल-कोठरी
जहाँ एक खिड़की छोटी सी
सलाखों वाला दरवाजा
चश्मदीद गवाह हूँ मैं
स्वतंत्रता सेनानियों के दर्द का
जिनकी आत्मा से निकले
इंकलाबी नारे की गूंज
मुझे हिला देती थी
चीत्कार करते रुला देती थी।
उन दीवानों की आँखों में
घर लौटने का सपना
सपना बनकर रह जाते थे,
कभी पूरे न हो पाते थे।
मेरी 53 वीं काव्य-कृति : ‘मंथन’ से…
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
सुदीर्घ साहित्य सेवा के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त।