YOG KIJIYE SWASTHY LIJIYE
drarunkumarshastri एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
YOG KIJIYE SWASTHY LEIJIYE
योग दिवस फिर से है आया
यतन बदन करवाने को ||
किम कर्तव्यम शोध कार्य से
काया सुगढ़ बनाने को ||
सुख की आशा दुख से निकल्ने
शुद्ध राह दिखलाने को ||
योग दिवस फिर से है आया
जीवट वाला मनुज करेगा
आलस वाला सोयेगा ||
रोग ग्रस्त होने पर ये तो भैय्या
राग विलापी गायेगा ||
योग दिवस फिर से है आया
मुझको तुझसे क्या है लेना
मैं कोई भिक्षुक तो नाही ||
थोडा थोडा योग सीख ले
बस मैं तो चाहूँ इतना ही
फिर तु अपनी करते रहना
लगन अगर जग जाएगी
योग दिवस फिर से है आया
यतन बदन करवाने को
किम कर्तव्यम शोध कार्य से
काया सुगढ़ बनाने को ||
योग दिवस फिर से है आया
**********ओम ********