मुक्तक
घुमड़-घुमड़ के बादल घिरा है आज अटारी पर,
विहंग बन के उड़ी मन में उमंग फिर यारो ,
कहीं पे कजली कहीं तान उठी बिरहा की,
ह्रदय में झांक गया इक अनंग फिर यारो ।
घुमड़-घुमड़ के बादल घिरा है आज अटारी पर,
विहंग बन के उड़ी मन में उमंग फिर यारो ,
कहीं पे कजली कहीं तान उठी बिरहा की,
ह्रदय में झांक गया इक अनंग फिर यारो ।