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24 Nov 2017 · 1 min read

बहारों का जमाना

फिर लौट के आएगा , जमाना बहारों का ?
रूठा हुआ है आजकल, मयखाना यारों का ।।

थकते न थे जो , साथ चलते हुए ।
चुपचाप बैठें हैं , हाथ मलते हुए ।।

खामोश लब हैं , उदास हैं निगाहें ।
साथ चलने वालों की , जुदा हो गई राहें।।

न डोला रहा , न जमाना कहारों का ।
कैसे लौट के आएगा , जमाना बहारों का ।।

अरे चुप ये दिल , क्यों तू मचलता है ।

क्यों नहीं , जमाने के संग चलता है ?

मत उगल बेवक्त बातें , क्यों हाथ मलता है ?
क्यों नहीं, जमाने जैसा रंग बदलता है ?

झूठी बात पर , क्यों जलता है ?
क्यों नहीं कहता , सब चलता है ?

बदलते रंग , बदला अंदाज यारों का ।
अब यहां , क्या काम दिलदारों का ?

मुमकिन है बदल जाना, जमाना बहारों का ।
रुतबा बदला जब , बचपन के यारों का ।।

ढलना उधर , जिधर जमाना ढलता है ।
कह जमाने से , साहेब सब चलता है !।

ला मिठास , चापलूसी की जुबां पर ।
क्यों बेकार , हाथ मलता है ?

बन जा आंख का तारा , हर किसी का ।
क्यों सूरज जैसा ढलता है ?

सजा महफिल , लौटेगा जमाना बहारों का ।
आबाद होगा “सोबन” रूठा मयखाना यारों का ।।

Language: Hindi
5 Likes · 6 Comments · 1672 Views

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