Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Feb 2017 · 5 min read

रमेशराज के बालमन पर आधारित बालगीत

|| अब मम्मी सौगन्ध तुम्हारी ||
—————————————
हम हाथों में पत्थर लेकर
और न बन्दर के मारेंगे,
समझ गये हम तभी जीत है
लूले-लँगड़ों से हारेंगे।
चाहे कुत्ता भैंस गाय हो
सब हैं जीने के अधिकारी,
दया-भाव ही अपनायेंगे
अब मम्मी सौंगंध तुम्हारी।

छोड़ दिया मीनों के काँटा
डाल-डाल कर उन्हें पकड़ना,
और बड़े-बूढ़ों के सम्मुख
त्याग दिया उपहास-अकड़ना,
जान गये तितली होती है
रंग-विरंगी प्यारी-प्यारी
इसे पकड़ना महापाप है
अब मम्मी सौंगध तुम्हारी।

खेलेंगे-कूदेंगे लेकिन
करें साथ में खूब पढ़ायी,
सोनू मोनू राधा से हम
नहीं करेंगे और लड़ाई
हम बच्चे हैं मन से सच्चे
भोलापन पहचान हमारी
अब मम्मी सौगंध तुम्हारी।
+रमेशराज

|| मुन्ना ||
—————————-
कानों में रस घोले मुन्ना
मीठा-मीठा बोले मुन्ना।

जैसे अपना कृष्ण कन्हैया
पाँपाँ पइयाँ डोले मुन्ना।

कहता-मैं पढ़ने जाऊँगा’
ले हाथों में झोले मुन्ना।

तख्ती पर खडि़या को रगड़े
कभी किताबें खोले मुन्ना।

माँ कहती-‘आँखों का तारा’
माँ को लगते भोले मुन्ना।
+रमेशराज

|| हम बच्चों की बात सुनो ||
————————-
करे न कोई घात सुनो
हम बच्चों की बात सुनो।

बन जायेंगे हम दीपक
जब आयेगी रात सुनो।

हम हिन्दू ना मुस्लिम हैं
हम हैं मानवजात सुनो।

नफरत या दुर्भावों की
हमें न दो सौगात सुनो।

सचहित विष को पी लेंगे
हम बच्चे सुकरात सुनो।
+रमेशराज

|| हम बच्चे ||
——————————
हम बच्चे हर दम मुस्काते
नफरत के हम गीत न गाते।

मक्कारी से बहुत दूर हैं
हम बच्चों के रिश्ते-नाते।

दिन-भर सिर्फ प्यार की नावें
मन की सरिता में तैराते।

दिखता जहाँ कहीं अँधियारा
दीप सरीखे हम जल जाते।

बड़े प्रदूषण लाते होंगे
हम बच्चे वादी महँकाते।
+रमेशराज

|| अब कर तू विज्ञान की बातें ||
————————————-
परी लोक की कथा सुना मत
ओरी दादी, ओरी नानी,
झूठे सभी भूत के किस्से
झूठी है हर प्रेत-कहानी।|

इस धरती की चर्चा कर तू
बतला नये ज्ञान की बातें
कैसे ये दिन निकला करता
कैसे फिर आ जातीं रातें?
क्यों होता यह वर्षा-ऋतु में
सूखा कहीं-कही पै पानी।|

कैसे काम करे कम्प्यूटर
कैसे चित्र दिखे टीवी पर
कैसे रीडिंग देता मीटर
कैसे बादल घिरते भू पर ?
अब कर तू विज्ञान की बातें
छोड़ पुराने राजा-रानी
ओरी दादी, ओरी नानी।|
+रमेशराज

|| हम बच्चे हममें पावनता ||
———————————–
मुस्काते रहते हम हरदम
कुछ गाते रहते हम हरदम
भावों में अपने कोमलता
खिले कमल-सा मन अपना है ।

मीठी-मीठी बातें प्यारी
मन मोहें मुस्कानें प्यारी
हम बच्चे हममें पावनता
गंगाजल-सा मन अपना है ।

जो फुर-फुर उड़ता रहता है
बल खाता, मुड़ता रहता है’
जिसमें है खग-सी चंचलता
उस बादल-सा मन अपना है ।

सबका चित्त मोह लेते हैं
स्पर्शों का सुख देते हैं
भरी हुई हम में उज्जवलता
मखमल जैसा मन अपना है ।
+रमेशराज

।। सही धर्म का मतलब जानो ।।
————————————–
धर्म एक कविता होता है
फूलों-भरी कथा होता है
बच्चो तुमको इसे बचाना
केवल सच्चा धर्म निभाना।

यदि कविता की हत्या होगी
किसी ऋचा की हत्या होगी
बच्चो ऐसा काम न करना
कविता में मधु जीवन भरना।

सही धर्म का मतलब जानो
जनसेवा को सबकुछ मानो
यदि मानव-उपकार करोगे
जग में नूतन रंग भरोगे।

यदि तुमने यह मर्म न जाना
गीता के उपदेश जलेंगे
कुरआनों की हर आयत में
ढेरों आँसू मित्र मिलेंगे |

इसीलिए बच्चो तुम जागो
घृणा-भरे चिन्तन से भागो
नफरत में मानव रोता है
धर्म एक कविता होता है।
-रमेशराज

।। मन करता है।।
पर्वत-पर्वत बर्फ जमी हो
जिस पर फिसल रहे हों,
फूलों की घाटी हो कोई
उसमें टहल रहे हों,
ऐसे कुछ सपनों में खोएं,
मन करता है।

मन के बीच नदी हो कोई
कलकल, कलकल बहती,
अपनी मृदुभाषा में हमसे,
ढेरों बातें कहती,
हमको उसके शब्द भिगोएं,
मन करता है।

टहनी-टहनी फूल खिले हों
पात-पात मुस्काएं,
फुनगी-फुनगी चिहुंक-चिंहुककर
चिडि़या गीत सुनाएं,
हम वसंत के सपने बोएं,
मन करता है।
+रमेशराज

|| बबलू जी ||
……………………
शोच आदि से फारिग होकर,
मार पालथी, हाथ जोड़कर,
मम्मी के संग गीता पढ़ते बबलू जी।

जब आता गुब्बारे वाला,
या लड्डू-पेड़ा ले लाला,
पैसों को तब बड़े अकड़ते बबलू जी।

आम और जामुन खाने को,
मीठे-मीठे फल पाने को,
पेड़ों पर चुपके से चढ़ते बबलू जी।

यदि कोई गलती हो जाये,
दादी या मम्मी चिल्लाये,
बचने को तब किस्से गड़ते बबलू जी।

बड़े अजब से चित्र बनाते,
देख उन्हें फिर नहीं अघाते
कुछ को तो शीशे में मढ़ते बबलू जी।

यदि कोई ललकारे इनको,
बिना दोष ही मारे इनको
गुस्से में तब बड़े बिगड़ते बबलू जी।।
+रमेशराज

।। मुन्नूजी ।।
दो-दो गुल्लक
भरकर मुँह तक
पैसे रखते
मुन्नूजी।

नाक सिकोंडें
मुँह को मोड़ें
जब-जब चिढ़ते
अपने मुन्नूजी।

नर्म पकौड़ी
गर्म कचौड़ी
जी-भर चखते
मुन्नूजी।

झट मुस्कायें
झट रो जायें
नाटक रचते
मुन्नूजी।

फुदक-फुदककर
मेंढ़क बनकर
सीढ़ी चढ़ते
मुन्नूजी।
-रमेशराज

।। पप्पू भइया ।।
————————-
थोड़ा-थोड़ा तुतलाते हैं
बात-बात पर हंस जाते हैं
खुश होते जो प्यार करो पप्पू भइया।

झट-से उन्हें फोड़ देते हैं
उसके बाद नया लेते हैं
गुब्बारे जो अगर भरो पप्पू भइया।

बनकर हउआ डरपाते हैं
शेर सरोखे बन जाते हैं
बोलें-‘मुझसे आज डरो’ पप्पू भइया।

फौरन सीढ़ी तेज उतरते
लम्बे-लम्बे सरपट भरते
कहो उन्हें-‘धीरे उतरो पप्पू भइया’।
-रमेशराज

-बाल-पहेलियां
1.
अंगारों से खेलता रोज सवेरे-शाम
हुक्का भरने का करूँ दादाजी का काम
सेंकता रोज चपाती, मैं दादा का नाती।
2.
सब्जी चावल रायता, मुझसे परसो दाल
मेरे सदगुण देखकर होते सभी निहाल
दावतो में मैं जाता, सभी को खीर खिलता।
3.
पूड़ी कुल्चे रोटिया बना रहा अविराम
‘मौसी’ ले लेती मगर एक और भी काम
दिखा मेरी बॉडी को, डराती मौसा जी को।

4.
मेरे सीने में भरी देखो ऐसी आग
तनिक गये गर चूक तो जले पराँठा-साग
तवा मेरी शोभा है, लँगोटा यार रहा है।

5.
पल-पल जलकर मैं हुई अंगारों से राख
दे देती कुछ रोशनी मैं अँधियारे पाख
भले मैं खुद जल जाती, भोजन सदा पकाती।

6.
आलू दूध उबालता और पकाता दाल
आग जलाती जब मुझे आ जाता भूचाल
गधे की तरह रेंकता, तेज मैं भाप फैंकता।
—————————————————–
1. चिमटा 2. चमचा 3. बेलन 4. चूल्हा 5. लकड़ी 6. कुकर
-रमेशराज

।। नन्हें पाँव।।
बबलू जी जब सो जाते
सपनों में तब हो आते
दूर-दूर अनदेखे गाँव
नन्हें पाँव।

बिन चप्पल जब चलते हैं
गरम रेत पर जलते हैं
कदम-कदम पर चाहें छाँव
नन्हें पाँव।

माँ को बेहद भाते हैं
बबलू जी जब आते हैं
करते कागा जैसी काँव
नन्हें पाँव।
-रमेशराज

।। निंदिया ।।
—————————–
रातों को जब आते सपने
परीलोक ले जाते सपने।

नदिया पर्वत झरने झीलें
स्वर्गलोक दिखलाते सपने।

कबूतरों की भाँति बनें हम
नभ के बीच उड़ाते सपने।

बच्चे बनते मोर सरीखे
उनको बतख बनाते सपने।

लड्डू पेड़ा, काजू बर्फी
सबको खूब खिलाते सपने।
-रमेशराज

।। मुन्नू राजा बड़े सयाने।।
मीठी-मीठी बातें करते
दौड़ लगाते सरपट भरते
तुतलाते ये गाते गाने
मुन्नू राजा बड़े सयाने।

नकली दाढ़ी-मूँछ लगाते
बूढ़े दादाजी बन जाते |
चलते घर में छाता ताने
मुन्नू राजा बड़े सयाने।

शरारतें इतनी करते हैं
आंखों में पानी भरते हैं |
डाँटो, लगते आँख दिखाने
मुन्नू राजा बड़े सयाने।

पापा के ये राजदुलारे
दादी की आँखों के तारे
इनके करतब सभी सुहाने
मुन्नू राजा बड़े सयाने।
-रमेशराज

।। गुड़िया।।
——————————-
बच्चों को बहलाती गुड़िया
बच्चों के मन भाती गुड़िया।

बच्चे भरते जब भी चाभी
ताली खूब बजाती गुड़िया।

बच्चे नाचें ताता थइया
उनको खूब हँसाती गुड़िया।

बच्चे समझें इसकी भाषा
बच्चों से बतियाती गुड़िया।
-रमेशराज
——————————————————
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001

Language: Hindi
371 Views

You may also like these posts

मिसाल देते न थकता था,
मिसाल देते न थकता था,
श्याम सांवरा
शक्ति और भक्ति आर के रस्तोगी
शक्ति और भक्ति आर के रस्तोगी
Ram Krishan Rastogi
हाय अल्ला
हाय अल्ला
DR ARUN KUMAR SHASTRI
⚘*अज्ञानी की कलम*⚘
⚘*अज्ञानी की कलम*⚘
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
सुविचार
सुविचार
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
देखि बांसुरी को अधरों पर
देखि बांसुरी को अधरों पर
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
"परिस्थिति विपरीत थी ll
पूर्वार्थ
पति पत्नी और मोबाइल
पति पत्नी और मोबाइल
Rekha khichi
पयार हुआ पराली
पयार हुआ पराली
Anil Kumar Mishra
कौन किसकी कहानी सुनाता है
कौन किसकी कहानी सुनाता है
Manoj Mahato
#आस
#आस
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
प्रस्तुति : ताटक छंद
प्रस्तुति : ताटक छंद
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
सात रंग के घोड़े (समीक्षा)
सात रंग के घोड़े (समीक्षा)
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
सूक्तियाँ
सूक्तियाँ
Shyam Sundar Subramanian
Haiku
Haiku
Otteri Selvakumar
हा रघुनन्दन !
हा रघुनन्दन !
महेश चन्द्र त्रिपाठी
3777.💐 *पूर्णिका* 💐
3777.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
पानी की तरह रंग है वो कितनी हसीं है
पानी की तरह रंग है वो कितनी हसीं है
Johnny Ahmed 'क़ैस'
दीप जलाकर अंतर्मन का, दीपावली मनाओ तुम।
दीप जलाकर अंतर्मन का, दीपावली मनाओ तुम।
आर.एस. 'प्रीतम'
Shankar lal Dwivedi and Gopal Das Neeraj together in a Kavi sammelan
Shankar lal Dwivedi and Gopal Das Neeraj together in a Kavi sammelan
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
क्षितिज के पार है मंजिल
क्षितिज के पार है मंजिल
Atul "Krishn"
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के विरोधरस के गीत
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के विरोधरस के गीत
कवि रमेशराज
वफ़ा के बदले हमें वफ़ा न मिला
वफ़ा के बदले हमें वफ़ा न मिला
Keshav kishor Kumar
रोक दो ये पल
रोक दो ये पल
Dr. Rajeev Jain
सबके संग रम जाते कृष्ण
सबके संग रम जाते कृष्ण
Pratibha Pandey
संचारी रोग दस्तक अभियान
संचारी रोग दस्तक अभियान
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
उम्र थका नही सकती,
उम्र थका नही सकती,
Yogendra Chaturwedi
कुछ तुम रो लेना कुछ हम रो लेंगे।
कुछ तुम रो लेना कुछ हम रो लेंगे।
Rj Anand Prajapati
" किरदार "
Dr. Kishan tandon kranti
*इस धरा पर सृष्टि का, कण-कण तुम्हें आभार है (गीत)*
*इस धरा पर सृष्टि का, कण-कण तुम्हें आभार है (गीत)*
Ravi Prakash
Loading...