गर्व से कहो हम हिन्दू हैं

हम भारतीयों को अपनी स्वयं की नजरों से गिराने के जितने भी ढंग हो सकते हैं, उन सबका प्रयोग मुगल, अंग्रेज एवं साम्यवादियों ने पूरी तरह से किया है। इनमें¬ हमारे नाम को ही लेकर विवाद उठाने शुरू कर दिए। यानि कि ये कहते आए हैं¬ कि यह हिन्दू व हिन्दुस्तान नाम ही विदेशी तथा गुलामी का प्रतीक है। इस हिन्दू नाम के साथ बुराई, कालापन, अन्धेरा या काफिर या इसी तरह के अन्य कई विशेषण इन्हों¬ने जोड़ दिए। और उद्देश्य सिर्फ इतना सा कि कैसे हमारा अपमान किया जाए। कैसे हम¬ स्वयं की नजरों¬ में¬ नीचे गिरा दिया जाए। हिन्दू का अर्थ निकाला काला, काफिर, जाहिल, अज्ञानी, गुलाम या दुष्ट। ये अर्थ कुछ नवीन अरबी की किताबों¬ में उपलब्ध होते हैं। इनको आधार मानकर मुसलमानों ने तथा ईसाइयों¬ ने हमारी खूब खिल्ली उड़ाई है जबकि वास्तविकता यह है कि अरबी भाषा के प्राचीन ग्रन्थॊं में¬ ही हिन्दू का अर्थ आर्य, ज्ञानी, सज्जन, विवेकपूर्ण एवं सुन्दर मिलता है। लेकिन हिन्दू हेतु इन सम्मानपूर्ण विशेषणों को ये विदेशी क्या¬ ग्रहण कर¬गे? इन्हें तो पग-पग पर हमारा अपमान जो करना है। यह सही है कि हमारी इस भारतभूमि पर हमने अपने स्वयं को सदैव आर्य कहकर पुकारा है तथा सभी मनुष्यों हेतु यह आदर्श रखा है कि वह आर्य बने। लेकिन इसमें¬ हिन्दू का अपमान कहां आ गया। वर्तमान भारत में¬ सर्वप्रथम राष्ट्रवाद व स्वदेशी आग पैदा करने वाले स्वामी दयानन्द जी ने हिन्दू नाम के वही अर्थ किए हैं जो कि ये मुसलमान, ईसाई व साम्यवादी करते हैं। इन्हा¬ने भारतीयों¬ को प्राचीन आर्य नाम दिया है तथा हिन्दू के स्थान पर आर्य विशेषण धारण करने की ही अपील की है। स्वामी जी की सोच एकदम से राष्ट्रवादी थी। लेकिन इस सन्दर्भ में बात यह है कि स्वामी दयानन्द जी ने सदैव तर्क व खोज के आधार पर स्थापित तथ्यों को महत्व देने की पैरवी की है तथा इसके अनुकूल परिवर्तन/परिवर्धन की बात को स्वीकार किया है। हिन्दू नाम के सम्बन्ध में भी स्वामी जी के सामने जो जानकारियां उपलब्ध थी उन्हीं के आधार पर उन्हा¬ने निर्णय लिया था। नए तथ्यों के प्रकाश में आने पर वे भी अवश्य ही हिन्दू नाम को स्वीकार कर लेते तथा हिन्दू शब्द का अर्थ अनार्थ, काला या काफिर ना करते।
वेदो¬ में¬ आए सिन्धू शब्द से हिन्दू शब्द का बनना कुछ मुश्किल नहीं है। सिन्धू नदी का नाम भी है तथा यह सागर का भी नाम है। सिन्धू नदी भारत के पश्चिम में बहती है तथा इसी सिन्धू नाम की नदी भारत के पूर्व में¬ भी बहती है। भारत के तीन तरफ यानि कि पश्चिम, पूर्व व दक्षिण में सिन्धू है। दोनों¬ सिन्धू नदियां व तीन दिशाओं¬ में समुद्र के मध्य जो लोग सृष्टि के आदि से ही रहते आए हैं ही हिन्दू हैं, वे ही आर्य हैं, वे ही सृष्टि के प्रथम मानव हैं। सृष्टि की उत्पत्ति स्वामी दयानन्द सरस्वती तथा वैदिक मान्यतानुसार भारत में¬ ही हुई थी। प्रथम मानव परमात्मा ने भारत में¬ ही बनाए थे। वे सब के सब तब से लेकर अब तक आर्य यानि कि हिन्दू हैं। दुष्ट पश्चिमी इतिहासकारों व वामपंथी लेखकों¬ ने एक षड्यन्त्र के तहत हमें¬ नीचा दिखलाने तथा बदनाम करने हेतु यह थ्योरी प्रचलित कर दी कि हिन्दू नाम भारतवासियों¬ को विदेशियों¬ ने दिया है। हमारे लिए इससे अधिक अपमानजनक क्या हो सकता है कि हमारा नाम भी अपना नहीं है। तो यह ध्यान रखें¬ कि आर्य व हिन्दू दोनों¬ हम भारतीय ही हैं। ये दोनों¬ नाम हमारे अपने हैं। इन नामों¬ को हमने कहीं बाहर से ग्रहण नहीं किया है। स्वामी दयानन्द जी भी तथ्यों के प्रकाश में¬ आने पर इस बात को अवश्य स्वीकार कर लेते। परन्तु दुष्ट देशद्रोहियों¬ द्वारा दिए गए विष से उनकी जीवन लीला आगे नहीं बढ़ सकी। हमारे इतिहास से इतने अधिक छल हुए कि जिनका कोई अन्त नहीं है। सरकारी स्तर पर छला¬व का पर्दाफाश करने की जरूरत है। लेकिन राष्ट्रवादी सरकार के सत्तासीन होने पर भी यह कार्य हो नहीं पा रहा है। पता नहीं या तो इन राष्ट्रवादियों¬ की इच्छा नहीं है कुछ करने की या फिर इनकी कानूनी विवशताएं इन्हें ऐसा करने से रोक रही हैं। राष्ट्रीय अस्मिता का भाव जागृत करना प्रत्येक स्वाभिमानी सरकार का प्रथम कृत होना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से 1947 ई. के बाद हमारे भारत में¬ ऐसा हो नहीं रहा है। राष्ट्रीय प्रतीकों, स्मारकों¬, स्वदेशी शिक्षा, स्वदेशी कानून, स्वदेशी चिन्तन, स्वदेशी भाषाओं¬, राष्ट्रभाषा, हिन्दू संस्कृति आदि हेतु कुछ भी राष्ट्रवादी करने की अभी तक शुरूआत नहीं हो पायी है। हां, व्यापारियों व उद्योगपतियों¬ हेतु बहुत कुछ हो रहा है, जबकि इस राष्ट्र का बहुमत किसान, मजदूर व नौकरीपेशों भूखा¬ मरने को विवश हो रहा है। बस बहाना एक ही बनाया जा रहा है कि राज्यसभा में¬ बहुमत नहीं है। प्रश्न यह है कि राज्यसभा में बहुमत न होने पर भी बहुत कुछ अन्य काम राष्ट्रवादी किए जा सकते हैं। लेकिन वर्तमान सरकार वहां भी कुछ करने का अपना संकल्प नहीं दिखा पा रही है। लगता है कि अब की बार भी हिन्दू की ठगाई ही होती लगती है। यदि हम दण्ड देना एवं उचित जवाब समय-समय पर देना जानते होते तो इन तथा अन्य उग्रवादियों¬ की किसी भी तरह की भारत पर हमला करने की हिम्मत ना होती लेकिन कायर भारतीय नेता पांच-सात दिन पाकिस्तान को गालियाँ देगें तथा यह देश भगवान भरोसे फिर उसी पुराने ढर्रे पर चलना शुरू कर देगा।
डॉ. सुरेश कुमार
राजकीय महाविद्यालय सांपला
रोहतक (हरियाणा)