Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Aug 2024 · 4 min read

एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हु

एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा…”चिट्ठी ले लीजिये।”

आवाज़ सुनते ही तुरंत अंदर से एक लड़की की आवाज गूंजी…” अभी आ रही हूँ…ठहरो।”

लेकिन लगभग पांच मिनट तक जब कोई न आया तब डाकिये ने फिर कहा..”अरे भाई! कोई है क्या, अपनी चिट्ठी ले लो…मुझें औऱ बहुत जगह जाना है..मैं ज्यादा देर इंतज़ार नहीं कर सकता….।”

लड़की की फिर आवाज आई…,” डाकिया चाचा , अगर आपको जल्दी है तो दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ कुछ देर औऱ लगेगा ।

” अब बूढ़े डाकिये ने झल्लाकर कहा,”नहीं,मैं खड़ा हूँ,रजिस्टर्ड चिट्ठी है,किसी का हस्ताक्षर भी चाहिये।”

तकरीबन दस मिनट बाद दरवाजा खुला।

डाकिया इस देरी के लिए ख़ूब झल्लाया हुआ तो था ही,अब उस लड़की पर चिल्लाने ही वाला था लेकिन, दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया औऱ उसकी आँखें खुली की खुली रह गई।उसका सारा गुस्सा पल भर में फुर्र हो गया।

उसके सामने एक नन्ही सी अपाहिज कन्या जिसके एक पैर नहीं थे, खड़ी थी।

लडक़ी ने बेहद मासूमियत से डाकिये की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया औऱ कहा…दो मेरी चिट्ठी…।

डाकिया चुपचाप डाक देकर और उसके हस्ताक्षर लेकर वहाँ से चला गया।

वो अपाहिज लड़की अक्सर अपने घर में अकेली ही रहती थी। उसकी माँ इस दुनिया में नहीं थी और पिता कहीं बाहर नौकरी के सिलसिले में आते जाते रहते थे।

उस लड़की की देखभाल के लिए एक कामवाली बाई सुबह शाम उसके साथ घर में रहती थी लेकिन परिस्थितिवश दिन के समय वह अपने घर में बिलकुल अकेली ही रहती थी।

समय निकलता गया।

महीने ,दो महीने में जब कभी उस लड़की के लिए कोई डाक आती, डाकिया एक आवाज देता और जब तक वह लड़की दरवाजे तक न आती तब तक इत्मीनान से डाकिया दरवाजे पर खड़ा रहता।

धीरे धीरे दिनों के बीच मेलजोल औऱ भावनात्मक लगाव बढ़ता गया।

एक दिन उस लड़की ने बहुत ग़ौर से डाकिये को देखा तो उसने पाया कि डाकिये के पैर में जूते नहीं हैं।वह हमेशा नंगे पैर ही डाक देने आता था ।

बरसात का मौसम आया।

फ़िर एक दिन जब डाकिया डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने,जहां गीली मिट्टी में डाकिये के पाँव के निशान बने थे,उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया।

अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवाकर घर में रख लिए ।

जब दीपावली आने वाली थी उससे पहले डाकिये ने मुहल्ले के सब लोगों से त्योहार पर बकसीस चाही ।

लेकिन छोटी लड़की के बारे में उसने सोचा कि बच्ची से क्या उपहार मांगना पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ।

साथ ही साथ डाकिया ये भी सोंचने लगा कि त्योहार के समय छोटी बच्ची से खाली हाथ मिलना ठीक नहीं रहेगा।बहुत सोच विचार कर उसने लड़की के लिए पाँच रुपए के चॉकलेट ले लिए।

उसके बाद उसने लड़की के घर का दरवाजा खटखटाया।

अंदर से आवाज आई….” कौन?

” मैं हूं गुड़िया…तुम्हारा डाकिया चाचा “.. उत्तर मिला।

लड़की ने आकर दरवाजा खोला तो बूढ़े डाकिये ने उसे चॉकलेट थमा दी औऱ कहा..” ले बेटी अपने ग़रीब चाचा के तरफ़ से “….

लड़की बहुत खुश हो गई औऱ उसने कुछ देर डाकिये को वहीं इंतजार करने के लिए कहा..

उसके बाद उसने अपने घर के एक कमरे से एक बड़ा सा डब्बा लाया औऱ उसे डाकिये के हाथ में देते हुए कहा , ” चाचा..मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है।

डब्बा देखकर डाकिया बहुत आश्चर्य में पड़ गया।उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे।

कुछ देर सोचकर उसने कहा,” तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो, तुमसे मैं कोई उपहार कैसे ले लूँ बिटिया रानी ?

“लड़की ने उससे आग्रह किया कि ” चाचा मेरी इस गिफ्ट के लिए मना मत करना, नहीं तो मैं उदास हो जाऊंगी ” ।

“ठीक है , कहते हुए बूढ़े डाकिये ने पैकेट ले लिया औऱ बड़े प्रेम से लड़की के सिर पर अपना हाथ फेरा मानो उसको आशीर्वाद दे रहा हो ।

बालिका ने कहा, ” चाचा इस पैकेट को अपने घर ले जाकर खोलना।

घर जाकर जब उस डाकिये ने पैकेट खोला तो वह आश्चर्यचकित रह गया, क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे। उसकी आँखें डबडबा गई ।

डाकिये को यक़ीन नहीं हो रहा था कि एक छोटी सी लड़की उसके लिए इतना फ़िक्रमंद हो सकती है।

अगले दिन डाकिया अपने डाकघर पहुंचा और उसने पोस्टमास्टर से फरियाद की कि उसका तबादला फ़ौरन दूसरे इलाक़े में कर दिया जाए।

पोस्टमास्टर ने जब इसका कारण पूछा, तो डाकिये ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और रुंधे गले से कहा, ” सर..आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस छोटी अपाहिज बच्ची ने मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा ?”

इतना कहकर डाकिया फूटफूट कर रोने लगा ।

……..

😥😥😥

264 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

प्रेयसी का आलिंगन कोबरा सर्प को गले लगाना है
प्रेयसी का आलिंगन कोबरा सर्प को गले लगाना है
Acharya Shilak Ram
सर्राफा- हड़ताल वर्ष 2016
सर्राफा- हड़ताल वर्ष 2016
Ravi Prakash
*** सैर आसमान की....! ***
*** सैर आसमान की....! ***
VEDANTA PATEL
तुम्हें करीब आने के लिए मेरे,
तुम्हें करीब आने के लिए मेरे,
Ravi Betulwala
sp50 तुम मुझे भूल भी जाओ
sp50 तुम मुझे भूल भी जाओ
Manoj Shrivastava
कुंडलिया - रंग
कुंडलिया - रंग
sushil sarna
মা মা বলে তোমায় ডেকে ( মনসা সঙ্গীত )
মা মা বলে তোমায় ডেকে ( মনসা সঙ্গীত )
Arghyadeep Chakraborty
#दिनांक:-19/4/2024
#दिनांक:-19/4/2024
Pratibha Pandey
" हासिल "
Dr. Kishan tandon kranti
ज़िन्दगी नाम बस इसी का है
ज़िन्दगी नाम बस इसी का है
Dr fauzia Naseem shad
3943.💐 *पूर्णिका* 💐
3943.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
मेरी उम्मीदों पर नाउम्मीदी का पर्दा न डाल
मेरी उम्मीदों पर नाउम्मीदी का पर्दा न डाल
VINOD CHAUHAN
लड़कों को एक उम्र के बाद
लड़कों को एक उम्र के बाद
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
ज़िंदगी में गीत खुशियों के ही गाना दोस्तो
ज़िंदगी में गीत खुशियों के ही गाना दोस्तो
Dr. Alpana Suhasini
मेरे खिलाफ वो बातें तमाम करते हैं
मेरे खिलाफ वो बातें तमाम करते हैं
पूर्वार्थ
बापू गाँधी
बापू गाँधी
Kavita Chouhan
दिल से करो पुकार
दिल से करो पुकार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
सुर लगे न लगे गीत गाते रहना चाहिए
सुर लगे न लगे गीत गाते रहना चाहिए
Neerja Sharma
राम भजे
राम भजे
Sanjay ' शून्य'
अपने हाथों से काट रहे थे अपने पाँव,
अपने हाथों से काट रहे थे अपने पाँव,
Anil chobisa
ସହଜରେ?
ସହଜରେ?
Otteri Selvakumar
दहेज की जरूरत नहीं
दहेज की जरूरत नहीं
भरत कुमार सोलंकी
रात का रक्स जारी है
रात का रक्स जारी है
हिमांशु Kulshrestha
चमकती है बहुत
चमकती है बहुत
Shivkumar Bilagrami
कभी भी भावना में बहकर अपनी निजी बातें और कमजोरी किसी के समक्
कभी भी भावना में बहकर अपनी निजी बातें और कमजोरी किसी के समक्
Paras Nath Jha
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
अग्नि कन्या बीना दास
अग्नि कन्या बीना दास
Dr.Pratibha Prakash
सकारात्मक सोच अंधेरे में चमकते हुए जुगनू के समान है।
सकारात्मक सोच अंधेरे में चमकते हुए जुगनू के समान है।
Rj Anand Prajapati
सत्य साधना -हायकु मुक्तक
सत्य साधना -हायकु मुक्तक
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
एक भरी महफिल में माइक संभालते हुए।
एक भरी महफिल में माइक संभालते हुए।
Abhilesh sribharti अभिलेश श्रीभारती
Loading...