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17 Jul 2024 · 1 min read

मेरे खिलाफ वो बातें तमाम करते हैं

मेरे खिलाफ वो बातें तमाम करते हैं
मगर मिलें तो बहुत एहतराम करते हैं

हम ऐसे सादा गरों को मुनाफिकत न सिखा
जो बात करनी हो हम सरेआम करते हैं

तुम्हारे बाद कोई दूसरा न आयेगा
हम आज तुझपे मुहब्बत तमाम करते हैं

हम याद आते हैं जब कोई काम होता है
हम आली जर्फ तेरा फिर भी काम करते हैं

उसे मालूम कोई मुन्तज़िर खड़ा है मगर
वो जान बुझ कर रस्ते में शाम करता है

किसी का हो के दुबारा जो आये मेरी तरफ
हम ऐसे शख्स को खुद पर हराम करते हैं

जिसे हो जाना, चला जाये छोड़ कर हमें
हम उसे हाथ उठाकर सलाम करते हैं…!

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