ज़िन्दगी नाम बस इसी का है

ज़िन्दगी नाम बस इसी का है
लौट कर वक़्त फिर नहीं आता
जिन्दगी को बुना है हाथों से
हम भी बारीकियां समझते हैं
ये सफर निकला चंद सांसों का
ज़िन्दगी कितनी मुख्तसर निकली
ख़्वाब तेरे तेरा ख्याल लिए
ज़िन्दगी यूं भी हम गुजारेंगे
ज़ीस्त मेरी सुकून पा जाती
ठहर जाता जो दर्द सीने में
ज़िन्दगी से भी हो कोई वादा तेरा
सोच तेरी हो, और इरादा तेरा
ज़िन्दगी कैक्टस हो जितनी भी
तेरा एहसास फूल जैसा है
कब मिलेगी पता नहीं मंज़िल
ज़िन्दगी का सफ़र थकाता है
ज़िन्दगी देती है ज़ायका वैसा
मुंह में जैसी जुबान रखते है
वक़्त की गर्द में गुम होकर
आईना जिन्दगी नहीं रहती
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद