किस कदर अजीब लोग हो गए है अब हम,

किस कदर अजीब लोग हो गए है अब हम,
मोहब्बत हम पूरी तरह से निभा नही पा रहे है हम,
नफरत सह नहीं पाते है अब हम,
अहसास हम में जिंदा नही रहा अब,
एहतेराम हम में बाकी नही रहा अब,
मेल जोल से हम डूब भागते रहते है,
हसद हम में भरा हुआ होता है अब
गलती हम ने तस्लीम नही करनी
माजरत करना हमें तौहीन लगता है
इबादत की हम को खबर नही है,
हकीकत हमको अच्छी नही लगती है
मौत हमें याद नही आती है
और फिर कहते है,
की सुकून न जाने किधर है हमारा