निशान
कुछ निशान… ईशान कोण से आते हैं
चुभ भले रहे होते हैं पर शुभ मानते हैं उसे
निशान ऐसे के ताउम्र बने रहते हैं देह पर
ये बात और है के घाव गैरवाजिब देतें हैं नेह पर
कुछेक निशान ऐसे भी होते हैं जो रहते हैं दिल पर
बयार अंदर जाती है तो तड़प उठते हैं मचल कर
इलाज का दिया फ़फ़क कर बुझ उठता है
और लाइलाज हो जातें हैं सब के सब निशान
चुभता… शुभता का प्रतीक माना जाता है
अंदर का हकीम ही इलाज कर सकता है ऐसे निशानों का
कुछ लोग सही करने के चक्कर में
कुरेद देतें हैं घावों को… शायद इसी फिराक में रहते हैं वे
तसल्ली.. मुतवल्ली हो जाती है
हरके निशान -ए – गम की
और बनी रहती है आजीवन
मुतवल्ली…
निशान ऐसे के मिटाने में तकदीरों के पसीने छूटेंगे
इसी सिलसिले में साल, दिन महीने छूटेंगे
-सिद्धार्थ गोरखपुरी