Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Apr 2025 · 3 min read

‘अनोखे दोस्त’

गुंजन की उन्नीस वर्ष की आयु में, दूसरे शहर में नौकरी लग गई थी । घर में सब चिन्तित हो गये कि कैसे रहेगी वह अकेले? वैसे गुंजन नियम से चलने वाली सदाचारी बिटिया थी। आजकल के बच्चों से थोड़ा हटकर ; एकदम जिम्मेदार बच्ची थी । उसको न पिज्जा-बर्गर का शौक था, न पार्लर जाने का। न अंग्रेजी गानों पर डांस करती थी, न मोबाइल पर एक्टिव रहने या बाहर घूमने की जिद करती थी। पर, माता-पिता की इकलौती संस्कारी बिटिया को रायबरेली से लखनऊ भेजने में मम्मी-पापा डर रहे थे।

परिजनों से विचार-विमर्श के बाद उसने नये शहर में, नया आफिस ज्वाइन कर लिया था। कार्यालय की काॅलोनी में वह रहने लगी थी। वहाॅं उसकी मित्रता अजीब चीजों से हो गई थी; जैसे एक आम का पेड़ उसका सुख-दुख का साथी था, तो कालोनी के कुत्ते एवं उनके बच्चे सब उसके प्रगाढ़ मित्र थे। भले वह स्वयं के लिए रोटी न बनाये पर उनके लिए जरूर बनाती थी। गुंजन अपने कार्यालय की लोकप्रिय कर्मचारी थी। वह जिस विभाग में थी, वहां गन्ने पर रिसर्च होती थी। बड़े-बड़े खेत थे तथा नील गाय, साँप अजगर सब प्रकार के जानवर/जीव-जंतु थे। गुंजन को जीवन में किसी से भी डर नहीं लगता था। वह सबके साथ मैत्री भाव रखती थी, पर, उसके इस स्वभाव के कारण उससे कई लोग बहुत चिढ़ते थे तथा उससे दूरी बनाकर रहते थे ।

कई महिला सहयोगी उसको देखते ही मुस्करा देती थीं और कहने लगती थीं कि “चल दी कुत्तों के पास?” तो ऑफिस के कई लड़के उसके मुँह पर कह देते थे “अरे गुंजन! हम लोगों से भी दोस्ती करो न!” वह बस हँस कर सबको टाल देती थी।

दिन बीत रहे थे कि एक दिन वह हो गया, जिसकी उसने कल्पना ही नहीं की थी। रोज की तरह वह अपने कार्यालय से पैदल ही घर आ रही थी पर, आज उसका मन किसी अंजानी आशंका से धड़क रहा था। अपने में खोई हुई वह मोड़ तक पहुॅंची ही थी कि अचानक खेतों के बीच से दो लम्बे-चौड़े आदमी निकले और उसके सामने आकर खड़े हो गये।

गुंजन का मन अचानक किसी अनहोनी की आशंका से काँप उठा। तब तक एक आदमी आगे बढ़ा और बुरी नियत से उसने गुंजन पर हमला कर दिया। गुंजन जोर से चीखी …”टामी….शेरू …डमी बचाओ” और वह तेजी से भागी, पर, जब समय खराब होता है, तो कुछ न कुछ अवरोध भी आते रहते हैं। उसका पैर एक सुतली में फँसा और वो लुढ़कती हुई सड़क के किनारे पर पहुँच गई। वे दोनो उसके पीछे वीभत्स हँसी के साथ आ रहे थे ..”भागो मत यहाँ कोई नहीं आएगा तुमको बचाने …” कहकर वे जैसे ही आगे बढ़े, खेत से निकल कर शेरू ने उनके चेहरे पर पंजे से वार करना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ से डमी भी गुर्राता हुआ दौड़ा! थर-थर काँपती हुई गुंजन को अचानक याद आया कि कार्यालय में सब लोग आज बस से मूवी का प्रोग्राम बना कर निकले हैं। वह अपनी नादानी पर स्तब्ध रह गई। उसने तुरंत सोचा कि “काश! आज किसी ओला से आ जाती!” सोचते हुए वह अपनी असंयत साँसो को रोकती हुए उठी तो सामने का दृश्य देखकर उसके रोंगटे खड़े हो गये। चारो कुत्तों ने उन दोनो शैतानों को घेर रखा था और उनको आगे नहीं बढ़ने दे रहे थे। यकायक शेरू एक आदमी की छाती पर चढ़ गया और जगह-जगह काटने लगा। तब तक छोटी डाॅगी उसके पास आई और उसका कुर्ता खींचकर उसे घर की तरफ़ जाने का इशारा करने लगी।

पलभर के लिए वह अपना सारा डर भूल गई और चीखने लगी “छोड़ना नहीं..शेरू! मार और मार” कहकर वह भावावेश में रोने लगी। वे दोनो शैतान आदमी जमीन पर गिर चुके थे और चारो कुत्तों ने उन्हे अधमरा कर दिया था। वह काॅंपती हुई, रोती-रोती अपने घर की तरफ चल पड़ी। उसको अपने निस्वार्थ दोस्तों पर गर्व हो रहा था। घर के भीतर पहुँचते ही वह जोर-जोर से रोने लगी। तब तक दरवाजे पर उसको खटका सा महसूस हुआ तो वह घबराकर उठी और झरोखे से झाॅंकने लगी। उसने बाहर देखा तो उसे याद आया कि घबराहट में वह अपना पर्स सड़क से उठाना भूल गई थी। शेरू वह पर्स मुँह में दबाये सामने खड़ा था। उसके पीछे वफादार दोस्त बहुत स्नेह के साथ भूं-भूं करके दुम हिला रहे थे।

गुंजन उन सब पर हाथ फेरती रही और एक अनोखे प्रेम भाव से विह्वल हो उन सबको कुछ खिलाने के लिए उठ गई ..।

रश्मि ‘लहर’
लखनऊ

Language: Hindi
17 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

"मन का स्पर्श"
।।"प्रकाश" पंकज।।
मोहब्बत और मयकशी में
मोहब्बत और मयकशी में
शेखर सिंह
ठूंठा पेड
ठूंठा पेड
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
रोशनी की किरण
रोशनी की किरण
Juhi Grover
ऊपर बने रिश्ते
ऊपर बने रिश्ते
विजय कुमार अग्रवाल
ऐसी दिवाली कभी न देखी
ऐसी दिवाली कभी न देखी
Priya Maithil
दैनिक आर्यवर्त केसरी, अमरोहा
दैनिक आर्यवर्त केसरी, अमरोहा
Harminder Kaur
तूं राम को जान।
तूं राम को जान।
Acharya Rama Nand Mandal
ठहर गया
ठहर गया
sushil sarna
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
Vedha Singh
"प्रयोग"
Dr. Kishan tandon kranti
भाव में,भाषा में थोड़ा सा चयन कर लें
भाव में,भाषा में थोड़ा सा चयन कर लें
Shweta Soni
"अपन भाषा "
DrLakshman Jha Parimal
कहानी -
कहानी - "सच्चा भक्त"
Dr Tabassum Jahan
*पुस्तक समीक्षा*
*पुस्तक समीक्षा*
Ravi Prakash
बह्र ....2122  2122  2122  212
बह्र ....2122 2122 2122 212
Neelofar Khan
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण परमहंस
Indu Singh
भगवान भी रंग बदल रहा है
भगवान भी रंग बदल रहा है
VINOD CHAUHAN
हे सत्य पथिक
हे सत्य पथिक
भविष्य त्रिपाठी
चुनाव का मौसम
चुनाव का मौसम
Sunny kumar kabira
ना
ना
*प्रणय प्रभात*
*प्रकृति-प्रेम*
*प्रकृति-प्रेम*
Dr. Priya Gupta
आशा
आशा
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
बीते लम़्हे
बीते लम़्हे
Shyam Sundar Subramanian
इश्क के कई जहाजों सहित.. डूब के किनारे पर आए हैं हम...!!
इश्क के कई जहाजों सहित.. डूब के किनारे पर आए हैं हम...!!
Ravi Betulwala
आनेवाला अगला पल कौन सा ग़म दे जाए...
आनेवाला अगला पल कौन सा ग़म दे जाए...
Ajit Kumar "Karn"
Stay grounded
Stay grounded
Bidyadhar Mantry
Life can change in an instant. The scariest part? You never
Life can change in an instant. The scariest part? You never
पूर्वार्थ
मन
मन
Neelam Sharma
दुकान मे बैठने का मज़ा
दुकान मे बैठने का मज़ा
Vansh Agarwal
Loading...