“मन का स्पर्श”
मैं ढूंढता हूं सत्य को सत्य कहां खो गया,
असत्य की इस भीड़ में सत्य कहा खो गया।
ईक दिन आकाश में चमका था चांद सा,
अमावस्या कि रात में सत्य कहां खो गया।
ईक दिन तालाब में सुमन सा खिला था सत्य,
भ्रष्टाचार के दलदल में सत्य कहां खो गया।
मैं ढूंढता हूं सत्य को सत्य कहां खो गया,
असत्य कि इस भीड़ में सत्य कहां खो गया।
काबे में बसता था मंदिर में रहता था,
कट्टरता के भाव में सत्य कहां खो गया।
मै ढूंढता हूं सत्य को सत्य कहां खो गया,
असत्य की इस भीड़ में सत्य कहां खो गया।
बचपन में सीख मिली साथ देना सत्य का,
दिन हो चाहे रात हो साथ रहना सत्य के
जीवन निर्वाह में सत्य कहां खो गया।
मैं ढूंढता हूं सत्य को सत्य कहां खो गया
असत्य की इस भीड़ में सत्य कहां खो गया।
सुना था कि प्रेम के भाव में ही सत्य है,
परखा तो प्रेम स्वार्थ का पर्याय मिला।
जाने कब प्रेम से सत्य विमुख हो गया,
मैं ढूंढता हूं सत्य को सत्य कहां खो गया,
असत्य की इस भीड़ में सत्य कहां खो गया।
ईक दिन एकांत में ,मैं बैठा था ध्यान में
चिंतन के मंथन से पालने में झूलता सा
सत्य नजर आ गया, बाहे थामी सत्य की
माया का मोह गया।
मैं ढूंढता था सत्य को सत्य मैंने छू लिया,
असत्य की इस भीड़ में भी सत्य का स्पर्श हुआ।।,,,,,,,