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14 May 2024 · 1 min read

रोशनी की किरण

वक़्त का चिराग़ बुझते बुझते,
ज़िन्दगी का सफ़र थमते थमते,
एक रोशनी की किरण पास आई।

ऊपर से मुस्कुराहट थी,
अन्दर कुछ दर्द सा था,
लगती वो बिल्कुल परी सी थी,
वो वक़्त का तीव्र तूफ़ान था,
उसकी ओर देखते देखते,
बिना किसी पल रुकते रुकते
रोशनी की किरण में ही अलोप हो गई।

जीने की वो वजह थी मग़र,
वक़्त का ही कुछ प्रभाव था,
बिल्कुल पास रहती थी मग़र,
उसका हर पल,
ज़िन्दगी से दूर होता था,
सांझ का प्रहर ढलते ढलते,
उसके मेरी आँखों से ओझल होते होते,
निशा जैसे वक़्त से पहले आने को थी।

एक बुझते दिए की लौ हो जैसे,
पुकार रही हो ज़िन्दगी को जैसे,
और ज़िन्दगी उससे कोसों दूर जा रही थी,
और ज़िन्दगी में ही कुछ कदम चलते चलते,
पथ पर थोड़ा थकते थकते,
ज़िन्दगी की साँस थमने को थी।

वक़्त का चिराग़ बुझते बुझते,
ज़िन्दगी का सफ़र थमते थमते,
एक राेशनी की किरण बुझने को थी।

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