पतझड़ में

पतझड़ में
जैसे –
पत्ते गिराकर पेड़ सहेज लेते है,
अपना अकेलापन।
जैसे –
ठंड में
आंगन सहेज लेता है,
गुनगुनी धूप।
पेड़
सहेज लेता है तने पर
जैसे –
दो प्रेमियों के नाम।
प्रेमिका सहेज लेती है
जैसे –
माथे पर अपने,
प्रेमी का चुंबन।
ठीक ऐसे ही
मन के किसी कोने में,
मैंने सहेज रखी है
तुम्हारी यादें।।