नदिया ख़ारे समुद्र को,

नदिया ख़ारे समुद्र को,
अपना हमराह बनाती है।
जाने है ख़ारा बहुत है,
फ़िर भी हंस कर गले लगा लेती है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
नदिया ख़ारे समुद्र को,
अपना हमराह बनाती है।
जाने है ख़ारा बहुत है,
फ़िर भी हंस कर गले लगा लेती है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”