*जब भक्ति मधुर जग जाती है (राधेश्यामी छंद)*

जब भक्ति मधुर जग जाती है (राधेश्यामी छंद)
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1)
जब भक्ति मधुर जग जाती है, तब भक्त स्वयं में खोता है।
बाहर से वह बेखबर हुआ, अनुभव भीतर से होता है।।
2)
बाहर के नेत्र मूॅंदकर जन, भीतर उजियारा पाते हैं।
भीतर से झरना बहता है, पी जिसे तृप्त हो जाते हैं।।
3)
यह मिलन प्रेम का मौन-भरा, शब्दों से परे कहानी है।
केवल वह खुद को जान सका, जो खुद का होता दानी है।।
4)
इसमें आकार उमड़ते हैं, यह निराकार की काया है।
ईश्वर की कृपा मिली जिसको, ईश्वर उसने ही पाया है।।
5)
बंधन कट जाऍं जन्मों के, ऐसा उद्धार लगा देना।
प्रभु दया करो इस जीवन में, नौका को पार लगा देना।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451