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21 Jul 2024 · 1 min read

गुरू

ज्याच्या काळजाची ओढ भिडे तुझ्या काळजाला
गुरू तो थोर त्याला न वयाचा किनारा

सुदाम्याचा दास हरी, साऱ्या विश्वाचा विधाता
तोलू कुठं रे मी तुज, गुरू मैत्रीत पाहता

अंधारते जेव्हा जग,सोबती ज्ञानाचा सहारा
गुरू देई ते दान, कल्प वृक्ष तो खरा

ज्याचे करुनी अनुसरण, रस्ता जीवनाचा चालला
शोधू कुठं रे मी त्यास, गुरू वाटसरुत धाडीला

गुरू गुलाबाच फूल, गुरु करवंदीच जाळ
अंगी काट्यांचे कुंपण, फळ देई ते रसाळ

गुरु लहान असो वा थोर, असे गणना त्यांची अपार
फेडावया उपकार त्यांचे, तू देहाची कसरत कर

शोध प्रत्येकात गुरू तू, ज्याने घडविले तुला आज
देहाचे जोडुनी हात वंदावे,करुनी गुरुपौर्णिमेची सुरुवात

Language: Marathi
Tag: Poem
1 Like · 92 Views

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