** गीतिका **

** गीतिका **
~~
खिले अनेक पुष्प डाल डाल मुस्कुरा रही।
सुगंध से सभी दिशा निखार खूब पा रही।
हुई सुभोर रक्तवर्ण झूमती कली कली।
महान शुभ्र स्नेहपूर्ण भावना जगा रही।
मना रही धरा बसंत पर्व हर्ष भाव से।
नये सुरम्य दृश्य छोर छोर है सजा रही।
अनादि है परंपरा यहां बसंत काल की।
नयी उमंग साथ ले अथाह प्यार पा रही।
अनेक रंग कि छटा लिए हरी भरी लता।
नवीन रूप ओढ़ नित्य भव्यता दिखा रही।
~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०६/०४/२०२५