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23 Oct 2024 · 3 min read

राम जी

हम छोटे थे तो रामलीला देखने जाते थे , मैं रही होंगी कुछ सात बरस की, जब मैं राम बनवास देखकर रो रही थी, किसी ने मेरी नानी से कहा, “ देखिएआपकी नातिन रो रही है।” नानीने कहा, “ समझ आ रहा है तभी तो रो रही है ।”

अब कभी सोचती हूँ तो हंसी आ जाती है, मुझे क्या समझ आ रहा था जो मैं रो रही थी , शायद कहानी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं , परन्तु मेरे भाव दिशापा रहे थे , मेरे उस चरित्र का निर्माण कर रहे थे , जो मुझे सही मूल्यों की परख करते रहने की रूचि देने वाला था ।

भारत से दूर आए पच्चीस वर्ष हो गए, परन्तु राम सदा साथ रहे, जीवन को नए अर्थ देते रहे , और अंततः यह समझ आ गया कि राम ही भारत है और भारतही राम है । हर युग के भारत ने स्वयं को राम में प्रतिबिंबित किया है ।

जब धोबी के कहने पर हम सीता को घर से निकाल देते है, तो हम अपने ही समय की कुंठा की बात कर रहे होते हैं, जब अडवाणी रथ यात्रा लेकरनिकलते हैं तब भी हम राम को अपनी आवश्यकता अनुसार ढाल रहे होते हैं ।

मुझे लगता है, हमारे मन की सच्चाई महाभारत है, परन्तु चिंतन से जो उपनिषदों ने पाया है, वह राम हैं ।

होमर का इलियड आरम्भ ही होता है क्रोध से , उसमें हेक्टर जो पारिवारिक संतुलित मनुष्य है वह मारा जाता है , जीतता है , बेटी की हत्या करने वालाऐगमनान , चालाक ओडिसियस , बदले की भावना से जल रहा निष्ठुर ऐकलीस । यहाँ भावनाओं का निरंतर उफान है , अरस्तू कहते हैं, इन्हीं भावनाओं केउफान को मंच पर होता देखकर , दर्शक मन का शुद्धीकरण पा जाते हैं । परन्तु हमने राम को गढ़ा है , जो संतुलन कभी नहीं खोते और शुद्धिकरण के लिएउन्हें अनावश्यक संहार की आवश्यकता नहीं पड़ती । हमारे राम, मानो स्वयं को तटस्थ होकर देख रहे हों , और बिना हिचकिचाये वही निर्णय ले रहे हों जोबृहत्तर समाज के हित में हो , यहाँ भावनाओं का नियंत्रण सहज है , उनमें फँसकर पथभ्रष्ट होने का प्रश्न ही नहीं उठता। भावनाओं के इस संतुलन की चाहही भारत को भारत बनाती है , और आज भी वसुधैवम कुटुंबकम की परिकल्पना को जीवित रखती है । हम जहां भी हैं , हमारे घर परिवार सुरक्षित हैंक्योंकि हमें हमारे राम याद हैं।राम हैं तो प्रकृति की पूजा है, न्याय प्रणाली सुरक्षित है, निर्धन का आदर है , संबंधों में मर्यादा है । वह हमारे ईश्वर हैं , हमारा शुद्ध चैतन्य हैं ।

संपदा के लिए भाई भाई में टकराव, पिता पुत्र में टकराव, सार्वभौमिक है । बाइबिल मे केन और ऐबल की कहानी, जोसफ़ की कहानी, मनुष्य की इसमूलभूत भावना का परिचायक है । परन्तु भारत इन भावनाओं को पहचान कर उन्हें दिशा देना चाहता है, क्योंकि यहां के मनीषी सदियों से मन की शांति मेंजीवन का सौंदर्य ढूँढते आए है, वस्तुविष्ठता को वह केवल भौतिक जगत में ही नहीं अपितु मन की गहराइयों में भी ढूँढते आए हैं ।

महान साहित्यकार के पास एक जीवन दर्शन होता है, जो वह साधना से महान चिंतकों के अध्ययन से अर्जित करता है, फिर उसके आसपास एक कहानीबुनता है, जो सचमुच के पात्र से मिलती जुलती भी हो सकती है । उसमें वह सारी भावनाओं से गुजरते हुए अंततः पाठक को शांति का अनुभव अथवा मार्गदिखा देता है । वह कहानी आने वाले युगों तक समाज को इस तरह आकर्षित करती है कि , वह बार बार अपनी बात इसी पात्र के द्वारा कहता रहता है, इसीलिए राम को हर युग अपने ढंग से कहता आया है और कहता रहेगा । ऐसा चरित्र और किसी साहित्य में रचा ही नहीं गया । यही भारत का सामर्थ्य है, यही भारत की विजय है ।

शशि महाजन-लेखिका

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