#मुख़्तसर_नज़्म-
#मुख़्तसर_नज़्म-
■ समय और हम।।
[प्रणय प्रभात]
“समय के साथ चलना था।
मगर वो पर लगाए था,
यहां पर पांव बेदम थे।
उसे परवाज़ आती थी,
यहां पे असमां कम थे।।
हुक़ूमत हाथ थी उसके,
यहां हुक्के ही भरने थे।
उसे सब को नचाना था,
यहां सौ काम करने थे।।
भला किस मुंह से बोलेंगे,
हमें आगे निकलना था?
अगर सब कुछ सही होता,
समय को साथ चलना था।।”
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●संपादक न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्य-प्रदेश)