ना कुछ लिखा जा रहा है ना कुछ पढ़ा जा रहा है।

ना कुछ लिखा जा रहा है ना कुछ पढ़ा जा रहा है।
मसला ज़िंदगी का कुछ उलझता सा जा रहा है।।
जितना ढूंढ रही हूँ ख़ुद को,उतना खोने का डर सता रहा है।
बयाबाँ हो गया है दिल का आलम,ये किस जुनूँ में आगे बड़ता जा रहा है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”