ख्वाबों का गुलदस्ता

सींचा गुलदस्ता गुलशन का, ख्वाबों की बनी सियाही से।
भोर हो गई उठ जा प्रियतम, अब क्यों डरे जुदाई से।।
उतना ही देखो सपनों को, जितना हो सके हकीकत में।
नई किरन आवाज दे रही, क्यों हैं पड़ा रजाई में।।
कठिन लड़ाई जीने की, संग्राम अनूठा जीवन का।
पतझड़ में पत्ते इश्क करें, वैरी बन जाये पवन झोंका।।
सींचा गुलदस्ता गुलशन का, ख्वाबों की बनी सियाही से।
भोर हो गई उठ जा प्रियतम, अब क्यों डरे जुदाई से।।
ख्वाबों का गुलदस्ता प्रियतम, सपनों में दस्तक देता हैं।
बनके सावन बरसों प्रियवर, तनमन संगीत सा बजता हैं।।
कोई कहदे जाकर उनसे, सर्वस्व न्यौछावर होना हैं।
सीता को राम मिले न मिले, पर श्याम को आप में खोना हैं।।
ये प्रीत कोई आसान नहीं, मनमोहन ने भी माना था।
मोहन की मीरा अमर हुई, जिसने दुनियां को जीता था।।
सींचा गुलदस्ता गुलशन का, ख्वाबों की बनी सियाही से।
भोर हो गई उठ जा प्रियतम, अब क्यों डरे जुदाई से।।
लोधी श्यामसिंह राजपूत “तेजपुरिया”
कानपुर (देहात) उत्तर प्रदेश