भूल गए हम रफ़्ता रफ़्ता ज़ख़्म पुराने आहिस्ता आहिस्ता।

भूल गए हम रफ़्ता रफ़्ता ज़ख़्म पुराने आहिस्ता आहिस्ता।
उठती तीस से हम डर जाते कहीं उतर न जाए रंग ये झूठे के सारे।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
भूल गए हम रफ़्ता रफ़्ता ज़ख़्म पुराने आहिस्ता आहिस्ता।
उठती तीस से हम डर जाते कहीं उतर न जाए रंग ये झूठे के सारे।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”