बच्चों से-
मैं चाहती हूॅं,
बच्चों !
अपना आसमान
स्वयं चुनो तुम।
किसी के दबाव में,
किसी के रूआब में
आए बिना।
फिर अपने
सपनों में
इंद्रधनुषी रंग
भरो तुम।
अपने अनुभव की
छैनी से
अपना भविष्य
स्वयं गढ़ो तुम।
चुन लिया जो पथ
उस पर अविराम बढ़ो।
आने वाली
हर कठिनाई
का डटकर
सामना करो तुम।
अपनी अस्तित्व के
नए आयामों से
जीवन के पट
खुद बुनों तुम।
किसी के हाथ की
कठपुतली
बिल्कुल नहीं
बनो तुम।
अपनी रुचि से
तर्क की कसौटी पर
कसकर जब चुनोगे
सत्य की राहें,
मुस्कुराता उज्ज्वल
भविष्य खड़ा होगा
फैलाकर बाहें।
अंतर के अंतर्द्वंद्व से
होकर मुक्त
उन्नति के गगन में
उड़ोगे होकर उन्मुक्त तुम।
तब होगा सार्थक
मेरा शिक्षक होना
मेरा प्रथम गुरु होना
मेरा माॅं होना
आशा है
अपने और मेरे दिल की
सुनोगे तुम।
प्रतिभा आर्य
37,चेतन एनक्लेव फेज-2
जयपुर रोड अलवर (राजस्थान)