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13 Feb 2024 · 1 min read

ढलती साँझ

ढलती साँझ
आ गए हैं चलते चलते हम दोनों
जीवन के इस मोड़ पर
जहाँ…..
हम -तुम के सिवा कोई नहीं है |
आओ… चलो… चलें… वहीं,
झील के किनारे
जहाँ कभी मिलते थे -हम दोनों
समय के उस दौर में
जब जवाँ थे हम दोनों,
घंटो बैठ देखा करते थे
एक दूसरे को अपलक,
और खो जाते थे आँखों में,
आओ…चलो… चलें….,
फिर से जी लें जीवन वही
जिसे छोड़ आये थे पीछे कभी,
कुछ पल के लिए ही सही
जीवन की इस ढलती साँझ के संग ||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
13-02-2024

1 Like · 153 Views
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