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20 Mar 2024 · 1 min read

बेख़बर

जिंदगी की राहों में हम अकेले ही रहे ,
हमसफ़र बनते रहे बिछड़ते रहे ,

रिश्तो का कारवां रवाँ- दवाँ रहा ,
कभी खुशी कभी गम के अब्र छाते बिखरते रहे ,

अख़लाख़ -ए- बावफ़ा होकर भी ,
फितरत-ए-बेवफ़ा के गुन्हेग़ार बनते रहे ,

अपनी खुदी को औरो की खातिर क़ुर्बान कर ,
अपने वजूद से बेखबर होते रहे ,

जमाने की रौ में ना बहने सके ,
अपने आप के भँवर में डूबते उबरते रहे ,

किसी से ना गिला ना शिकवा ,
जो मयस्सर था उसी में खुश होते रहे ।

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