“खुदगर्ज़ ज़माने में जब भी”

खुदगर्ज़ ज़माने में जब भी,
तुम बदलाव जो लाना चाहोगे।
सैकड़ो उंगलियां तोहमत की,
एक साथ तुम पर उठ जाएगी।।
यही रीत जमाने की हैं लोगों,
ना इनमें कभी फेर बदल होगा।
आज मुझ पे लोग कसेंगे ताने,
कल बारी तुम्हारी भी ऐसी आएगी।।
जब भी सोचोगे बदलाव नया कोई,
चौतरफ़ा कटाक्ष से घिरा जाओगे ।
नीयत की सच्चाई ना देखेगा कोई,
बस अच्छाई में बुराई दिखलाई जाएगी।।
हम सोचेंगे जब भी कुरीतियों के विरुद्ध,
लोग गलत का जामा पहनाएंगे।
लोगों को कहने दो जो कहना है,
पर अन्याय के विरुद्ध आवाज तो उठाई जाएगी।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”